नयी दिल्ली : अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) ने मंगलवार को फीफा से उस पर लगा प्रतिबंध हटाने का अनुरोध किया. एआईएफएफ ने फुटबॉल की वैश्विक संचालन संस्था फीफा की मांग के अनुरूप उच्चतम न्यायालय के प्रशासकों की समिति (सीओए) को हटाने के बाद यह कदम उठाया है. एआईएफएफ के कार्यवाहक महासचिव सुनंदो धर ने फीफा महासचिव फातमा समौरा से ‘एआईएफएफ को निलंबित करने के फैसले पर पुनर्विचार’ करने का अनुरोध किया.
धर ने कहा, बहुत खुशी के साथ हम आपको सूचित करते हैं कि भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय ने हमारे मामले की सुनवाई की और दिनांक 22 अगस्त 2022 के आदेश के माध्यम से सीओए को पूर्ण रूप से हटा दिया है और परिणामस्वरूप एआईएफएफ को अपने दैनिक कार्यों के संचालन का पूर्ण प्रभार मिल गया है. उन्होंने लिखा, उपरोक्त को देखते हुए हम फीफा और विशेष रूप से ब्यूरो से एआईएफएफ को निलंबित करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करते हैं.
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पत्र में आगे कहा गया है, निलंबन हटाने के लिए आपके पत्र में निर्धारित शर्तें पूरी कर दी गयी हैं इसलिए हम अनुरोध करते हैं कि इस संबंध में जल्द से जल्द आदेश दिया जाए जिससे कि एआईएफएफ भारत में फुटबॉल का सुचारू रूप से संचालन जारी रख पाए. फीफा ने 15 अगस्त को एआईएफएफ को ‘तीसरे पक्ष से अनुचित प्रभाव’ के लिए निलंबित कर दिया था और कहा था कि अंडर-17 महिला विश्व कप ‘वर्तमान में भारत में पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार आयोजित नहीं किया जा सकता है.
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार भारत को 11 से 30 अक्टूबर तक फीफा टूर्नामेंट की मेजबानी करनी है. एआईएफएफ के 85 साल के इतिहास में यह पहली बार है जब फीफा ने उस पर प्रतिबंध लगाया है. उच्चतम न्यायालय ने निलंबन को हटाने और भारत में अंडर-17 महिला विश्व कप के आयोजन का रास्ता साफ करने के लिए सोमवार को अपने पूर्व के आदेश में संशोधन किया.
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उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा, एआईएफएफ के दैनिक कार्यों का प्रबंधन कार्यवाहक महासचिव के नेतृत्व में एआईएफएफ प्रशासन करेगा. इस न्यायालय के आदेश से नियुक्त प्रशासकों की समिति को हटाया जाता है. शीर्ष अदालत ने मतदाता सूची में बदलाव और नामांकन प्रक्रिया शुरू करने के लिए 28 अगस्त को होने वाले एआईएफएफ के चुनावों को एक सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया. यह आदेश खेल मंत्रालय द्वारा दायर एक नयी याचिका पर आया जिसमें फीफा के साथ परामर्श के बाद अदालत के 18 मई और तीन अगस्त के आदेशों में संशोधन की मांग की गयी थी.