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चांद पर इंसानों की बस्ती ऐसे बसाना चाहते हैं वैज्ञानिक

चांद पर इंसानों की बस्ती बनाने के लिए वैज्ञानिक अब नई तकनीक का इस्तेमाल करने जा रहे हैं. इस काम को करने का बीड़ा उठाया है यूरोपियन स्पेस एजेंसी के वैज्ञानिकों ने. इनलोगों ने चांद पर जीवन के मुख्य आधार यानी ऑक्सीजन पैदा करने के लिए वहां मौजूद साधनों का ही सहारा लेने का मन […]

चांद पर इंसानों की बस्ती बनाने के लिए वैज्ञानिक अब नई तकनीक का इस्तेमाल करने जा रहे हैं. इस काम को करने का बीड़ा उठाया है यूरोपियन स्पेस एजेंसी के वैज्ञानिकों ने. इनलोगों ने चांद पर जीवन के मुख्य आधार यानी ऑक्सीजन पैदा करने के लिए वहां मौजूद साधनों का ही सहारा लेने का मन बनाया है. इसके लिए एक नई तकनीक का भी सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा चुका है. वहां के वायुमंडल में अगर ऑक्सीजन पैदा किया जा सका तो वहां जीवन संभव हो जाएगा.
तमाम किस्म के अनुसंधान के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि वहां ऑक्सीजन होने के बाद भी वह हवा के तौर पर मौजूद नहीं हैं. चांद पर यह ऑक्सीजन उसके धूल कणों के अंदर समाया हुआ है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह ऑक्सीजन प्रचुर मात्रा में है. इसलिए उसे काम में लगाया जा सकता है. इसी काम के लिए नई तकनीक को आजमाया जाने वाला है. खगोल वैज्ञानिक मानते हैं कि वहां ऑक्सीजन तैयार होने के बाद अंतरिक्ष की यात्रा के लिए आवश्यक अंतरिक्ष ईंधन भी वहीं पैदा किया जा सकेगा.
इससे अंतरिक्ष अभियानों को बड़ी मदद मिलेगी. चांद पर इंसानों को बसाने से अंतरिक्ष अभियान तेज होगा यूरोपियन स्पेस एजेंसी के रिसर्च और टेक्नॉलॉजी सेंटर ने इस काम को आगे बढ़ाने की जिमेदारी ली है. यह संस्था नेदरलैंड में कार्यरत है. पिछले साल से ही इस तकनीक पर काम चल रहा है. इसके तहत इस प्रक्रिया को अंतिम रुप दिया जा रहा है कि वहां के धूल कणों में मौजूद ऑक्सीजन को कैसे निकालकर गैस की शक्ल में तब्दील किया जाए.
तकनीक को सैद्धांतिक तौर पर पूरी तरह सही माना गया है. अब उसी तकनीक को अंतिम रुप प्रदान किया जा रहा है ताकि यह तकनीक चांद पर भी सही तरीके से काम कर सके. इसीलिए हर पहलु से इस तकनीक की बारिकी से जांच की जा रही है. अगर यह सफल रहा तो सुदूर अंतरिक्ष तक का अभियान वर्तमान के मुकाबले और आसान हो जाएगा. ग्लासगो विश्वविद्यालय के रसायनशास्त्र के वैज्ञानिक बर्थ लोमैक्स ने कहा कि चांद के धूल कणों से ऑक्सीजन निकालने की विधि की जांच अत्याधुनिक स्पेक्ट्रोमीटर से की जा सकती है.
  • वहां की धूल की रासायनिक प्रक्रिया से तैयार करेंगे ऑक्सीजन
  • वहां पहले से ऑक्सीजन ठोस अवस्था में मौजूद है
  • इस काम को करने की विधि का परीक्षण जारी
  • अंतरिक्ष अभियान का ईंधन भी बन सकेगा वहां
एक बार अगर यह काम सफल हुआ तो भविष्य में हम चांद पर निश्चित तौर पर इंसानों की बस्ती देख पायेंगे. चांद के धूल कणों से ऑक्सीजन बनाने की विधि पूर्व में भी आजमायी गयी थी. लेकिन उस वक्त यह प्रयोग सफल नहीं हो पाया था. इसलिए इस बार इस तकनीक को ही बदला गया है. इस बार गले हुए नमक की विधि से ऑक्सीजन निकालने की विधि आजमायी जा रही है.
ऑक्सीजन निकालने की पूर्व विधि को संशोधित किया गया इस विधि के बारे में बताया गया है कि चंद्रमा से लाये गये धूल कणों को एक खास तकनीक से बने बक्से के अंदर रखा जाता है. इस बक्से के अंदर खास किस्म का पिघला हुआ कैल्सियम क्लोराइड होता है, यह अंदर में इलेक्ट्रोलाइट का काम करता है. यहां पहुंचने वाले ऐसे धूल कणों में इसकी वजह से रासायनिक प्रतिक्रिया होती है. फिर से करीब 950 डिग्री तक गर्म किया जाता है. इस तापमान पर चांद के धूल कण गर्म तो होते हैं पर पिघलते नहीं है. इस दौरान उसके बीच से बिजली का तंरग पास होने की स्थिति में उसमें मौजूद ऑक्सीजन खींच लिया जाता है. ब्रिटेन की एक कंपनी, जिसका नाम मेटालाइसिस है, ने सबसे पहले इस विधि को तैयार किया है.
इसी कंपनी में खुद लोमैक्स भी अपने रिसर्च के दौरान काम करते थे. उन्होंने इसी विधि को नये सिरे से संशोधित और परिष्कृत किया है. इस विधि के बारे में दावा किया जा रहा है कि इससे उसमें मौजूद करीब 96 प्रतिशत ऑक्सीजन को हासिल किया जा सकता है. ऑक्सीजन निकल जाने के बाद जो कुछ बच जाता है वह धातुओं का यौगिक होता है. इस अवशेष का भी कई कार्यों में बेहतर उपयोग किया जा सकता है. वैज्ञानिक मानते हैं कि इस अवशेष का श्रेष्ठ उपयोग थ्री डी प्रिंटिंग में किया जा सकता है.
अनुसंधान से जुड़े वैज्ञानिक यह उम्मीद कर रहे हैं कि इसी साल के मध्य तक इस परीक्षण को चंद्रमा पर आजमाया जा सकता है. यदि यह प्रयोग सफल रहा तो हम निकट भविष्य में चांद पर भी इंसानों की बस्ती देख सकेंगे क्योंकि सांस लेने के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध होने के बाद शेष चुनौतियों से पार पाना संभव होगा.

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