आगरा. एसएन मेडिकल कॉलेज के पोस्टमार्टम हाउस के जारों में सैकड़ों हत्या, आत्महत्या और दुर्घटनाओं के राज दबे छिपे पड़े हैं. एक कमरे में सालों से लगभग 1500 से ज्यादा विसरा जार में रखे हैं. इंसाफ के महत्वपूर्ण कड़ी ये विसरा कूड़े की तरह कमरे में पड़े हुए हैं. आलम यह है कि उनके नंबर मिट चुके हैं और उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है. ना तो स्वास्थ्य विभाग इसकी परवाह कर रहा है और ना ही कोई जिम्मेदार अधिकारी.जानकारी करने पर पता चला कि पोस्टमार्टम हाउस के पास एक कमरे में रखे हुए यह विसरा के जार 1990 से 2004 के मध्य के हैं. एक कर्मचारी को इस कमरे की देखरेख के लिए स्वास्थ्य विभाग की तरफ से तैनात किया गया था. लेकिन मौके पर कोई भी कर्मचारी इसकी देखभाल के लिए मौजूद नहीं है. यह हम नहीं बल्कि कमरे में अस्त-व्यस्त तरीके से पड़े हुए जार बता रहे हैं. जिस कमरे में जार रखे हुए हैं इस कमरे में कई शवों के कपड़े, बाल व अन्य सामान भी बिखरे पड़े हैं. उन्हीं के बीच विसरो के यह जार किसी की बाट जोह रहे हैं. साथ ही कमरे का दरवाजा टूटा हुआ है. खिड़कियां भी टूट चुकी हैं. कमरे में चारों तरफ गंदगी है और जार जमीन पर गिरे हुए हैं. जार पर लिखे हुए नंबर या तो मिट गए हैं या हल्के पड़ गए हैं. अगर किसी केस के लिए संबंधित विसरा की जरूरत पड़ी तो इस कमरे में उसे ढूंढना काफी मुश्किल हो जाएगा.
ये विसरा ऐसे लोगों के हैं जिनके शव के पोस्टमॉर्टम में मौत की वजह साफ नहीं हुई. नियमानुसार मौत का कारण स्पष्ट न होने पर ही विसरा रखा जाता है. जिससे जांच या मुकदमे के दौरान स्थिति स्पष्ट हो सके. पुलिस की जिम्मेदारी होती है कि विसरा विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेजे जाएं, जहां जांच हो सके. यह विसरा जांच के लिए गए है या नहीं, इसकी जानकारी भी किसी के पास नहीं है. परीक्षण के लिए विज्ञान प्रयोगशाला में विसरे को उबालकर पहले तरल रूप में लिया जाता है. इसके बाद देखा जाता है कि इसमें शराब या जहर तो नहीं है. अगर शराब या जहर का टेस्ट पॉजिटिव आता है तो उसकी पुष्टि के लिए एक और परीक्षण किया जाता है. पुष्टि होने पर रिपोर्ट दे दी जाती है कि विसरा में कौन सा जहर या कौन सी शराब मिली है. जब पोस्टमॉर्टम में मौत की वजह स्पष्ट न हो तो विसरा संरक्षित किया जाता है. इसमें शरीर के लीवर, किडनी, प्लीहा के हिस्से और तरल पदार्थ होते हैं.
कर्मचारियों ने बताया कि पिछले 12 सालों से इस कमरे से कोई भी विसरा जांच के लिए नहीं गया है. 2019 तक कमरे का दरवाजा बंद रहता था. लेकिन अब दरवाजा हमेशा खुला रहता है. सालों से यहां न तो पुलिस या स्वास्थ्य विभाग का कोई अधिकारी किसी मामले में जांच के लिए विसरा लेने आया है. कमरे में रखे विसरा के जारों को नष्ट करने के ऑर्डर पहले भी कई बार हो चुके हैं. लेकिन स्वास्थ्य विभाग और पुलिस के पाले में गेंद फेंकने से इनका निस्तारण नहीं हो रहा है. इन सभी विसरों की रिपोर्ट कहां, यह भी स्पष्ट नहीं है. हालांकि अब सीएमओ डॉ. अरुण श्रीवास्तव का कहना है कि जल्द ही इन सभी जारों को नष्ट किया जाएगा. इससे पहले इनका रिकॉर्ड चैक करवा रहे हैं.