Jharkhand News: गुमनामी में जी रहे 1971 की भारत-पाक लड़ाई में शहीद सैनिकों के परिवारों की क्या है पीड़ा
Jharkhand News: 1971 की लड़ाई में खूंटी के तोरपा प्रखंड के तुड़ीगड़ा गांव के पौलुस तोपनो, डेरांग गांव के हेरमन गुड़िया तथा झटनी टोली गांव के प्रभदान हेमरोम भी शहीद हुए थे. इनके परिवार भी आज गुमनामी में जी रहे हैं.
Jharkhand News: 1971 की भारत-पाक लड़ाई में देश की रक्षा में शहीद होने वाले कई जांबाज सैनिकों के परिवार आज गुमनामी में जी रहे हैं. झारखंड के खूंटी जिले के रनिया प्रखंड के कोयनारा गांव के रहने वाले रेजन गुड़िया भी 1971 की लड़ाई में शहीद हुए थे. वह बिहार रेजिमेंट में थे. 11 दिसंबर 1971 को पाक सैनिकों के खिलाफ लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हो गए थे. वे ऑपरेशन ऑक्टोपस लिली का हिस्सा थे. उनके भाई रोयन गुड़िया बताते हैं कि उन्हें अगरतला में वहीं पर दफनाया गया, जहां परमवीर चक्र विजेता अल्बर्ट एक्का को दफनाया गया है. यहीं पर तोरपा प्रखंड के झटनी टोली के रहने वाले प्रभुदान धान को भी दफनाया गया था. वह भी 1971 की लड़ाई में शहीद हुए थे.
शहीद रेजन गुड़िया का परिवार फिलहाल खूंटी जिले के तोरपा में रहता है तथा गुमनामी में जी रहा है. रेजन की पत्नी नरमी गुड़िया बताती हैं कि रेजन गुड़िया अंतिम बार जनवरी 1971 में घर आये थे. उसके बाद उनका चेहरा नहीं देख पाये. नरमी गुड़िया कहती हैं कि पति देश की रक्षा के लिए शहीद हुए. यह गर्व की बात है, परंतु पति का स्मृति अवशेष भी हमारे पास नहीं है. ना ही घर में उनकी फोटो है और ना ही कोई पहचान की वस्तु है. उनकी बस यादें ही शेष हैं. नरमी कहती हैं कि उनकी अंतिम इच्छा है कि कोई पति के कब्र की मिट्टी लाकर दे ताकि उसे संजोकर रख सकें.
रेजन गुड़िया के छोटे भाई उम्बलन गुड़िया कहते हैं कि भाई के शहीद होने के बाद उनके शव को अगरतला में दफना दिया गया. परिवार के लोग वहां कभी नहीं जा सके. सरकार से अनुरोध है कि वहां से कब्र की मिट्टी लाकर दिया जाये ताकि उनके नाम पर गांव में पत्थलगड़ी कर सकें, ताकि हर वर्ष उन्हें वहां पर श्रद्धांजलि अर्पित की जा सके. शहीद रेजन गुड़िया की पत्नी नरमी गुड़िया को मेडिकल की सुविधा नहीं मिलती है. वह बताती हैं कि जब पति शहीद हुए थे उस वक्त पांच हजार रुपये मिले थे. पटना में फ्लैट भी मिला था, जो बाद में बेचना पड़ा. उनकी इच्छा है कि पोता विवेक गुड़िया फौज में जाकर देश की सेवा करे.
1971 की लड़ाई में तोरपा प्रखंड के तुड़ीगड़ा गांव के पौलुस तोपनो, डेरांग गांव के हेरमन गुड़िया तथा झटनी टोली गांव के प्रभदान हेमरोम भी शहीद हुए थे. इनके परिवार भी आज गुमनामी में जी रहे हैं. पौलुस तोपनो की पत्नी करुणा तोपनो ने बताया कि उनके पति के शहीद होने के बाद उनके कफ़न में उनके कब्र की मिट्टी लाकर दी गयी थी. जिसे गांव में रखकर पत्थलगड़ी की गई है.
रिपोर्ट: सतीश शर्मा