कोलकाता : बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में शानदार प्रदर्शन करने वाली असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआइएमआइएम) के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरने पर तृणमूल कांग्रेस की अल्पसंख्यकों पर पकड़ कमजोर हो सकती है. बिहार विधानसभा चुनाव में 5 सीटें जीतने के बाद पार्टी ने बंगाल में किस्मत आजमाने का मन बनाया है.
राज्य में वर्ष 2011 में वाम मोर्चा को हराने के बाद से ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस को ही अल्पसंख्यक मतों का फायदा मिला है. एआइएमआइएम के इस फैसले पर पार्टी का कहना है कि ओवैसी का मुसलमानों पर प्रभाव हिंदी और उर्दू भाषी समुदायों तक सीमित है, जो राज्य में मुस्लिम मतदाताओं का सिर्फ छह प्रतिशत है.
पश्चिम बंगाल में 30 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं. कश्मीर के बाद सबसे अधिक मुस्लिम मतदाता बंगाल में ही हैं. अल्पसंख्यक, विशेषकर मुसलमान, 294 सदस्यीय विधानसभा में लगभग 100-110 सीटों पर एक निर्णायक कारक हैं, जो वर्ष 2019 तक, अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ तृणमूल के लिए हमेशा फायदेमंद रहे हैं. इनमें से अधिकांश ने पार्टी के पक्ष में मतदान किया है, जो भगवा दल के विरोध में हमेशा उनके लिए ‘विश्वसनीय’ रहे हैं.
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वरिष्ठ मुस्लिम नेताओं का कहना है कि एआइएमआइएम के यहां चुनाव लड़ने से समीकरण यकीनन बदल सकता है. मिशन पश्चिम बंगाल के लिए तेलंगाना स्थित पार्टी की विस्तृत योजना के बारे में बात करते हुए, इसके राष्ट्रीय प्रवक्ता असीम वकार ने बताया कि पार्टी ने राज्य में 23 जिलों में से 22 में अपनी इकाइयां स्थापित की हैं.
वकार ने कहा, ‘हम बंगाल में विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. हम रणनीति तैयार कर रहे हैं. हमने राज्य के 23 जिलों में से 22 में अपनी मौजूदगी दर्ज करा ली है. हमें लगता है कि एक राजनीतिक पार्टी के तौर पर हम राज्य में मजबूत पकड़ बना सकते हैं.’
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एआइएमआइएम ने पिछले साल नवंबर में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ रैली में ममता बनर्जी पर परोक्ष रूप से निशाना साधने के बाद से ही दोनों पार्टियों के बीच जंग शुरू हो गयी थी, जो अब चुनावी मैदान तक पहुंच गयी है.
Posted By : Mithilesh Jha