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जस्ट ट्रांजिशन टास्क फोर्स के चेयरमैन अजय कुमार रस्तोगी ने कहा-यह नया विषय जिसके विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन जारी

झारखंड में 12 जिलों में कोयले का खनन हो रहा है और एक अन्य जिले को भी खनन के लिए चुना गया है, यानी कुल 13 जिले में कोयले का खनन हो रहा है. अगर कोयले पर से निर्भरता कम हुई तो हमारा राज्य बुरी तरह से प्रभावित होगा.

COP26 ग्लासगो जलवायु शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह संकल्प लिया है कि 2070 तक भारत नेट जीरो उत्सर्जन यानी शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल कर लेगा. इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सरकार नीतियां बना रही हैं और उसे लागू भी कर रही हैं. वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट में ग्रीन ग्रोथ पर काफी फोकस किया गया है. इसका एकमात्र उद्देश्य है, कार्बन उत्सर्जन को कम करना. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि झारखंड जैसे राज्य इस स्थिति का सामना कैसे करेंगे, जहां कि इकोनाॅमी में कोयले का अहम योगदान है. ज्ञात हो कि पिछले साल यानी 2022 के नवंबर महीने में झारखंड सरकार ने एक टास्क फोर्स का गठन किया है, यह देश का पहला ऐसा टास्क फोर्स है, जो इस बात का अध्ययन कर रही है कि अगर कोयले पर निर्भरता कम हुई तो उसका क्या असर होगा? अगर कोयला खदान बंद हुए तो उससे जीविका चलाने वालों के पास क्या विकल्प है? कोयले पर निर्भरता कम होने से प्रभावितों का जो पुनर्वास कराया जायेगा उसे जस्ट ट्रांजिशन (Just Transition ) का नाम दिया गया है. कहने का आशय यह है कि एनर्जी ट्रांजिशन के इस दौर में प्रभावितों को न्यायसंगत तरीके से बसाना ही जस्ट ट्रांजिशन है. झारखंड सरकार द्वारा गठित जस्ट ट्रांजिशन टास्क फोर्स के चेयरमैन अजय कुमार रस्तोगी ने प्रभात खबर से खास बातचीत में जस्ट ट्रांजिशन पर विस्तार से बात की. पढ़ें उस बातचीत की प्रमुख बातें-

जस्ट ट्रांजिशन क्या है और इसकी जरूरत झारखंड में क्यों है?

भारत सरकार ने 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य तय किया है. जब कोई नीति बनती है तो वह दो स्तर पर लागू होती है, एक तो केंद्र सरकार उसे लागू करती है और दूसरे वह राज्यों में लागू होती है. नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए कोयले पर से निर्भरता कम की जायेगी, अभी झारखंड में 12 जिलों में कोयले का खनन हो रहा है और एक अन्य जिले को भी खनन के लिए चुना गया है, यानी कुल 13 जिले में कोयले का खनन हो रहा है. अगर कोयले पर से निर्भरता कम हुई तो हमारा राज्य बुरी तरह से प्रभावित होगा. ऐसे में हमें जस्ट ट्रांजिशन की सख्त जरूरत होगी. झारखंड में कोल माइनिंग कम होगा तो प्रभावितों को सोशल सिक्यूरिटी कैसे मिलेगी उनके रोजगार का क्या होगा? किस तरह उन्हें ट्रेंनिंग दी जायेगी. ट्रेनिंग के बाद श्रमिक बाहर ना जाये इस बात का ध्यान भी रखा जायेगा. जाॅब लाॅस बड़े पैमाने होंगे, इन तमाम बातों का अध्ययन यह टास्क फोर्स करेगी.

क्या आपको लगता है कि अगले पांच वर्ष में झारखंड में खदान बंद होने लगेंगे?

देखिए, हमारे देश में बिजली की जितनी मांग है उसका लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा हमें कोयले से प्राप्त होता है. इस परिस्थिति में कोयले पर से हमारी निर्भरता निकट भविष्य में कम होने वाली नहीं है. वजह यह है कि रिन्यूएबल एनर्जी के जरिये बिजली का उत्पादन तो हो रहा है, लेकिन बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है. ऐसे में कोयले की जरूरत लगातार बनी हुई है क्योंकि क्लीन एनर्जी के जरिये बिजली का उत्पादन उस रफ्तार से नहीं बढ़ रहा है. इसलिए निकट भविष्य में कोयला खदान बंद नहीं होने वाले हैं.

जस्ट ट्रांजिशन की प्रक्रिया झारखंड में अभी किस स्तर पर है?

जस्ट ट्रांजिशन एक बहुत ही नया विषय है, जिसपर अध्ययन जारी है. हमें पहले यह समझने की जरूरत है कि जस्ट ट्रांजिशन होगा कैसे? किन लोगों को इसकी जरूरत होगी. इस बात से सभी वाकिफ हैं कि कोयला क्षेत्र में जितने लोग फाॅर्मल वर्कर हैं उतने ही इनफाॅर्मल वर्कर भी हैं. ऐसे में यह समझना बहुत जरूरी है कि आजीविका की समस्या सिर्फ संगठित मजदूरों को नहीं असंगठित मजदूरों को भी होगी. हमारे राज्य में कोयले पर आधारित कई अन्य उद्योग भी हैं, जिनमें सबसे प्रमुख है स्टील और सीमेंट. कोयले का उत्पादन अगर प्रभावित होगा तो इन उद्योगों पर भी असर होगा. कई एमएसएमई एवं ट्रांसपोर्टर भी प्रभावित होंगे. ऐसे में मैं यह कह सकता हूं कि झारखंड में अभी कोयले पर निर्भरता कम होने से क्या होगा, इसके विभिन्न आयामों को समझने की कोशिश शुरू हो चुकी है. इसमें बातचीत का दौर जारी है. उसके बाद फ्रेमवर्क तैयार किया जायेगा. इसके लिए स्टेकहोल्डर्स से भी बात हो रही है. उसके बाद डाटा कलेक्शन का काम होगा. अलग-अलग टैमप्लेट बनाकर डाटा कलेक्ट होगा. डाटा का वैलिडेशन होगा, तो कुल मिलाकर अभी बहुत काम होना है. हम अभी यह देख रहे हैं कि हमें क्या करना है और किस दिशा में करना है ताकि सही परिणाम सामने आये. केवल रिपोर्ट बनाकर सरकार को देना हमारा लक्ष्य नहीं है, हमारा टारगेट एक ऐसा रोडमैप तैयार करना है, जिसपर काम हो और सार्थक काम हो. इसके लिए हम विभिन्न एजेंसियों से बात कर रहे हैं क्योंकि कई लोग सामने आ रहे हैं, लेकिन सबकी विशेषज्ञता अलग-अलग क्षेत्रों में है.

जस्ट ट्रांजिशन के लिए फंड की क्या व्यवस्था है?

किसी भी काम को करने के लिए फंड की जरूरत होती है. जस्ट ट्रांजिशन के लिए भी फंड की जरूरत होगी. पैसा कहां से आयेगा यह बड़ा मुद्दा है. इसपर भी बात हो रही है. चूंकि कोयले पर निर्भरता कम होगी तो झारखंड जैसे राज्य के राजस्व में भी कमी आयेगी, ऐसे में जस्ट ट्रांजिशन के लिए राज्य की ओर से कितना फंड मिलेगा यह भी विचार करने वाली बात है. केंद्र की इसमें क्या भूमिका हो सकती है, निवेश को कैसे आमंत्रित किया जा सकता है इन तमाम बातों और संभावनाओं पर भी टाॅस्क फोर्स अपने सुझाव देगी. चूंकि झारखंड सरकार पहली ऐसी सरकार है जिसने जस्ट ट्रांजिशन के लिए टाॅस्क फोर्स का गठन किया है, इसलिए पूरे देश की नजर हम पर है. अगर हम कुछ बेहतर सुझाव दे पायें, तो निश्चित तौर पर वह हमारी उपलब्धि होगी. इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगले पांच दशक में कोयला खदान बंद होंगे और हमें जस्ट ट्रांजिशन की जरूरत होगी.

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