लखनऊ. काशी की महाविभूति महामहोपाध्याय श्रीविद्याधर शर्मा गौड़जी महाभाग ने 1931 में रक्षाबन्धन का निर्णय दिया था. उस समय पूर्व दिन चतुर्दशी 0/47 पल के बाद पूर्णिमा का आगमन हो गया था. सूर्यास्त के कुछ काल बाद ही भद्रा का समापन भी हुआ था. पुन: पर दिन मात्र 3/58 घटी पूर्णिमा थी. इसके बाद भी उन्होंने रात्रि में रक्षाबन्धन को प्रशस्त नहीं माना और दूसरे दिन की उदया पूर्णिमा में रक्षाबन्धन का निर्णय दिया. इस बार तो पर दिन 5/28 घटी की पूर्णिमा मिल रही है. द्रष्टव्य- “रक्षाबन्धनस्य तु पूर्वदिने भद्रायोगात् उपाकर्मरक्षाबन्धनयो: अङ्गाङ्गिभावस्य गृह्यनिबन्धकाराद्यनभिमतत्वात् परेद्यु: एव अनुष्ठानम् इति निर्णय।
अयोध्या राममंदिर का शिलापूजन कराने वाले आचार्य गंगाधर पाठक ने भ्रमित करने वाले लोगों पर नाराजगी जतायी है. उन्होंने कहा कि रक्षाबंधन पर दिन यानी मात्र 3/58 घटी की उदया पूर्णिमा तिथि में रक्षाबन्धन का निर्णय दिया गया था. इस बार का रक्षाबन्धन 31 अगस्त को सिद्ध है. आचार्य गंगाधर पाठक ने कहा कि सीजनली धर्मशास्त्री तीन, दो, एक मुहूर्त का रहस्य नहीं समझ सकते तो महामहोपाध्याय वेदमूर्ति श्रीविद्याधर शर्मा गौड़जी को मूर्ख घोषित करें. ये तो कहीं से मैथिल नहीं थे.
Also Read: Raksha Bandhan 2023 Live: रक्षाबंधन 30 या 31 अगस्त को, भद्राकाल में राखी बांधना अशुभ, यहां करें दूविधा दूरआचार्य गंगाधर पाठक ने कहा कि पण्डितगण विवेकी कब होंगे. एक बात और- सन 1931 की उदया पूर्णिमा सूर्योदय के बाद 0/47 पल तक ही शुद्ध थी, इसके बाद 3/58 घटी तक मल वाली पूर्णिमा थी. इस बार तो 31 को सूर्योदय के बाद पूरी 5/28 घटी शुद्ध निर्मल या मलरहित पूर्णिमा मिल रही है. निर्णयसिन्धु को अपने निबन्धों से सजाने वाले श्रीमान् गौड़जी को निर्णयसिन्धु या धर्मसिन्धु आदि का थोड़ा भी ज्ञान नहीं था क्या?.
बिहार के धार्मिक विशेषज्ञ भवनाथ झा ने कहा कि मिथिला के बाहर के विद्वान भी इसी बात को स्पष्ट करते हैं. स्मृति-कौस्तुभ में अनन्तदेव ने लिखा है कि यह पर्व जिस दिन उदय के समय पूर्णिमा रहे उस दिन मनाया जाना चाहिए. क्योंकि ‘पूर्णिमा में सूर्योदय रहे’ ऐसा कहा गया है. साथ ही उपाकर्म प्रातः काल कर उसके बाद दोपहर में रक्षाबन्धन हो ऐसा भी कहा गया है. यह मत केवल मिथिला का नहीं है बल्कि बनारस के विद्वान् भी अतीत में यही मानते रहे हैं कि यदि रात में भद्रा समाप्त होती है तो अगले दिन उदया तिथि में रक्षाबन्धन मनाएं.
अयोध्या राममन्दिर के शिलान्यास के पुरोहित आचार्य गंगाधर पाठक लिखते हैं कि काशी की महाविभूति महामहोपाध्याय श्रीविद्याधर शर्मा गौड़जी ने 1931ई. में रक्षाबन्धन का निर्णय दिया था. उस समय पूर्व दिन चतुर्दशी 0/47 पल के बाद पूर्णिमा का आगमन हो गया था एवं सूर्यास्त के कुछ काल बाद ही भद्रा का समापन हुआ था. पुन: पर दिन मात्र 3/58 घटी पूर्णिमा थी, तथापि उन्होंने रात्रि में रक्षाबन्धन को प्रशस्त नहीं माना और दूसरे दिन की उदया पूर्णिमा में रक्षाबन्धन का निर्णय दिया.
Also Read: Raksha Bandhan 2023: राखी बांधना किस समय रहेगा शुभ, कब उतार देनी चाहिए राखी, जानें ज्योतिषाचार्य की रायइस वर्ष तो पर दिन 5/28 घटी की पूर्णिमा मिल रही है. द्रष्टव्य- “रक्षाबन्धनस्य तु पूर्वदिने भद्रायोगात् उपाकर्मरक्षाबन्धनयो: अङ्गाङ्गिभावस्य गृह्यनिबन्धकाराद्यनभिमतत्वात् परेद्यु: एव अनुष्ठानम् इति निर्णय:” दूसरे दिन यानी मात्र 3/58 घटी की उदया पूर्णिमा तिथि में रक्षाबन्धन का निर्णय दिया गया था. इस बार का रक्षाबन्धन 31 अगस्त को निश्चित है. पंचांग के अनुसार भी 31 अगस्त दिन गुरुवार को रक्षाबंधन करना शुभ रहेगा.
Also Read: Raksha Bandhan 2023: राखी बांधना किस समय रहेगा शुभ, कब उतार देनी चाहिए राखी, जानें ज्योतिषाचार्य की रायपौराणी भद्रा शनि देव की बहन और क्रूर स्वभाव वाली है. ज्योतिष में भद्रा को एक विशेष काल कहते हैं. भद्रा काल में किसी भी प्रकार के शुभ कार्य शुरू नहीं करने की सलाह सभी ज्योतिषी देते हैं. शुभ कर्म जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन पर रक्षा सूत्र बांधना आदि शामिल है. सरल शब्दों में भद्रा काल को अशुभ माना जाता है. मान्यता है कि सूर्य देव और छाया की पुत्री भद्रा का स्वरूप बहुत डरावना है. इस कारण सूर्य देव भाद्रा के विवाह के लिए बहुत चिंतित रहते थे. भद्रा शुभ कार्यों में बाधा डालती थी. भाद्रा के ऐसे स्वभाव से चिंतित होकर सूर्य देव ने ब्रह्मा जी से मार्गदर्शन मांगा था. उस समय ब्रह्मा जी ने भद्रा से कहा था कि अगर कोई व्यक्ति तुम्हारे समय में कोई शुभ काम करता है, तो तुम उसमें बाधा डाल सकती हो. लेकिन जो लोग तुम्हारा काल छोड़कर शुभ काम करते हैं तो तुम उनके कार्यों में बाधा नहीं डालोगी. इस वजह से भद्रा काल में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं.