Mathura Krishna Janmabhoomi Case: श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही ईदगाह विवाद (Shahi Idgah Mosque) मामले में कोर्ट कमीशन सर्वे का पैनल 11 जनवरी को तय होगा. वक्फ बोर्ड की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने इस संबंध में फैसला किया है. हाईकोर्ट के निर्णय के मुताबिक 11 जनवरी को दोपहर 2 बजे हाईकोर्ट में सुनवाई होगी. मुस्लिम पक्ष की आपत्ति पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने फैसला किया है. इस तरह अब 11 जनवरी को कोर्ट कमीशन पर फैसला आएगा. सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया कि उसने कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति के आदेश के खिलाफ विशेष याचिका दाखिल की है. इस पर हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किये जाने पर रोक नहीं लगाई है. इस पर कोर्ट ने कहा कि इस मामले में उसकी ओर से आदेश पर निर्णय किया जाएगा. हाईकोर्ट के मस्जिद परिसर के एएसआई सर्वे और इस सर्वे के लिए एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त करने की संभवना जताई जा रही थी. इसके साथ ही विवादित परिसर का सर्वे की प्रक्रिया क्या होगी, एडवोकेट कमिश्नर कौन होगा और सर्वे कब तक शुरू किया जाएगा इस पर भी कोर्ट के निर्णय की बात कही जा रही थी. वहीं अब 11 जनवरी को हाईकोर्ट के रुख पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं. सोमवार को कोर्ट में हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों के वकील मौजूद रहे.
श्रीकृष्ण विराजमान के वाद मित्र मूर्ति के साथ हाईकोर्ट पहुंचे थे. भगवान के नाम से हाईकोर्ट में पास भी तैयार कराया गया. इससे पहले, सुनवाई से एक दिन पहले रविवार को ही कई पक्षकार मथुरा से इलाहाबाद के लिए रवाना हो गए थे. इससे पहले 14 दिसंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटी शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वे कराये जाने और इसके लिए अदालत की निगरानी में एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति की मांग को स्वीकार कर लिया था, जिसके बाद अब ज्ञानवापी परिसर की तरह शाही ईदगाह मस्जिद का भी सर्वे कराया जाएगा.
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ये पूरा मामला श्री कृष्ण जन्मभूमि और ईदगाह परिसर की 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक से जुड़ा हुआ है. इसमें करीब 11 एकड़ की जमीन पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर बना हुआ है और 2.37 एकड़ जमनी पर शाही ईदगाह मस्जिद बनी हुई है. हिन्दू पक्ष का दावा है कि जिस जमीन पर मस्जिद बनी है वो कंस की कारागार हुआ करती थी, जहां श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. हिन्दू पक्ष पूरी जमीन पर दावा करता है वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना है कि 1968 में हुए समझौते में ये भूमि मस्जिद के लिए दी गई थी. श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ शाही ईदगाह कमेटी के बीच हुए 1968 के समझौते को नहीं मानता है. उसका कहना है कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने शासन काल में कई मंदिरों को तोड़ा था, जिसमें श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर भी शामिल है. मस्जिद में मंदिर के अवशेष आज भी मौजूद हैं.