1 मई 2025 से सड़कों पर यात्रा और भी सहज हो जाएगी, क्योंकि केंद्र सरकार एक नया GPS-आधारित टोल कलेक्शन सिस्टम शुरू करने जा रही है. इस दिशा में नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) FASTag प्रणाली को पूरी तरीके से समाप्त कर, सैटलाइट आधारित इस अत्याधुनिक तकनीक को अपनाने की तैयारी में है. इस नई प्रणाली के तहत टोल की गणना वाहनों द्वारा तय की गई दूरी के आधार पर की जाएगी. आइये विस्तार से जानते हैं क्या है यह GPS-आधारित टोल कलेक्शन सिस्टम और यह काम कैसे करेगा.
देश में टोल वसूली के लिए इस्तेमाल हो रहे फास्टैग सिस्टम को जल्द ही ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) से बदला जाएगा. हाल ही में केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने नागपुर में घोषणा की कि GNSS आधारित नया टोल सिस्टम अप्रैल के अंत तक शुरू कर दिया जाएगा. पहले यह प्रणाली 1 अप्रैल से लागू होने की उम्मीद थी, लेकिन कुछ देरी के बाद अब इसे आगामी 15 दिनों के भीतर पूरी तरीके से देशभर में लागू किया जाएगा.
कैसे काम करेगा GNSS आधारित टोल सिस्टम
RFID तकनीक वाले FASTag की तरह ही GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) आधारित टोल सिस्टम भी शुरू किया जा रहा है, लेकिन इसमें गाड़ी की विंडशील्ड पर टैग लगाने की जरूरत नहीं होगी. इस नई व्यवस्था में वाहनों में एक ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU) या ट्रैकर लगाया जाएगा, जिससे सैटेलाइट के जरिए उनकी मूवमेंट पर नजर रखी जाएगी. वाहन ने कितनी दूरी हाईवे पर तय की है, उसी के आधार पर टोल की राशि तय होगी और लिंक किए गए डिजिटल वॉलेट से ऑटोमैटिक कट जाएगी. यह आधुनिक टोल सिस्टम प्रीपेड और पोस्टपेड, दोनों विकल्पों को सपोर्ट करेगा.
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FASTag यूजर्स को करने पड़ेंगे यह काम
- 30 अप्रैल 2025 तक वाहन मालिक अपने मौजूदा FASTag का उपयोग कर सकते हैं.
- 1 मई से सभी वाहनों में सरकार द्वारा अनुमोदित GPS डिवाइस लगाना अनिवार्य होगा.
- नई प्रणाली के तहत वाहन मालिकों को अपने बैंक खाते को GPS टोल सिस्टम से लिंक करना होगा.
- पूरी प्रक्रिया के सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद, पुराना FASTag स्टिकर हटाया जा सकेगा.
GNSS आधारित टोल सिस्टम से यात्रियों को होगा बड़ा लाभ
नई GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) आधारित टोल प्रणाली से हाईवे पर सफर करने वाले यात्रियों को कई सुविधाएं मिलेंगी. इस तकनीक के जरिए अब टोल प्लाजा पर रुकने की जरूरत नहीं होगी, जिससे इंतजार का समय बचेगा और सफर ज्यादा सुगम बनेगा. आप जितना सफर करेंगे उतना ही टोल का हिसाब देना होगा. इस प्रणाली के लागू होने से मैनुअल त्रुटियों की संभावना कम होगी और धोखाधड़ी की घटनाओं पर भी लगाम लगेगी.
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