Adhik Maas Amavasya 2023: हिन्दू धर्म में अमावस्या का दिन बेहद खास होता है. अमावस्या के दिन स्नान-दान, पूजा-पाठ और तर्पण इत्यादि कर्म करने से साधकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है. इस साल अधिक मास में पड़ने वाली अमावस्या तिथि बेहाद खास माना जा रहा है. क्योंकि अधिक मास में पड़ने वाली अमावस्या तिथि तीन साल के अंतराल के बाद आती है. अधिक मास अमावस्या के दिन विशेष संयोग का निर्माण हो रहा है. अधिकमास अमावस्या पर जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म करता है उनके पूर्वजों की आत्मा तृप्त रहती है और परिवार के सारे दुख दूर हो जाते हैं. आइए जानते हैं सावन अधिकमास अमावस्या की डेट, स्नान-दान मुहूर्त और महत्व.
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अधिकमास अमावस्या तिथि का शुभारंभ 15 अगस्त दिन सोमवार दोपहर 12 बजकर 42 मिनट पर होगा.
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अमावस्या तिथि का समापन 16 अगस्त दिन मंगलवार दोपहर 03 बजकर 07 मिनट पर हो जाएगा.
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उदया तिथि मान्य होने के कारण अधिक अमावस्या 16 अगस्त 2023 दिन मंगलवार को मनाई जाएगी.
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इस दिन सावन अधिक मास का पंचम मंगला गौरी व्रत रखा जाएगा.
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मंगलवार के दिन पड़ने के कारण इसे दर्शन अमावस्या के नाम से भी जाना जाएगा.
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अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में गोचर करते हैं. जिसके कारण चंद्रमा कमजोर हो जाते हैं. अमावस्या को रिक्ता तिथि कहे जाने के कारण इस दिन किसी प्रकार का कोई भी शुभ कार्य शुरू नहीं होता है. अमावस्या के दिन पितरों को प्रसन्न करने के लिए जरूरतमंद लोगों को दवा, वस्त्र और भोजन दान किया जाता है. इस दिन स्नान-दान, पूजा-पाठ और तर्पण-पिंडदान से अपने पितरों को प्रसन्न किया जा सकता है.
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श्रावण अधिक मास की अमावस्या तिथि के दिन पीपल के पेड़ के नीचे दीपक प्रज्वलित करना चाहिए. ऐसा करने के साथ वृक्ष की सात बार परिक्रमा करनी चाहिए.
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अमावस्या तिथि के दिन पीपल के अतिरक्त बरगद, तुलसी, शमी इत्यादि की पूजा भी करें. पीपल के वृक्ष की उपासना को इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि इस वृक्ष में त्रिदेवों का वास होता है.
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अमावस्या के दिन भगवान शिव को काला तिल अर्पित करें. ऐसा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है. श्रावन अमावस्या तिथि के दिन तुसली के पौधे के निकट भी दीपक प्रज्वलित करें.
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धार्मिक शास्त्रों में अमावस्या तिथि के महत्व को विस्तार से बताया गया है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अमावस्या तिथि के दिन स्नान-दान और तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है. इसके साथ ही कुंडली में उत्पन्न हो रहे ग्रहों के अशुभ प्रभाव से छुटकारा मिल जाता है. इस विशेष दिन पर पीपल के वृक्ष की उपासना करने से साधक को सुख, समृद्धि एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.
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श्राद्ध काला तिल, जौ कुश आदि से मंत्रोच्चारण विधि से करते हैं. इस दौरान अपने भूले-बिसरे पितरों का स्मरण करते हैं.
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सर्वपितृ अमावस्या के दिन किसी बर्तन में जल, दूध, काला तिल, शहद और जौ मिलाकर पीपल के पेड़ में चढ़ाएं. ऐसा करने के बाद वहां सफेद मिठाई, एक नारियल, कुछ सिक्के और जनेऊ भी अर्पित करें.
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मान्यता है कि ऐसा करने से पितर देव (pitru dev) प्रसन्न होते हैं. इसके बाद ‘ॐ सर्वपितृ देवताभ्यो नमः’ मंत्र का जाप करते हुए पीपल की परिक्रमा करें. इसके साथ ही मन ही मन पितृ देव से प्रर्थना करें.
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पितर पक्ष के महीने में दान पूण्य करने का विशेष महत्व होता है. जल में काला तिल मिलाकर तर्पण करने से पितरों को आशीर्वाद मिलता है. इससे जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है.