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अहोई अष्टमी व्रत विधि Ahoi Ashtami Vrat Vidhi
अहोई अष्टमी के दिन माताएं सबसे पहले उठकर स्नान करें. इसके बाद अहोई अष्टमी व्रत रखने का संकल्प लें. अहोई माता की पूजा के लिए दीवार पर गेरू से माता अहोई का चित्र बनाएं. साथ ही सेह और उनके सात पुत्रों का चित्र बनाएं. फिर आप चाहें तो उनका रेडिमेड चित्र या प्रतिमा भी लगा सकते हैं. इसके बाद जल से भरा हुआ कलश रखें. रोली-चावल से अहोई माता की पूजा करें.
अब अहोई माता को मीठे पुए या आटे के हलवे का भोग लगाएं. कलश पर स्वास्तिक बनाकर हाथ में गेंहू के सात दाने लें. अब अहोई माता की कथा सुनें. फिर तारों को अर्घ्य देकर अपने से बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लें. कई लोग इस दिन चांदी के सेह के मोतियों की माला भी पहनते हैं, जबकि कुछ लोग अहोई अष्टमी के दिन मीठे पुए बनाकर अपने बच्चों को आवाज लगाकर बुलाने की प्राचीन परंपरा भी निभाते हैं.
अहोई माता की आरती
॥ आरती अहोई माता की ॥
जय अहोई माता,जय अहोई माता।
तुमको निसदिन ध्यावतहर विष्णु विधाता॥
जय अहोई माता...॥
ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमलातू ही है जगमाता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावतनारद ऋषि गाता॥
जय अहोई माता...॥
माता रूप निरंजनसुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावतनित मंगल पाता॥
जय अहोई माता...॥
तू ही पाताल बसंती,तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशकजगनिधि से त्राता॥
जय अहोई माता...॥
जिस घर थारो वासावाहि में गुण आता।
कर न सके सोई कर लेमन नहीं धड़काता॥
जय अहोई माता...॥
तुम बिन सुख न होवेन कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभवतुम बिन नहीं आता॥
जय अहोई माता...॥
शुभ गुण सुंदर युक्ताक्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकूकोई नहीं पाता॥
जय अहोई माता...॥
श्री अहोई माँ की आरतीजो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजेपाप उतर जाता॥
जय अहोई माता...॥
पूजन सामग्री
तेल से बने पदार्थ जैसे मट्ठी, सीरा, गुलउवरा, पूए, चावल और साबुत उरद की दाल, मूली के साथ ही गेहूं अथवा मक्की के सात दाने हाथ मे लेकर, तेल का दिया जलाकर अहोई माता का पूजन करें. जल के पात्र को रखकर उस पर स्वास्तिक बनाएं. मिट्टी की हांडी व बर्तन में खाने वाला सामान डालकर पूजा करें.
पूजा-मूहूर्त
ड्रिंक पंचाग के अनुसार, आठ नवंबर यानि आज अहोई अष्टमी है. अहोई अष्टमी व्रत की पूजा मूहूर्त शाम 5 बजकर 31 मिनट से शुरु होगा, जो शाम 6 बजकर 50 मिनट तक चलेगा. मूहूर्त की अवधि 1 घंटा 19 मिनट है. तारों को देखने का समय शाम 5 बजकर 56 मिनट है. वहीं अहोई अष्टमी के दिन चंद्रोदय का समय 11 बजकर 56 मिनट है. अष्टमी तिथि 8 नवंबर 2020 को शाम 7 बजकर 29 मिनट पर शुरु होगी जो 9 नवंबर को सुबह 6 बजकर 50 मिनट तक रहेगी.
आज अहोई अष्टमी पर आज का पंचांग इस प्रकार है
हिंदू पंचांग के अनुसार, विक्रम संवत् 2077,परमदिचा व शाखा संवत् 1942, श्रावणी है. आज कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि सुबह 7:29 बजे तक ही है. इसके बाद से अहोई अष्टमी का काल शुरू होता है. आज दिन रविवार है. सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा कर्क राशि में है.
चंद्रोदय का समय
कुल अवधि: 1 घंटे 19 मिनट.
तारों को देखने का समय: 8 नवंबर 2020 को शाम 05 बजकर 56 मिनट.
चंद्रोदय का समय: 8 नवंबर 2020 को रात 11 बजकर 56 मिनट तक.
अहोई अष्टमी की तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त
अहोई अष्टमी की तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त
अहोई अष्टमी की तिथि: 8 नवंबर 2020
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 8 नवंबर 2020 को सुबह 07 बजकर 29 मिनट से.
अष्टमी तिथि समाप्त: 9 नवंबर 2020 को सुबह 06 बजकर 50 मिनट तक.
पूजा का मुहूर्त: 8 नवंबर को शाम 05 बजकर 31 मिनट से शाम 06 बजकर 50 मिनट तक.
जानिए अहोई अष्टमी के बारे में
अहोई अष्टमी का पर्व हर साल कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती है और रात में तारों को जल अर्पित करने के बाद व्रत को खोलती है. अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता(पार्वती) की पूजा की जाती है.
संतान का सुख पाने के लिए ये व्रत है जरूरी
संतान का सुख पाने के लिए इस दिन अहोई माता और शिव जी को दूध भात का भोग लगाएं. चांदी की नौ मोतियां लेकर लाल धागे में पिरो कर माला बनायें. अहोई माता को माला अर्पित करें और संतान को संतान प्राप्ति की प्रार्थना करें. पूजा के उपरान्त अपनी संतान और उसके जीवन साथी को दूध भात खिलाएं. अगर बेटे को संतान नहीं हो रही हो तो बहू को , और बेटी को संतान नहीं हो पा रही हो तो बेटी को माला धारण करवाएं.
कैसे रखें इस दिन उपवास?
प्रातः स्नान करके अहोई की पूजा का संकल्प लें. अहोई माता की आकृति, गेरू या लाल रंग से दीवार पर बनाएं. सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर पूजन आरम्भ करें. पूजा की सामग्री में एक चांदी या सफेद धातु की अहोई, चांदी की मोती की माला, जल से भरा हुआ कलश, दूध-भात, हलवा और पुष्प, दीप आदि रखें. पहले अहोई माता की रोली, पुष्प, दीप से पूजा करें और उन्हें दूध भात अर्पित करें. फिर हाथ में गेंहू के सात दाने और कुछ दक्षिणा (बयाना) लेकर अहोई की कथा सुनें. कथा के बाद माला गले में पहन लें और गेंहू के दाने तथा बयाना सासु मां को देकर उनका आशीर्वाद लें. अब तारों को अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करें.
शिव व पार्वती की पूजा का विधान
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को अहोई माता का व्रत रखा जाता है. इस दिन अहोई माता के साथ भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है. होई व्रत रखकर माताएं अपनी संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं. अहोई के दिन विशेष पूजा-अर्चना करने से संतान की उन्नति और कल्याण होगा। इस दिन चांदी की अहोई बनाकर उसकी पूजा करने का विधान है. अहोई में चांदी के मनके भी डाले जाते हैं और हर व्रत में इनकी एक संख्या बढ़ाते जाते हैं.
सर्वार्थसिद्धि व रविपुष्य योग
संतान के अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए कार्तिक मास की अष्टमी को माताएं अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं. इस बार यह व्रत 8 नवम्बर रविवार को सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि पुष्य योग के साथ है जो कि शुभकारी व श्रेष्ठ फलदायक है. इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं और रात को तारों को देखकर व्रत को खोलती हैं. शाम को स्याहु माता की पूजा की जाती है.
अहोई अष्टमी का महत्व
इस दिन महिलाएं व्रत रखकर अपने संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं. जिन लोगों को संतान नहीं हो पा रही हो उनके लिए ये व्रत विशेष है. जिनकी संतान दीर्घायु न होती हो उनके लिए भी ये व्रत शुभकारी होता है. सामान्यतः इस दिन विशेष प्रयोग करने से संतान की उन्नति और कल्याण भी होता है. ये उपवास आयुकारक और सौभाग्यकारक होता है.
अहोई अष्टमी का क्या है महत्व
इस व्रत के प्रभाव से संतान स्वस्थ होकर दीर्घायु को प्राप्त करता है। यह व्रत मुख्यत: सूर्योदय से लेकर सूयोस्त के बाद तक होता है। शाम के समय में आकाश में तारों को देखकर व्रत का पारण किया जाता है। कुछ स्थानों पर माताएं चंद्रमा दर्शन के बाद ही पारण करती है।अहोई अष्टमी की पूजा शाम 05 बजकर 30 मिनट से शाम 06 बजकर 58 मिनट के बीच कर लेना चाहिए।
अहोई अष्टमी का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अहोई अष्टमी एक तरह से माताओं का त्योहार है. इसमें माएं अपने बच्चों के कल्याण के लिए इस व्रत का पालन करती हैं. चंद्रमा या तारों को देखने और पूजा करने के बाद ही यह उपवास तोड़ा जाता है. इस दिन पुत्रवती स्त्रियां निर्जल व्रत रखती हैं और शाम के समय दीवार पर आठ कोनों वाली एक पुतली बनाती हैं. पुतली के पास ही स्याउ माता और उसके बच्चे भी बनाए जाते हैं. इसके अलावा नि:संतान महिलाएं भी संतान प्राप्ति की कामना से अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं. यह व्रत करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अष्टमी तिथि को पड़ता है.
पूजा विधि
दीवार पर अहोई माता की तस्वीर बनाई जाती है. फिर रोली, चावल और दूध से पूजन किया जाता है. इसके बाद कलश में जल भरकर माताएं अहोई अष्टमी कथा का श्रवण करती हैं. अहोई माता को पूरी औऱ किसी मिठाई का भी भोग लगाया जाता है. इसके बाद रात में तारे को अघ्र्य देकर संतान की लंबी उम्र और सुखदायी जीवन की कामना करने के बाद अन्न ग्रहण करती हैं. इस व्रत में सास या घर की बुजुर्ग महिला को भी उपहार के तौर पर कपड़े आदि दिए जाते हैं.
दूध चावल का भोग माना गया है शुभ
करवा चौथ के चार दिन बाद अष्टमी तिथि को देवी अहोई व्रत मनाया जाता है. करवाचौथ में इस्तेमाल किए गए करवे में जल भरकर शाम को माता की पूजा होती है. इसके बाद कथा के बाद उन्हें फल, फूल और मिठाई भोग लगाते हैं. रात तारों को करवे से अर्घ्य देने के बाद रात में व्रत का समापन किया जाता है. अहोई माता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाना शुभ माना गया है.
अहोई अष्टमी का महत्व
उत्तर भारत में अहोई अष्टमी के व्रत का विशेष महत्व है. इसे 'अहोई आठे' भी कहा जाता है क्योंकि यह व्रत अष्टमी के दिन पड़ता है. अहोई यानी के 'अनहोनी से बचाना'. किसी भी अमंगल या अनिष्ट से अपने बच्चों की रक्षा करने के लिए महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं. यही नहीं संतान की कामना के लिए भी यह व्रत रखा जाता है. इस दिन महिलाएं कठोर व्रत रखती हैं और पूरे दिन पानी की बूंद भी ग्रहण नहीं करती हैं.
अहोई माता को माला चढ़ाए
निःसंतान माताएं अहोई अष्टमी को चांदी की 9 मोलियों की माला अहोई माता को चढ़ाएं. सबसे पहले माता अहोई का ध्यान करते हुए इन 9 मोतियों को लाल धागे में पिरो लें उसके बाद अहोई अष्टमी के दिन इस माला को माता अहोई की पूजा के दौरान अर्पित करें और पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगें. ऐसा करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी.
इस रंग के फूल को अर्पित करे
अहोई अष्टमी के दिन पूजा के दौरान माता अहोई को सफ़ेद फूल अर्पित करें. घर में जीतन सदस्य हैं उतने पेड़ लगाएं और बीच में एक तुलसी का भी पेड़ लागएं. साथ ही शाम को सितारों से प्रार्थना करें. इससे मनोकामना पूरी होगी.
अहोई अष्टमी की तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त
अहोई अष्टमी की तिथि: 8 नवंबर 2020
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 8 नवंबर 2020 को सुबह 07 बजकर 29 मिनट से.
अष्टमी तिथि समाप्त: 9 नवंबर 2020 को सुबह 06 बजकर 50 मिनट तक.
पूजा का मुहूर्त: 8 नवंबर को शाम 05 बजकर 31 मिनट से शाम 06 बजकर 50 मिनट तक.
कुल अवधि: 1 घंटे 19 मिनट.
तारों को देखने का समय: 8 नवंबर 2020 को शाम 05 बजकर 56 मिनट.
चंद्रोदय का समय: 8 नवंबर 2020 को रात 11 बजकर 56 मिनट तक.
दूध भात का भोग लगाएं
हिन्दू धर्म ग्रंथ के मुताबिक़, संतान प्राप्ति के लिए अहोई माता की पूजा करें उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती को दूध भात का भोग लगाएं. शाम को बनाए गए भोजन का आधा भाग गाय को खिला दें. शाम को पीपल के पेड़ पर दीप जलाएं और परिक्रमा करें. इससे अहोई माता प्रसन्न होकर आपकी मनोकामना पूरी करती हैं.