Jharkhand News : झारखंड के पूर्वी सिंहभूम में मरे सूअरों के सैंपल की भोपाल में होगी जांच, एडवाइजरी जारी

Jharkhand News : जमशेदपुर और आसपास के इलाके में सूअरों की हो रही मौत की जांच में तेजी लायी गयी है. पशुपालन पदाधिकारी सुरेंद्र कुमार के निर्देश पर लगातार टीम गांवों का दौरा कर रही है. पटमदा, कमलपुर और आसपास के इलाके में हुई सूअरों की मौत के बाद सैंपल का कलेक्शन लिया गया.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 3, 2022 4:11 PM

Jharkhand News : जमशेदपुर और आसपास के इलाके में सूअरों की हो रही मौत की जांच में तेजी लायी गयी है. पशुपालन पदाधिकारी सुरेंद्र कुमार के निर्देश पर लगातार टीम गांवों का दौरा कर रही है. पटमदा, कमलपुर और आसपास के इलाके में हुई सूअरों की मौत के बाद सैंपल का कलेक्शन लिया गया. इसके बाद इसको जांच के लिए रांची से भोपाल भेजा जायेगा. वैसे इस बात के संकेत मिल चुके हैं कि सूअरों की मौत अफ्रीकन स्वाइन फीवर के कारण हुई है. वैसे पुष्टि सैंपल की रिपोर्ट आने के बाद ही होगी. पशुपालन पदाधिकारी सुरेंद्र कुमार ने बताया कि पटमदा, कमलपुर, चाकुलिया में सुअरों की मौत के बाद सैंपल की जांच की गयी है.

संक्रामक रोग है, बीमार सूअर से स्वस्थ सूअर में फैलता है

पूर्वोतर राज्य असम में असामान्य रूप से सूअर की मौत के लिए अफ्रीकन स्वाइन फीवर बीमारी की पुष्टि हुई है. झारखंड सूअर प्रजनन प्रक्षेत्र, कांके, रांची में इस बीमारी से सूअरों की मौत की पुष्टि आइसीएआर, भोपाल की रिपोर्ट से हुआ है. दावा किया गया है कि यह बीमारी जानवरों से मनुष्यों में नहीं फैलती है. यह रोग सिर्फ सूअरों को संक्रमित करता है. सूअर पालने वाले पशुपालकों को होने वाले आर्थिक नुकसान को देखते हुए पूर्वी सिंहभूम जिला प्रशासन की ओर से पशुपालकों के लिए एडवाइजरी जारी की गयी है. इसमें बताया गया है कि अफ्रीकन स्वाइन फीवर या अफ्रीकन सूकर ज्वर एक विषाणुजनित संक्रामक का रोग है. इसमें बीमार सूअर के संपर्क में आने से स्वस्थ सूअर में फैल सकता है. बीमार सूअर के मलमूत्र और दूषित दाना पानी से रोग संक्रामक हो सकता है. सूअर पालक अथवा देख भाल करने वालों के लोगों के जरिये भी यह रोग फैलता है.

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रोग के प्रमुख लक्षण

इस रोग में सूअरों को तीव्र ज्वर, भूख न लगना या खाना छोड़ देना, उल्टी एवं दस्त (कभी- कभी खूनी दस्त),कान, छाती, पेट एवं पैरों में लाल चकत्तेदार धब्बा, लड़खड़ाते हुए चलना तथा 1 से 14 दिनों में मृत्यु संभव है. कुछ मामलों में किसी-किसी में मृत्यु के बाद मुख एवं नाक से रक्त का स्राव होता है.

रोग से बचाव एवं रोकथाम

इस रोग का कोई इलाज या टीका नहीं है. सतर्कता ही इस रोग से बचाव है.

क्या ना करें

• संक्रमित क्षेत्र में सूअरों की खरीद-बिक्री ना करें.

• सूअर फार्म में अनावश्यक आवाजाही पर रोक लगायें.

• संक्रमित क्षेत्र में सूअर मांस की बिक्री पर रोक लगायें.

• सूअर के बाड़े में अन्य जाति के पशुओं के आवाजाही पर रोक लगावें.

क्या करें

• यदि पशुपालक सूअरों को जूठन अवशेष भोजन के रूप में देते हैं, तो वैसी स्थिति में भोजन को 20 मिनट उबाल कर दें.

• मृत सूअर संक्रमित भोजन एवं मल को गहरा गड्ढा खोदकर चूने के साथ दफना दें.

• सूकर बाड़े की सफाई प्रतिदिन एंटीसेप्टिक / कीटाणुनाशक घोल से करें.

• बाह्य परिजीवी (चमोकन आदि) पर नियंत्रण करें.

• असामान्य या अत्यधिक संख्या में मृत्यु होने पर निकटतम पशु चिकित्सालय में सूचना दें.

• पशुचिकित्सा पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों को रोग नियंत्रण क्रियाकलापों में सूअर पालक अपना सहयोग दें.

Posted By : Guru Swarup Mishra

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