Ahoi ashtami 2020: आज अहोई अष्टमी का पर्व है. आज महिलाएं अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए अहोई व्रत रखेंगी. महिलाओं के लिए एक विशेष पर्व अहोई अष्टमी भी माना जाता है. इस पर्व को खासतौर पर उत्तर भारत में मनाया जाता है. इस दिन महिलाएं उपवास करती हैं साथ ही अहोऊ देवी की पूजा करती है. यह व्रत दीपावली से ठीक एस सप्ताह पूर्व आता है. अधिकतर जिस दिन की अहोई अष्टमी होती है, उसी दिन की दिवाली मनाई जाती है. कहा जाता है इस व्रत को संतान वाली स्त्रियां करती हैं.
यह व्रत महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और मंगलकामना के लिए करती हैं. परिवार की सुख समृद्धि और खुशहाली के लिए अहोई माता का व्रत रखा जाता है और विधि विधान से उनकी पूजा अर्चना की जाती है. इस वर्ष अहोई अष्टमी का व्रत 8 नवंबर को है. यह दीपावली से एक हफ्ते पहले आता है. आइए जानते हैं अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त और क्या है इसका महत्व…
इस बार अहोई अष्टमी 8 नवम्बर 2020 दिन रविवार को पड़ रहा है. कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन यह पर्व मनाया जाता है. 8 नवंबर को सूर्योदय से लेकर रात में 1:36 तक अष्टमी तिथि व्याप्त रहेगी. इस पर्व में भी चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी का ही विशेष महत्त्व है ,अतः अष्टमी तिथि में चन्द्रोदय रात में 11 बजकर 39 मिनट पर होगा. इन दिन सास के चरणों को तीर्थ मानकर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है. वहीं कुछ जगह सास को बायना भी दिया जाता है.
8 नवंबर दिन रविवार की शाम 5 बजकर 26 मिनट से शाम 6 बजकर 46 मिनट तक
अवधि- 1 घंटा 19 मिनट
अष्टमी तिथि आरंभ- 8 नवंबर की सुबह 7 बजकर 28 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त- 8 नवंबर की सुबह 6 बजकर 50 मिनट तक
इस दिन माताएं सूर्योदय से पूर्व स्नान करके व्रत रखने का संकल्प लें. अहोई माता की पूजा के लिए दीवार या कागज पर गेरू से अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं. सायंकाल के समय पूजन के लिए अहोई माता के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर जल से भरा कलश रखें. तत्पश्चात रोली-चावल से माता की पूजा करें. मीठे पुए या आटे के हलवे का भोग लगाएं. कलश पर स्वास्तिक बना लें और हाथ में गेंहू के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा सुनें, इसके उपरान्त तारों को अर्घ्य देकर अपने से बड़ों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें.
अहोई अष्टमी व्रत का महत्व बहुत ही ज्यादा है. यह पर्व खासतौर से माताओं के लिए होता है. क्योंकि अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं अपने बच्चों के कल्याण के लिए व्रत रखती हैं. इस दिन निर्जला उपवास रखकर रात को चंद्रमा या तारों को देखने के बाद ही व्रत खोला जाता है. इस दिन जो महिलाएं यह व्रत करती हैं वो शाम के समय दीवार पर आठ कोनों वाली एक पुतली बनाती हैं. दीवार पर बनाई गई इस पुतली के पास ही स्याउ माता और उसके बच्चे भी बनाए जाते हैं. फिर इसकी पूजा की जाती है. जो महिलाएं नि:संतान हैं वो भी संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी का व्रत या उपवास करती हैं. यह व्रत दीपावली से एक हफ्ता पहले और करवा चौथ के 4 दिन बाद आता है.
मान्यता है कि एक शहर में एक साहूकार के 7 लड़के रहते थे. साहूकार की पत्नी दिवाली पर घर लीपने के लिए अष्टमी के दिन मिट्टी लेने गई. जैसे ही मिट्टी खोदने के लिए उसने कुदाल चलाई वह सेह की मांद में जा लगी, जिससे कि सेह का बच्चा मर गया. साहूकार की पत्नी को इसे लेकर काफी पश्चाताप हुआ, इसके कुछ दिन बाद ही उसके एक बेटे की मौत हो गई. इसके बाद एक-एक करके उसके सातों बेटों की मौत हो गई. इस कारण साहूकार की पत्नी शोक में रहने लगी.
एक दिन साहूकार की पत्नी ने अपनी पड़ोसी औरतों को रोते हुए अपना दुख की कथा सुनाई, जिस पर औरतों ने उसे सलाह दी कि यह बात साझा करने से तुम्हारा आधा पाप कट गया है. अब तुम अष्टमी के दिन सेह और उसके बच्चों का चित्र बनाकर मां भगवती की पूजा करो और क्षमा याचना करो. भगवान की कृपा हुई तो तुम्हारे पाप नष्ट हो जाएंगे. ऐसा सुनकर साहूकार की पत्नी हर साल कार्तिक मास की अष्टमी को मां अहोई की पूजा व व्रत करने लगी. माता रानी कृपा से साहूकार की पत्नी फिर से गर्भवती हो गई और उसके कई साल बाद उसके फिर से सात बेटे हुए. तभी से अहोई अष्टमी का व्रत चला आ रहा है.
News Posted by: Radheshyam Kushwaha