WB KIFF : कामयाबी के लिए अपना रास्ता खुद बनाना पड़ेगा : अभिनेता मनोज वाजपेयी
मनोज कहते हैं, मैं खुद पश्चिमी चंपारण के बेतिया इलाके का हूं, पिताजी खेती करते थे और वह मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन मुझे थियेटर का जुनून था और मैं झूठ बोलकर थियेटर करने जाता था.
कोलकाता,भारती जैनानी : 29वें कोलकाता इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (केआइएफएफ) के दौरान एक खास बातचीत में हिंदी सिनेमा के जाने माने अभिनेता मनोज वाजपेयी (Actor Manoj Bajpayee) ने कहा कि सफलता के लिए आप किसी पर निर्भर नहीं रह सकते. आपको खुद इतनी मेहनत करनी पड़ेगी कि आप कड़ी चुनौतियों के बावजूद खुद अपनी मंजिल तक पहुंच जायें. एक कलाकार के रूप में मैं हर किरदार में अपना सौ प्रतिशत देता हूं और केवल अपने से उम्मीद रखता हूं. अपने ऊपर मेहनत करता हूं. कई युवा कलाकार हैं, जो थियेटर करते हैं और एक स्टार बनने का सपना देखते हैं, सपना देखना अच्छा है, लेकिन युवाओं में इसे पूरा करने के लिए जुनून व पैशन भी होना चाहिए.
उनको वही क्षेत्र चुनना चाहिए, जिसमें उनको खुशी होती है, सुकून मिलता हो. बॉलीवुड के नाम से मुझे बहुत दर्द होता है, यंगस्टर्स को आना चाहिए, लेकिन किसी और पर नहीं, अपने ऊपर भरोसा करके. आपको अपना रास्ता खुद बनाना पड़ेगा. मनोज कहते हैं, मैं खुद पश्चिमी चंपारण के बेतिया इलाके का हूं, पिताजी खेती करते थे और वह मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन मुझे थियेटर का जुनून था और मैं झूठ बोलकर थियेटर करने जाता था. मनोज कहते हैं, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से पढ़ाई करने के बाद उनका सपना अभिनेता बनने का था, लेकिन वह पहली प्रवेश परीक्षा में असफल हो गये.
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उस वक्त हालात ऐसे थे कि मैं अपने घर भी नहीं लौट सका. अभिनेता बनने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प भी नहीं था. असफल होने पर मैं टूट गया. नर्वस हो गया था. उस समय वहां एक मशहूर थिएटर ग्रुप की 365 दिन की वर्कशॉप चल रही थी. दोस्तों ने मेरी फीस भरकर मुझे ज्वाइन करने के लिए प्रेरित किया, यही मेरे जीवन का टर्निंग प्वाइंट था. उसके बाद मैं पुरानी बातों को पूरी तरह से भूल गया. राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता मनोज वाजपेयी ने कहा कि कोलकाता के फिल्म फेस्टिवल में आकर बहुत अच्छा लगता है और मुझे उम्मीद है कि मेरी फिल्म ‘जोहरम’ को भी लोगों का भरपूर प्यार मिलेगा.
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मनोज कहते हैं, वह मलायली व तेलगु फिल्में भी देखते हैं, उन्होंने मृणाल सेन की सभी फिल्में देखी है. बांग्ला फिल्म निर्देशकों से बहुत मोटिवेशन मिलता है. अच्छा रोल मिले तो वह बांग्ला फिल्मों में भी काम करना पसंद करेंगे. मनोज कहते हैैं कि जुवेनाइल एक्ट के बारे में वह जानते हैं लेकिन पोक्सो एक्ट के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, अपनी फिल्म के किरदार के लिए उन्होंने इसका अध्ययन किया. क्राइम अगेंस्ट वायलेंस, एक बहुत बड़ा मसला है. ‘एक बंदा काफी है’ फिल्म में इसको उठाया गया.
मनोज कहते हैं कि माता-पिता को कभी भी अपने बच्चों के सामने अपनी अपेक्षाओं के बारे में बात नहीं करनी चाहिए, इससे बच्चे के मन में तनाव हो सकता है, क्योंकि बच्चे कभी भी अपने माता-पिता की नजरों में असफल नहीं होना चाहते. जब वे असफल हों तो उनको मोटिवेशन देना चाहिए. मनोज ने कहा कि भारतीय फिल्म उद्योग की अपनी पहचान है, यह किसी भी तरह हॉलीवुड से प्रेरित नहीं है, बल्कि इसमें मौलिकता है. नंदन परिसर में मनोज वाजपेयी ने मास्टर क्लास में अपने फिल्मी जीवन के अनुभव दर्शकों से साझा किये.
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