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अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त (Ahoi Ashtami Auspicious Time)
अहोई अष्टमी 17 अक्तूबर सोमवार की सुबह 9:29 बजे से शुरू होकर 18 अक्टूबर की सुबह 11:57 बजे तक रहेगा. पूजा का शुभ मुहूर्त 17 अक्तूबर को शाम 5:57 बजे से रात 7:12 बजे तक है. तारा देखने का समय शाम 6:20 बजे तक है. जबकि चंद्रोदय रात 11:35 बजे होगा.
अहोई अष्टमी में इस मंत्र का करें जाप
अहोई अष्टमी से 45 दिनों तक ‘ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नमः’ का 11 माला जाप करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि संतान कामना की इच्छा रखने वाले लोगों की भी इच्छा पूरी हो जाती है.
अहोई अष्टमी में गणेश जी की पूजा का है विशेष महत्व
अहोई अष्टमी के दिन तारों को अर्घ्य देते हैं. तारों के निकलने के बाद ही अपने उपवास को तोड़ें.
अहोई अष्टमी के दिन व्रत कथा सुनते समय 7 तरह के अनाज अपने हाथ में रखें. पूजा के बाद इस अनाज को किसी गाय को खिला दें.
अहोई अष्टमी के दिन पूजा करते समय बच्चों को अपने पास बिठाएं और अहोई माता को भोग लगाने के बाद वो प्रसाद अपने बच्चों को जरूर खिलाएं.
शुभ समय (Ahoi Ashtami Auspicious Time, Shubh Muhurat)
अष्टमी तिथि का आरंभ- हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ 17 अक्टूबर 2022 को सुबह 09 बजकर 29 मिनट से हो जाएगा, जो 18 अक्टूबर 2022 को सुबह 11 बजकर 57 मिनट तक बना रहेगा
पूजा का शुभ मुहूर्त- शाम 05 बजकर 50 मिनट से लेकर 07 बजकर 05 मिनट तक बताया जा रहा है
तारों को देखने का समय- 17 अक्टूबर की शाम 06 बजकर 13 मिनट तक
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय- 17 अक्टूर की रात 11 बजकर 24 मिनट पर
अहोई अष्टमी पर बरतें सावधानियां
इस पूजा में खास कर महिलाएं ज्यादा ध्यान दें. आज के दिन बिना स्नान किए पूजा-अर्चना ना करें. इस दिन महिलाओं को मिट्टी से जुड़े किसी तरह का कार्य करने से बचना चाहिए. इस दिन काले, नीले या गहरे रंग के वस्त्र का धारण न करें.
अहोई पर तारे निकलने का समय
इस साल अहोई अष्टमी सोमवार यानी 17 अक्टूबर को सुबह 09 बजकर 29 मिनट से लेकर मंगलवार, 18 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 57 मिनट तक रहेगी. अहोई अष्टमी पर तारे देखकर अर्घ्य देने का विधान है.
अहोई अष्टमी के दिन राधाकुंड की हुई थी स्थापना
माना जाता है कि राधाकुंड की स्थापना द्वापरयुग में अहोई अष्टमी के दिन ही हुई थी. भगवान श्रीकृष्ण ने इस कुंड में रात करीब 12 बजे स्नान किया था इसलिए आज भी यहां अहोई अष्टमी की मध्य रात्रि में ही विशेष स्नान होता हैं हर साल देश विदेश से आए लाखों भक्त यहां कुंड के तट पर स्थित अहोई माता के मंदिर में पूजा करते हैं और आरती कर कुंड में दीपदान करते हैं.
अहोई अष्टमी पर इस कुंड में करें स्नान
मान्यता है कि अहोई अष्टमी के दिन यदि ऐसे दंपति राधा कुंड में स्नान करें, तो उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. राधा कुंड मथुरा नगरी से लगभग 26 किलोमीटर दूर गोवर्धन परिक्रमा के दौरान पड़ता है. हर साल अहोई अष्टमी के दिन यहां पर शाही स्नान का आयोजन किया जाता है. राधा कुंड मथुरा नगरी से करीब 26 किलोमीटर दूर गोवर्धन परिक्रमा के दौरान पड़ता हैं. मान्यता है कि इस रात्रि में अगर पति और पत्नी संतान प्राप्ति की कामना के साथ इस राधा कुंड में डुबकी लगाएं और अहोई अष्टमी का निर्जल व्रत रखें, तो उनके घर में जल्द ही किलकारियां गूंजती हैं इसके अलावा जिन दंपति को यहां स्नान के बाद संतान प्राप्ति हो जाती हैं वे भी इस दिन अपनी संतान के साथ यहां राधा रानी की शरण में हाजरी लगाने आते हैं और इस कुंड में स्नान करते हैं माना जाता हैं कि राधा कुंड में अहोई अष्टमी के दिन स्नान की ये परंपरा द्वापरयुग से चली आ रही हैं.
अहोई अष्टमी पर विशेष संयोग
अभिजीत मुहूर्त: 17 अक्तूबर, सोमवार, दोपहर 12:00 से 12: 47 मिनट तक
शिव योग प्रारंभ: 17 अक्तूबर, सोमवार प्रातःकाल से सायं 04: 02 मिनट तक
सर्वार्थ सिद्धि योग आरंभ: 17 अक्तूबर, सोमवार, प्रातः 05:11 मिनट से
सर्वार्थ सिद्धि योग समाप्त:18 अक्तूबर, सोमवार,प्रातः 06 :32 मिनट तक
मान्यता है इस योग में पूजा करने से दोगुना लाभ प्राप्त होता है.
अहोई अष्टमी पूजा विधि
अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प करती हैं. पूजा के लिए गेरू पर दीवार से अहोई माता का चित्र बनाएं, साथ ही सेही और उनके सात पुत्रों का चित्र भी बनाती हैं. चित्र बनाने की जगह मार्केट से खरीदे गए कैलेंडर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. सामग्री के लिए अहोई माता मूर्ति, माला, दीपक, करवा, अक्षत, पानी का कलश, पूजा रोली, दूब, कलावा, श्रृंगार का सामान, श्रीफल, सात्विक भोजन, बयाना, चावल की कोटरी, सिंघाड़े, मूली, फल, खीर, दूध व भात, वस्त्र, चौदह पूरी और आठ पुए जरूरी होते हैं.
इन बातों का रखें ख्याल
अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता से पहले गणेश जी की पूजा करें
अहोई अष्टमी के दिन तारों को अर्घ्य देते हैं. तारों के निकलने के बाद ही अपने उपवास को तोड़ें.
अहोई अष्टमी के दिन व्रत कथा सुनते समय 7 तरह के अनाज अपने हाथ में रखें. पूजा के बाद इस अनाज को किसी गाय को खिला दें.
अहोई अष्टमी के दिन पूजा करते समय बच्चों को अपने पास बिठाएं और अहोई माता को भोग लगाने के बाद वो प्रसाद अपने बच्चों को जरूर खिलाएं.
शुभ समय (Ahoi Ashtami Auspicious Time, Shubh Muhurat)
अष्टमी तिथि का आरंभ- हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ 17 अक्टूबर 2022 को सुबह 09 बजकर 29 मिनट से हो जाएगा, जो 18 अक्टूबर 2022 को सुबह 11 बजकर 57 मिनट तक बना रहेगा
पूजा का शुभ मुहूर्त- शाम 05 बजकर 50 मिनट से लेकर 07 बजकर 05 मिनट तक बताया जा रहा है
तारों को देखने का समय- 17 अक्टूबर की शाम 06 बजकर 13 मिनट तक
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय- 17 अक्टूर की रात 11 बजकर 24 मिनट पर
अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता से पहले गणेश जी की पूजा करें
अहोई अष्टमी के दिन तारों को अर्घ्य देते हैं. तारों के निकलने के बाद ही अपने उपवास को तोड़ें.
अहोई अष्टमी के दिन व्रत कथा सुनते समय 7 तरह के अनाज अपने हाथ में रखें. पूजा के बाद इस अनाज को किसी गाय को खिला दें.
अहोई अष्टमी के दिन पूजा करते समय बच्चों को अपने पास बिठाएं और अहोई माता को भोग लगाने के बाद वो प्रसाद अपने बच्चों को जरूर खिलाएं.
अहोई अष्टमी व्रत का महत्व
अहोई अष्टमी को अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है. इस व्रत को निर्जला रखा जाता है. पूजा के बाद तारों को देखकर और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद इस व्रत को खोला जाता है. व्रत करने वाली माताएं अहोई माता से अपनी संतान की लंबी आयु और खुशहाली की कामना करती हैं. अहोई अष्टमी व्रत करने से मन की हर मनोकामना पूरी हो जाती है. इस दिन अहोई देवी की तस्वीर के साथ सेई और सई के बच्चों के चित्र की पूजा करने का विधान है.
अहोई अष्टमी मंत्र
अहोई अष्टमी से 45 दिनों तक ‘ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नमः’ का 11 माला जाप करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि संतान कामना की इच्छा रखने वाले लोगों की भी इच्छा पूरी हो जाती है.
शिव और सिद्ध योग में अहोई अष्टमी
अहोई अष्टमी के दिन शिव और सिद्ध योग बना हुआ है. शिव योग प्रात:काल से लेकर शाम 04 बजकर 02 मिनट तक है. उसके बाद से सिद्ध योग प्रारंभ हो जाएगा. सिद्ध योग में पूजा पाठ और व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है. अहोई अष्टमी की तिथि में सर्वार्थ सिद्धि योग भी बना हुआ है. यह 18 अक्टूबर को प्रात: 05 बजकर 13 मिनट से प्रात: 06 बजकर 23 मिनट तक है.
शाम 5:57 बजे से रात 7:12 बजे तक पूजा मुहूर्त
अहोई अष्टमी 17 अक्तूबर सोमवार की सुबह 9:29 बजे से शुरू होकर 18 अक्टूबर की सुबह 11:57 बजे तक रहेगा. पूजा का शुभ मुहूर्त 17 अक्तूबर को शाम 5:57 बजे से रात 7:12 बजे तक है. तारा देखने का समय शाम 6:20 बजे तक है. जबकि चंद्रोदय रात 11:35 बजे होगा.
अहोई अष्टमी पूजा विधि
अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प करती हैं. पूजा के लिए गेरू पर दीवार से अहोई माता का चित्र बनाएं, साथ ही सेही और उनके सात पुत्रों का चित्र भी बनाती हैं. चित्र बनाने की जगह मार्केट से खरीदे गए कैलेंडर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. सामग्री के लिए अहोई माता मूर्ति, माला, दीपक, करवा, अक्षत, पानी का कलश, पूजा रोली, दूब, कलावा, श्रृंगार का सामान, श्रीफल, सात्विक भोजन, बयाना, चावल की कोटरी, सिंघाड़े, मूली, फल, खीर, दूध व भात, वस्त्र, चौदह पूरी और आठ पुए जरूरी होते हैं.
अहोई अष्टमी पूजा सामग्री
अहोई माता मूर्ति या पोस्टर, माला, दीपक, करवा, अक्षत, पानी का कलश, पूजा रोली, दूब, कलावा, श्रृंगार के सामान, श्रीफल, सात्विक भोजन, बयाना, चावल की कोटरी, सिंघाड़े, मूली, फल, खीर, दूध व भात, वस्त्र, चौदह पूरी और आठ पुए आदि.
अहोई अष्टमी व्रत का महत्व (Ahoi Ashtami Importance)
यह व्रत माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए रखती हैं। इस व्रत को बहुत श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाता है. इस दिन भगवान गणेश और कार्तिकेय जी की माता पार्वती की उपासना की जाती है. कहते हैं कि जो माताएं इस दिन व्रत रखती है, उनकी संतानों की दीर्घायु होती है, साथ ही उन्हें अपने जीवन में यश, कीर्ति, वैभव, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है. बताया जाता है कि जिनकी माताएं इस दिन व्रत रखती हैं, उनके बच्चों की रक्षा स्वयं माता पार्वती करती हैं.
भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा
शास्त्रों में बताया गया है कि अहोई अष्टमी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है और परिवार में सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है. इस दिन माताएं अपनी सन्तान के कुशल भविष्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और तारा दिखने के बाद ही व्रत का पारण करती हैं.
अहोई अष्टमी मंत्र
अहोई अष्टमी से 45 दिनों तक ‘ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नमः’ का 11 माला जाप करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि संतान कामना की इच्छा रखने वाले लोगों की भी इच्छा पूरी हो जाती है.
अहोई अष्टमी पूजा सामग्री
अहोई माता मूर्ति या पोस्टर, माला, दीपक, करवा, अक्षत, पानी का कलश, पूजा रोली, दूब, कलावा, श्रृंगार के सामान, श्रीफल, सात्विक भोजन, बयाना, चावल की कोटरी, सिंघाड़े, मूली, फल, खीर, दूध व भात, वस्त्र, चौदह पूरी और आठ पुए आदि.
अहोई अष्टमी व्रत का महत्व
ऐसी मान्यता है कि जिन महिलाओं की संतानें हमेशा बीमार रहती हैं उन्हें यह व्रत जरूर करने चाहिए. संतानें होते ही मर जाती हैं, उन्हें भी यह व्रत अवश्य करना चाहिए. संतानों की अच्छी और लंबी आयु के लिए महिलाओं को यह व्रत करना चाहिए. यह व्रत माता और पिता दोनों करें तो अधिक फल प्राप्त मिलता है.
अहोई व्रत में ना पहनें इन रंगों के कपड़े
अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं को नीले और काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए. जिन महिलाओं ने व्रत रखा हैं वे इन रंगों के कपड़े भूलकर भी धारण न करें.
संध्या काल में पढ़ते हैं अहोई कथा
संध्या के समय अहोई माता की कथा सुनने के बाद तारे काे अर्घ्य देकर पूजा पूर्ण होती है. पूजा के बाद महिलाएं चांदी की बनी स्याहु की माला पहनती हैं.
अहोई माला पहनने का महत्व
अहोई अष्टमी के दिन स्याहु माला को संतान की लंबी आयु की कामना के साथ पहना जाता है. दिवाली तक इसे पहनना आवश्यक माना जाता है. मान्यता है कि इससे पुत्र की आयु लंबी होती है.
अहोई अष्टमी पूजा विधि
अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प करती हैं. पूजा के लिए गेरू पर दीवार से अहोई माता का चित्र बनाएं, साथ ही सेही और उनके सात पुत्रों का चित्र भी बनाती हैं. चित्र बनाने की जगह मार्केट से खरीदे गए कैलेंडर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. सामग्री के लिए अहोई माता मूर्ति, माला, दीपक, करवा, अक्षत, पानी का कलश, पूजा रोली, दूब, कलावा, श्रृंगार का सामान, श्रीफल, सात्विक भोजन, बयाना, चावल की कोटरी, सिंघाड़े, मूली, फल, खीर, दूध व भात, वस्त्र, चौदह पूरी और आठ पुए जरूरी होते हैं.