धनबाद जिला में हल्का कर्मचारी (राजस्व उप निरीक्षक) व अमीन के स्वीकृत लगभग 40 फीसदी पद खाली हैं. इसके चलते भूमि विवाद के मामलों के निष्पादन में भारी परेशानी हो रही है. यह पद भी पांच दशक पहले स्वीकृत हुए हैं. पिछले 50 वर्षों में यहां की आबादी में भारी इजाफा हुआ है. जमीन संबंधी वाद भी लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन नये पद सृजित होना तो दूर पुराना भी नहीं भरा जा रहा है.
जिला में हल्का कर्मचारी के 92 पद स्वीकृत हैं. 11 अंचलों में इसके विरुद्ध 56 हल्का कर्मचारी ही कार्यरत हैं. इनमें से भी आठ कर्मचारी अगले दो-तीन माह में रिटायर होने वाले हैं. कर्मचारियों की कमी के चलते एक-एक हल्का कर्मी के पास कई-कई का प्रभार है. लिहाजा, हल्का कर्मचारी विभिन्न जमीन संबंधी कार्यों का निष्पादन नहीं कर पाते हैं. इसके चलते दाखिल खारिज, भू-सत्यापन, भू-संबंधी वाद के मामलों में रिपोर्ट काफी विलंब से आती है. कई स्थानों पर खून-खराबा तक हो जा रहा है. हल्का कर्मचारियों के जिम्मे ही आय, जाति, आवासीय प्रमाणपत्र के लिए आने वाले आवेदनों की जांच कर रिपोर्ट देने की भी जिम्मेदारी होती है. उनकी रिपोर्ट पर ही इस तरह के प्रमाणपत्र संबंधित अंचल से अंचलाधिकारी द्वारा जारी की जाती है.
धनबाद जिला के 11 अंचलों में अमीन के 12 पद स्वीकृत हैं. इनमें से चार अंचलों का गठन कुछ वर्ष पूर्व ही हुआ है. फिलहाल, यहां सात अमीन ही कार्यरत हैं. दो अंचलों में दो अमीनों को अनुबंध पर रखा गया है. कई स्थानों पर निजी अमीन से ही जमीन की मापी करा कर नक्शा तैयार कराया जाता है. अमीन की कमी के कारण भू-मापी के लिए आवेदन देने के बाद भी लंबे समय तक किसी की प्रतिनियुक्ति नहीं हो पाती. लोग परेशान रहते हैं.
जिला में पिछले पांच दशक से सरकारी महकमा में तृतीय व चतुर्थ वर्गीय कर्मियों की संख्या बढ़ नहीं पा रही है. जानकारों का कहना है कि जिस समय बल स्वीकृत हुए थे, उस समय धनबाद जिला की आबादी 10 लाख से भी कम थी. आज धनबाद जिला की अनुमानित आबादी लगभग 29 लाख है. कार्यों के निष्पादन में तेजी लाने के लिए स्वीकृत बलों की संख्या को तत्काल दोगुना करने की जरूरत है.
धनबाद जिले में जमीन विवाद के प्रतिदिन औसतन पांच से छह मामले आते हैं. कुछ मामले थाने में दर्ज होते है, कुछ प्रशासनिक अधिकारियों के पास. इनमें से अधिकांश में सिर्फ जांच का ही आदेश व आश्वासन मिलता है. जो थोड़े से भी सामर्थ्यवान होते हैं, वे कोर्ट की शरण में जाते हैं. बाकी गरीब पुलिस, प्रशासन के बड़े अधिकारियों के यहां फरियाद करते रह जाते हैं. सूत्रों के अनुसार समाहरणालय में प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग अपनी फरियाद लेकर पहुंचते हैं. मंगल एवं शुक्रवार को ज्यादा भीड़ होती है. दोनों दिन उपायुक्त जनता से सीधे मिलते हैं. उनकी समस्याओं को सुनते हैं. इसके अलावा अन्य दिनों में आने वाले आवेदक समाहरणालय के भू-तल पर स्थित ग्रीवांस सेल में अपनी फरियाद जमा करते हैं. पिछले डेढ़ माह के दौरान यहां लगभग डेढ़ सौ आवेदन जमीन संबंधी विवाद को लेकर है. किसी ने जमीन हड़पने की शिकायत की है, तो किसी का म्यूटेशन नहीं हो पा रहा है. कोई अतिक्रमण या कब्जा से परेशान हैं.
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यहां आने वाले आवेदन को संबंधित अंचल या राजस्व शाखा को जांच के लिए भेजा जाता है. कुछ में जांच होती है. कुछ में कार्रवाई भी. लेकिन, अधिकतर मामले जांच में ही पेंडिंग रह जाते हैं. इसकी वजह राजस्व विभाग में कर्मचारियों की भारी कमी है. अधिकारी भी कम हैं. अमीन एवं हल्का कर्मचारी भी जरूरत के हिसाब से काफी कम हैं. ऊपर से उन्हें दूसरी सरकारी ड्यूटी भी करनी होती है.
बुधवार को उपायुक्त कार्यालय परिसर में मिट्टी का तेल डाल कर आत्महत्या का प्रयास करने वाला दिल्लू पासवान पिछले तीन माह से परेशान है. न्याय के लिए दिल्लू ने कई स्तर पर आवेदन दिया. लगभग सभी बड़े अधिकारियों से मिल गुहार लगायी. लेकिन, दिल्लू के अनुसार कहीं से न्याय नहीं मिल पाया. पुलिस ने उसे बचा कर समझा-बुझा कर वापस घर भेज दिया.