16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

इलाहाबाद हाईकोर्ट का पत्नी से क्रूरता मामले पर टिप्पणी, कहा- समझौते के आधार पर बर्बर अपराध रद्द नहीं हो सकते

Allahabad High Court News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बर्बरतापूर्ण और क्रूरतम तरीके के समाज को प्रभावित करने वाले अपराधों को पारिवारिक समझौते के आधार पर अदालत रद्द नहीं कर सकती.

Allahabad High Court News: उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा कि बर्बरतापूर्ण क्रूरतम तरीके के समाज को प्रभावित करने वाले अपराधों को न्यायालय पारिवारिक समझौते के आधार पर रद्द नहीं कर सकता. कोर्ट ने कहा कि पक्षों के बीच समझौते पर केस रद्द करने की मांग पर अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल अपराध की प्रकृति व तथ्यों को देखते हुए किया जाएगा. लेकिन क्रूर व बर्बर अपराध को समझौते के आधार पर खत्म नहीं किया जा सकता. अनैतिक व समाज विरोधी अपराध को रद्द नहीं किया जा सकता.

इसी के साथ कोर्ट ने पति-पत्नी व परिवार के बीच सुलह होकर साथ जीवन यापन करने के आधार पर आपराधिक केस रद्द करने की मांग में दाखिल याचिका पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने चरखारी के परशुराम व पांच अन्य की याचिका को खारिज करते हुए दिया है.

कोर्ट ने कहा कि शादी के बाद 50 हजार रुपये नकद, कार आदि की मांग पूरी न करने पर पति ने परिवार के साथ मिलकर पीड़िता को मारा पीटा. पति ने चाकू, ब्लेड से दोनों स्तन पर घाव किए. सब्बल गुप्तांग में डाला. रातभर खून बहा, सुबह तक इलाज नहीं कराया. उन्होंने क्रूरता व बर्बरता, बहशीपन की सारी हदें पार कर दीं. दर्द से चिल्लाने पर पीड़िता का मुंह बंद कर दिया.

इस मामले में महोबा की चरखारी पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी है. कोर्ट ने आरोप तय कर दिए हैं और ट्रायल आखिरी स्तर पर है. पीड़िता के कोर्ट में बयान ने अभियोजन कहानी का समर्थन किया. कोर्ट ने इसे स्ट्रीम क्रूरता व बर्बरतापूर्ण अनैतिक कृत्य माना और कहा कि यह घटना कल्पनातीत है. न्यायालय अपनी अंतर्निहित शक्ति का इस्तेमाल न्याय की रक्षा व न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने के लिए करता है. अपराध की प्रकृति पर ही विचार कर समझौते के आधार पर केस रद्द किया जा सकता है, अन्यथा नहीं.

Also Read: इलाहाबाद हाईकोर्ट का गैंगस्टर एक्ट पर टिप्पणी, कहा- कार्यवाही के लिए लंबा आपराधिक इतिहास जरूरी नहीं
पॉक्सो और SC/ST में केस झूठा होने पर महिलाओं पर हो कार्रवाई

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ महिलाएं पॉक्सो व एससी/ एसटी एक्ट का इस्तेमाल पैसे वसूलने के हथियार के रूप में कर रही हैं. इस पर रोक लगाई जानी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो व एससी/एसटी एक्ट के तहत झूठी एफआईआर दर्ज होते हैं और ये आरोपी को समाज में अपमानित करने एवं सरकार से मुआवजा लेने के लिए होते हैं.

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने आजमगढ़ के फूलपुर इलाके के अजय यादव की अग्रिम जमानत अर्जी को निस्तारित करते हुए दिया है. कोर्ट ने रेप के आरोपी याची को सशर्त अग्रिम जमानत पर 50 हजार रुपये के निजी मुचलके व दो प्रतिभूति लेकर गिरफ्तारी के समय रिहा करने का भी आदेश दिया है. इसी के साथ कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार को निर्देश दिया कि इस प्रकार के संवेदनशील मामले में केस झूठा पाए जाने पर जांच के बाद पीड़िता के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 344 की कार्रवाई करें और सरकार से मिले धन की पीड़िता से वसूली की जाए.

याची का कहना था कि कोई घटना हुई ही नहीं है. उसने कोई अपराध नहीं किया है. कुछ साल पहले नाबालिग पीड़िता से शारीरिक संबंध बनाने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई गई. पीड़िता की एफआईआर व पुलिस को दिए धारा 161 के बयान में विरोधाभास है. एफआईआर में आरोप है कि वर्ष 2012 में शारीरिक संबंध बनाए तो पुलिस को दिए बयान में कहा कि वर्ष 2013 में शारीरिक संबंध बनाए.

2011 की घटना की एफआईआर 11 मार्च 2019 को दर्ज कराई गई. 28 मार्च 2019 को मेडिकल जांच में पीड़िता की आयु 18 वर्ष बताई गई. मामले में सह अभियुक्त दयालु यादव को अग्रिम जमानत मिल चुकी है. याची का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है. उसे झूठा फंसाया गया है. यह भी कहा गया कि जो अपराध कभी हुआ ही नहीं, उसके लिए याची को आरोपित किया गया है. कोर्ट ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण माना.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें