आज के आदमी और नयका पीढ़ी- डॉ बालेन्दु कुमार ‘बमबम’ की मगही कविताएं
‘आज के आदमी’ और ‘नयका पीढ़ी’ डॉ बालेन्दु कुमार ‘बमबम’ की मगही कविताएं हैं, जो इस साल प्रभात खबर के दीपावली विशेषांक में प्रकाशित हुईं हैं. इसे आप यहां भी पढ़ सकते हैं...
आज के आदमी
कौन कहऽ हे की
आदमी सभ्य हे,
लिखल पढल आऊ
संस्कार से भरल हे?
हमरा तो संदेह हे।
आऊ संदेह होवत भी काहे नञ,
आज के ई वैज्ञानिक जुग में,
भौतिकता के अंतिम पायदान पर
खड़ा हे ई आदमी।
फिर भी एकरा में नञ
संवेदना हे, नञ दया,
आऊ न तो , बुधिये हे!
इ भूलते जा रहल ,
अपन पुरखन के देल ज्ञान
के खजाना, मान सम्मान
आऊ स्वाभिमान।
सिरिफ रह गेल एक्के चीज,
छदम अभिमान।
आज ई आदमी जानवर से भी
बत्तर भे गेल ,
कभी तू सुनलऽ हे की जानवर
केकरो बलात्कार कइलक हे?
ओकरो पर सामूहिक बलात्कार!
जब तक ऊ मादा के मन टटोल नञ ले हे,
ओकर सहमति नञ मिल जा हे,
कोय कीमत पर सहवास नञ कर सकऽ हे ।
ई चीज सिरिफ आदमीये में पावल जा हे –
हिंसक, कुटिल आऊ पतित विचार!
अब फिन से हम लौटल जा रहलूँ हऽ
हजारों साल पहिले वाला जुग में
जहां सिरिफ हल आदिम लोग,
बेभिचारी आऊ आदमख़ोर।
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नयका पीढ़ी
समय के जे नञ आदर करतै
ऊ जिनगी में की बन पैतै।
जेकरा में नञ सौरज-धीरज
भव बाधा से की लड़तै!
ई पीढ़ी के देख के हम्मर
हिरदा हरदम हहरऽ हे।
ऊंच-नीच के ज्ञान नञ तनिको
केकरो नञ कुछ समझऽ हे।
बाप माय के जब अड़सारे, भइया चाचा की बुझतै?
जेकरा में नञ सौरज धीरज ……कैसे लड़ते
पढ़े-लिखे से तनिक नञ रिश्ता
हाथ मोबाइल रहे सदा।
दारू-मुर्गा, बर्गर-पिज्जा,
घर के भोजन जदा-कदा।
रात दिन बाइक पर घूमे, जीवन में ऊ की करते?
जेकरा में……
केतना दिन अच्छा हल पहिले
हर घर संध्या मानस-वाचन।
गर्भे से बच्चा संस्कारित,
दिव्य ओकर हल लालन-पालन
रिसि, ज्ञानी के राह छोड़ के, शरणागत की हो पैतै?
जेकरा में…..
जे जीवन में तप नञ कइलक
कभी नञ जीवन निष्कंटक
लूट-खसोट, दोसर के हिस्सा,
निगले में नञ तनिक झिझक
चित्रगुप्त के खाता सच्चा, ओकरो की झूठलैतै?
जेकरा में नञ…..।
संपर्क : पीजीटी अंग्रेजी, डीएवी पब्लिक स्कूल, कैंट एरिया, गया, बिहार
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