इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- कितने पुलिस अधिकारियों पर चल रही आपराधिक कार्यवाही, DGP बताएं, जानें पूरा मामला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई में दिखाई जा रही नरमी पर सख्त रुख अपनाया है. कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) से पूछा है कि प्रदेश में कितने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की जा रही है, अगली तारीख पर पूरी रिपोर्ट प्रस्तुत करें.
यूपी की इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई में दिखाई जा रही नरमी पर सख्त रुख अपनाया है. कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) से पूछा है कि प्रदेश में कितने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की जा रही है, यह किसी वरिष्ठ अधिकारी को नियुक्त कर पता करें और अगली तारीख पर पूरी रिपोर्ट प्रस्तुत करें. अगली सुनवाई 10 जनवरी 2024 को होगी. जस्टिस संजय कुमार सिंह की पीठ ने जौनपुर के रूपेश कुमार सिंह की ओर से आपराधिक कार्रवाई को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है. कोर्ट ने डीजीपी से कहा है कि ऐसे पुलिस अधिकारियों की जिलेवार सूची रिकॉर्ड में लाते हुए एक शपथ-पत्र दाखिल किया जाए, जो किसी आपराधिक मामले में शामिल हैं. उनके खिलाफ समन, जमानती वारंट या गैर-जमानती वारंट जारी किए गए हैं लेकिन उन समन/वारंट की समय पर तामील नहीं की गई है और मुकदमे की कार्यवाही में देरी हो रही है.
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वारंट जारी होने के बाद भी नहीं हो रहे पेश
बता दें कि कोर्ट ने आदेश का अनुपालन कराने के लिए रजिस्ट्रार को भी निर्देशित किया है. कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में पारित आदेश और पूर्व में पारित आदेश की जानकारी 48 घंटे में डीजीपी को मुहैया कराई जाए. इसके पहले कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए पुलिस अधीक्षक जौनपुर द्वारा दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई पर असंतुष्टी जताई. कोर्ट ने कहा कि अक्सर इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें पुलिस अधिकारी आपराधिक मामलों में आरोपी हैं और उनके खिलाफ बार-बार समन, जमानती वारंट और गैर-जमानती वारंट जारी की प्रक्रिया चल रही है. लेकिन, वे संबंधित अदालत को जवाब नहीं दे रहे हैं. अदालत यह समझने में विफल है कि ऐसे पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जारी समन या वारंट की प्रक्रिया समय पर क्यों नहीं पहुंचाई जा रही है. जबकि, वे अपने आधिकारिक कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं. वेतन प्राप्त कर रहे हैं.
यह है पूरा मामला
दरअसल, याची रूपेश कुमार सिंह सहित चार पुलिसकर्मियों के खिलाफ 28 जून 2008 की एक घटना के मामले में भ्रष्टाचार निवारण संगठन वाराणसी की ओर से 10 सितंबर 2010 को जौनपुर के कोतवाली थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी. तीन अक्तूबर 2017 को उपनिरीक्षक रूपेश कुमार सिंह, उपनिरीक्षक शिव शंकर सिंह, कांस्टेबल पुणदेव सिंह के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया. ट्रायल कोर्ट ने पेश होने के लिए समन, जमानती वारंट और फिर गैर जमानती वारंट जारी किया लेकिन याची उपस्थित नहीं हुए. उसने आपराधिक कार्रवाई को चुनौती दी. कोर्ट ने इसके पूर्व की सुनवाई में जौनपुर के पुलिस अधीक्षक से हलफनामा दाखिल करने को कहा था. अधीक्षक ने हलफनामा दाखिल किया पर कोर्ट उससे संतुष्ट नहीं हुई.
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अफजाल अंसारी की पत्नी को हाईकोर्ट से बड़ी राहत
माफिया मुख्तार अंसारी के भाई व पूर्व बसपा सांसद अफजाल की पत्नी फरहत को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है. कोर्ट ने गैंगस्टर एक्ट के तहत सील पेट्रोल पंप चलाने की अनुमति का निर्देश दिया है. साथ ही कहा कि इसका अलग हिसाब रखा जाए, जिसे कोर्ट में पेश किया जाए. कोर्ट ने कहा बिना प्रशासक नियुक्त किए डीएम को पेट्रोल पंप सील करने का कानूनी अधिकार नहीं है. गैंगस्टर एक्ट के तहत जब तक प्रशासक नियुक्त नहीं कर लिया जाता तब तक याची को पेट्रोल पंप संचालित करने का निर्देश दिया है. याची को धारा 16 के तहत दाखिल अर्जी पर कोर्ट में अपनी आपत्ति दाखिल करने की छूट दी है. कोर्ट ने कहा कि डीएम गाजीपुर संपत्ति की कुर्की कर सकते हैं, लेकिन प्रशासक नियुक्त किए बगैर सील नहीं कर सकते हैं.
जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्र व जस्टिस एस ए एच रिजवी की खंडपीठ ने फरहत अंसारी की याचिका को निस्तारित करते हुए यह आदेश दिया है. याचिका पर अधिवक्ता उपेंद्र उपाध्याय ने बहस की. इनका कहना है कि याची ने 2019 में अपनी कमाई से पेट्रोल पंप स्थापित किया है. गैंगस्टर की संपत्ति से पंप स्थापित होने का आरोप गलत है. याची ने आयकर रिटर्न भी दाखिल किया है. अपर महाधिवक्ता का कहना था कि संपत्ति कुर्क कर गैंगस्टर कोर्ट को संदर्भित कर दिया गया है और याची ने कोई आपत्ति पेश नहीं की है. याची को डीएम के समक्ष आपत्ति करनी चाहिए थी. जब्त संपत्ति कोर्ट को संदर्भित की गई है, जहां से अवमुक्त कराई जा सकती है. इस पर कोर्ट ने कहा डीएम संपत्ति कुर्क कर सकते हैं, लेकिन सीज करने का अधिकार नहीं है.