इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रेमी जोड़े की पुलिस सुरक्षा की याचिका खारिज की, कहा-टाइमपास होता है लिव-इन रिलेशनशिप
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस सुरक्षा की मांग करने वाले एक लिव-इन में रह रहे कपल्स की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप (Live in Relationship) मुख्य रूप से "टाइम पास" होते हैं. हाईकोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ कपल्स की याचिका खारिज कर दी.
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) में लिव-इन पार्टनरशिप में रह रहे एक अंतर धार्मिक कपल्स की पुलिस सुरक्षा की अर्जी पर सुनवाई करते हुए कहा कि ऐसे संबंध में स्थिरता और ईमानदारी की कमी होती है. लिव-इन रिलेशनशिप (Live in Relationship) मुख्य रूप से “टाइम पास” होते हैं. हाईकोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ पुलिस सुरक्षा की मांग करने वाले एक लिव-इन में रह रहे कपल्स की याचिका खारिज कर दी. दरअसल, हाईकोर्ट में एक हिंदू महिला और एक मुस्लिम पुरुष के तरफ से संयुक्त याचिका दायर की गई थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 366 (Indian Penal Code ACT 366) के तहत अपहरण के अपराध का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर (FIR) को रद्द करने की मांग की गई थी. आरोपी मुस्लिम युवक के खिलाफ शिकायत युवती की चाची ने दर्ज कराई थी. इसके खिलाफ इस जोड़े ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और पुलिस सुरक्षा की मांग की थी. इसके अलावा उन्होंने अपने लिव-इन रिलेशनशिप को जारी रखने का फैसला किया था.
जिंदगी गुलाबों की सेज नहीं है- कोर्ट
इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी और न्यायमूर्ति मोहम्मद अज़हर हुसैन इदरीसी की पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कई मामलों में लिव-इन रिलेशनशिप को वैध ठहराया है, लेकिन 20-22 साल की उम्र में सिर्फ दो महीने की अवधि में, हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि यह जोड़ा एक साथ रहने में सक्षम होगा हालांकि वे अपने इस प्रकार के अस्थायी रिश्ते को लेकर गंभीर हैं. कोर्ट ने कहा कि इस कपल्स का प्यार बिना किसी ईमानदारी के विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण मात्र है. जिंदगी गुलाबों की सेज नहीं है बल्कि जिंदगी यह हर जोड़े को कठिन से कठिन परिस्थितियों और वास्तविकताओं की ज़मीन पर परखता है. जजों ने कहा कि हमारे अनुभव से पता चलता है कि इस प्रकार के संबंध अक्सर टाइमपास, अस्थायी और नाजुक होते हैं और इस तरह, हम जांच के चरण के दौरान याचिकाकर्ता को कोई सुरक्षा देने से बच रहे हैं.
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लड़का एक “रोड-रोमियो” और आवारा व्यक्ति है- विरोधी पक्ष
कोर्ट में याचिकाकर्ता युवती के वकील ने दलील दी कि उसकी उम्र 20 साल से अधिक है, उसे अपना भविष्य तय करने का पूरा अधिकार है और उसने आरोपी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चुना है. इसके जवाब में विरोधी पक्ष के वकील ने तर्क दिया कि उसका लिव-इन पार्टनर पहले से ही उत्तर प्रदेश गैंगस्टर अधिनियम के तहत दर्ज एक मुकदमे का सामना कर रहा है. विरोधी पक्ष ने कोर्ट में यह तर्क भी दिया कि आरोपी एक “रोड-रोमियो” और आवारा व्यक्ति है जिसका कोई भविष्य नहीं है और निश्चित रूप से, वह लड़की का जीवन बर्बाद कर देगा.
ऐसे रिश्ते में स्थिरता और ईमानदारी की बजाय मोह अधिक है- कोर्ट
दोनों पक्षों की दलीलों और तर्कों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर अपनी आपत्ति जताई और कहा कि अदालती रुख को न तो याचिकाकर्ताओं के रिश्ते के फैसले या समर्थन के रूप में गलत समझा जाना चाहिए और न ही कानून के अनुसार की गई किसी भी कानूनी कार्रवाई के खिलाफ सुरक्षा के रूप में उसे लिया जाना चाहिए. जजों ने अपने फैसले में लिखा कि न्यायालय का मानना है कि इस प्रकार के रिश्ते में स्थिरता और ईमानदारी की बजाय मोह अधिक है. जब तक जोड़े शादी करने का फैसला नहीं करते हैं और अपने रिश्ते को नाम नहीं देते हैं या वे एक-दूसरे के प्रति ईमानदार नहीं होते हैं, तब तक अदालत इस प्रकार के रिश्ते पर कोई राय व्यक्त करने से बचती है. इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने याचिकाकर्ता की पुलिस सुरक्षा की मांग वाली अर्जी खारिज कर दी.