गुजरात चुनाव में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी आम आदमी पार्टी, जानें देश में कैसे कर रही अपना विस्तार
2011 के अन्ना आंदोलन की बिसात से पैदा हुई आम आदमी पार्टी दिल्ली से उठकर धीरे-धीरे देश में अपना विस्तार करती जा रही है. हालांकि, आम आदमी पार्टी के गठन के बाद ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि आने वाले दिनों में यह भी क्षेत्रीय छत्रप ही बनकर रह जाएगी. लेकिन, यह इस मिथक को तोड़ती दिखाई दे रही है.
नई दिल्ली/रांची : गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 में जीत के साथ सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लगातार सातवीं बार सरकार बनाने जा रही है. वहीं कांग्रेस हार गई है. यह बात दीगर है कि इस बार के विधानसभा चुनाव (assembly elections) में आम आदमी पार्टी को उसके संरक्षक अरविंद केजरीवाल की लिखित भविष्यवाणी के अनुरूप जीत नहीं मिल सकी, लेकिन वोट प्रतिशत के हिसाब से मूल्यांकन किया जाए, तो गुजरात में भाजपा-कांग्रेस के बाद आम आदमी पार्टी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.
क्षेत्रीय छत्रप की धारणा से खुद को निकाला बाहर
गौर करने वाली बात यह भी है कि 2011 के अन्ना आंदोलन की बिसात से पैदा हुई आम आदमी पार्टी दिल्ली से उठकर धीरे-धीरे देश में अपना विस्तार करती जा रही है. हालांकि, आम आदमी पार्टी के गठन के बाद ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि आने वाले दिनों में यह भी समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), जनता दल (यूनाइटेड), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस), द्रविड़ मुनेत्र षडगम (द्रमुक), अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र षडगम (अन्नाद्रमुक), राकांपा, शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) जैसी पार्टियों की तरह क्षेत्रीय छत्रप ही बनकर रह जाएगी. मगर, यह इस मिथक को तोड़ती दिखाई दे रही है.
इस साल की शुरुआत में देश के पांच राज्य उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने अपना विस्तार करते हुए पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा में अपने उम्मीदवारों को उतारा. इसमें उसे पंजाब में सफलता मिली और उसने कांग्रेस को पटखनी देते हुए सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की. कुल मिलाकर यह कहें कि आम आदमी पार्टी ने खुद को क्षेत्रीय छत्रप की धारणा से बाहर निकालकर लगातार अपने विस्तार का प्रयास किया है, तो यह अतिशयोक्ति नहीं कही जा सकती.
दिल्ली से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर बनाई पहचान
अब अगर हम चुनावों से इतर खांटी राजनीति की बात करें, तो आम आदमी पार्टी के संरक्षक अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की क्षेत्रीय राजनीति करते हुए सबसे पहले राष्ट्रीय राजनीति में सरकार बनाने का काम किया और फिर उसके बाद अपना विस्तार करना शुरू किया. वहीं, अगर क्षेत्रीय छत्रप समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), जनता दल (यूनाइटेड), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस), द्रविड़ मुनेत्र षडगम (द्रमुक), अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र षडगम (अन्नाद्रमुक), राकांपा, शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) की बात करें, तो इन्होंने खुद को क्षेत्रीय राजनीति से बाहर निकालने में कामयाबी हासिल नहीं की.
हालांकि, बसपा-सपा यूपी से बाहर निकलकर दूसरे राज्यों में खुद को स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन इसमें उनका सफलता नहीं मिली. इसके विपरीत अगर आम आदमी पार्टी की बात करें, तो उसने दिल्ली से बाहर निकलने के बाद न केवल राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में एक अलग पहचान बनाई, बल्कि मत प्रतिशत के हिसाब से अपनी बढ़त भी बनाई.
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गुजरात में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी ‘आप’
भारत के निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसे अधिक 52.66 फीसदी वोट मिले, जबकि कांग्रेस ने 27.01 फीसदी मत हासिल किए. वहीं अगर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की बात की जाए, तो उसे इस चुनाव में 12.85 फीसदी वोट मिले. अन्य दलों में असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम को 0.32 फीसदी, मायावती की बसपा को 0.51 फीसदी, सीपीआई को 0.01 फीसदी, सीपीआई (एम) को 0.04 फीसदी, जनता दल (सेक्युलर) को 0.1 फीसदी, जनता दल (यूनाइटेड) को एक फीसदी भी वोट नहीं मिल पाया. इस लिहाज से देखें, तो गुजरात में आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.