Aja Ekadashi Puja Vrat Katha Importance: हिंदू पंचांग के अनुसार अजा एकादशी का व्रत हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है. इस बार अजा एकादशी का व्रत 10 सितंबर दिन रविवार को रखा जाएगा. भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है.
मान्यता है कि अजा एकादशी का व्रत रखने और पूजन करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही अजा एकादशी के दिन पूजन के समय व्रत कथा सुनने से पूजा सफल होती है और व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है. आइए जानते हैं अजा एकादशी की व्रत कथा और इसके महत्व के बारे में…
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के महत्व के बारे में पूछा. तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को अजा एकादशी के नाम से जानते हैं. अजा एकादशी व्रत की कथा इस प्रकार से है-
एक समय में हरिशचंद्र नाम का एक चक्रवर्ती राजा थे. किसी कारणवश उसने अपने राज्य को छोड़ दिया और पत्नी-बच्चे और स्वयं को भी बेच दिया. राजा हरिशचंद्र एक चांडाल के यहां काम करते थे और मृतकों के वस्त्र लेते थे. वह हमेशा सत्य के मार्ग पर चलते रहे. जब वह एकांत में होते थे तो इन दु:खों से मुक्ति पाने का मार्ग सोचते रहते थे. वह सोचते थे कि क्या ऐसा करे, जिससे उसका उद्धार हो सके. वह काफी समय तक इस कार्य में लगे रहे.
एक दिन वह चिंतित होकर बैठे थे, तभी गौतम ऋषि वहां आए. राजा ने उनको प्रणाम किया. उसने गौतम ऋषि को अपने दुखों के बारे में बताया और इससे उद्धार का मार्ग पूछने लगे. ऋषि ने कहा कि तुम भाग्यशाली हो, क्योंकि आज से 7 दिन बाद भाद्रपद कृष्ण एकादशी यानि अजा एकादशी व्रत आने वाली है. तुम इस व्रत को विधिपूर्वक करो. तुम्हारा कल्याण होगा. इतना कहने के बाद गौतम ऋषि वहां से चले गए. सात दिन बाद उस राजा ने अजा एकादशी का व्रत रखा और ऋषि के बताए अनुसार ही भगवान विष्णु का पूजन किया और रात्रि जागरण किया.
अगले दिन सुबह पारण करके व्रत को पूरा किया. भगवान विष्णु की कृपा से उसके समस्त पाप नष्ट हो गए और उसे दुखों से मुक्ति मिल गई. स्वर्ग से पुष्प वर्षा होने लगी. उसने देखा कि उसका मरा हुआ पुत्र फिर से जीवित हो गया है, उसकी पत्नी पहले की तरह रानी के समान दिख रही है. इस व्रत के पुण्य प्रभाव से उसे अपना राज्य दोबारा मिल गया. जीवन के अंत में उसे परिवार सहित स्वर्ग स्थान प्राप्त हुआ. यह अजा एकादशी व्रत के पुण्य फल का प्रभाव था.