एक पवित्र हिमशिखर त्रिशूल पर्वत, जिसे प्रकृति ने दिया आकार, भगवान शिव से क्या है कनेक्शन?

Trishul Mountain: तीन पर्वत चोटियों का शिखर है त्रिशूल पर्वत. इस पर्वत का धार्मिक दृष्टि से बेहद खास महत्व है. आपको बता दें कि ये पर्वत उत्तराखंड के चमोली के पास है. इस पर्वत को भगवान शिव के साथ जोड़ा जाता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 7, 2023 4:53 PM

Trishul Mountain: त्रिशूल पर्वत कई पवित्र पर्वतों में से एक है. इस पर्वत के नाम से ही जाना जा सकता है कि भगवान शिव के अस्त्र त्रिशूल जैसा पर्वत होगा. जी हां आपने बिल्कुल सही समझा. दरअसल, इस पर्वत का नाम भी त्रिशूल पर्वत इसलिए ही रखा गया है. जो तीन पर्वत चोटियों का शिखर हैऔर भगवान शिव के त्रिशूल के जैसा दिखता है. इस पर्वत का धार्मिक दृष्टि से बेहद खास महत्व है. ये पर्वत उत्तराखंड के चमोली के पास है. इस पर्वत को भगवान शिव के होने का प्रतीक भी माना जाता है. आइए जानते हैं इस पर्वत के बारे में अन्य रोचक बातें और जानिए यहां पहुंचने का क्या है सही रास्ता?

त्रिशूल शिखर की ऊंचाई

पश्चिमी कुमाऊं के तीन हिमालय पर्वत शिखर सभी संरचनाओं में त्रिशूल शिखर हैं या यूं कहे कि तीन पर्वत चोटियों का शिखर है त्रिशूल पर्वत. इसकी ऊंचाई 7120 मीटर है. त्रिशूल समुच्चय शिखर वलय के दक्षिण पश्चिम कोने की संरचना करता है जो नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान को घेरता है.

तीनों पर्वतों की ऊंचाई क्या है ऊंचाई

त्रिशूल शिखर को एक साथ जोड़ने वाले तीन शिखर हिंदी/संस्कृत बोली में लाए गए त्रिशूला राज्य की तरह दिखते हैं. इसे शिव का हथियार माना जाता है. त्रिशूल समुच्चय नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान को एक अंगूठी की तरह घेरता है. समुद्र तल से त्रिशूल 1 की ऊंचाई- 7,120 मी0 (23,359 फीट), त्रिशूल 2- की ऊंचाई 6,690 मी0 (21,949 फीट) , त्रिशूल 3- की ऊंचाई 6,007 मी0 (19,708 फीट) है.

त्रिशूल चोटी की जलवायु

मार्च और अप्रैल में तूफानी मौसम के बीच, घाटी में पर्याप्त बर्फबारी के कारण जलवायु अत्यधिक ठंडी हो जाती है. वसंत ऋतु में भी यह असाधारण रूप से ठंडा रहता है. तापमान कभी कभार गिरता है. सितंबर, अक्टूबर और नवंबर की लंबी अवधि में वातावरण सुंदर और साफ रहता है. यहां मुख्य हिमपात अधिकांशतः नवंबर-दिसंबर में होता है.

बेस कैंप ट्रैकिंग

पर्यटकों के लिए यहां बेस कैंप ट्रैकिंग भी उपलब्ध है. जो मेहमान लंबी दूरी की यात्रा करके आते हैं, उनके लिए अपने पर्वतीय अवसरों को वातावरण में समायोजन का आनंद लेते हुए बिताना सबसे बेहतर तरीका है. हलांकि यहां आने से पहले कड़ाके की ठंड से बचने के लिए ऊनी कपड़े और कवर लाने के निर्देश दिए जाते हैं.

इस पर्वत पर नहीं चढ़ना चाहते थे स्थानीय पोर्टर

माना जाता है पहली बार इस पर्वत पर 1907 में आरोहण हुई था. टी.जी लॉगस्टाफ नामक ब्रिटिश पर्वतारोही पहली बार अपने दो अन्य दोस्तों और पोर्टरों के साथ पर्वत पर चढ़े थे. कहा जाता है पहले स्थानीय पोर्टर त्रिशुल पर्वत पर चढ़ने से मना कर दिए थे. उनका मानना था कि शिव जी का अस्त्र त्रिशूल है ऐसे में इस पर्वत पर चढ़ना नहीं चाहते थे.

Next Article

Exit mobile version