सुपरहिट फिल्म शोले 15 अगस्त 1975 के दिन रिलीज हुई थी. इसे 45 साल पूरे हो गए हैं. संजीव कुमार, धर्मेद्र, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, हेमा मालिनी और अमजद खान जैसी स्टारकास्ट से सजी इस फिल्म की ओर शुरू में दर्शकों और समीक्षकों ने कोई ध्यान नहीं दिया था. रमेश सिप्पी की इस फिल्म पर उसी समय रिलीज हुई फिल्म ‘जय संतोषी मां’ भारी पड़ती दिख रही थी. लेकिन दो हफ्ते बाद फिल्म ने जो लोकप्रियता हासिल की, वह आगे जाकर इतिहास बन गई. आइए जानते हैं इस फिल्म से जुड़े रोचक तथ्य.
1) शोले जब रिलीज हुई तो शुक्रवार और शनिवार बॉक्स ऑफिस पर इस फिल्म को अपेनक्षानुरूप सफलता नहीं मिली. भारी बजट की भव्य फिल्म का यह हाल देख निर्देशक रमेश सिप्पी चिंतित हुए.रविवार को उन्होंने अपने घर पर मीटिंग रखी जिसमें लेखक सलीम-जावेद को भी बुलाया गया. फिल्म के कमजोर प्रदर्शन का अर्थ ये निकाला गया कि अंत में अमिताभ के किरदार की मौत को दर्शक पसंद नहीं कर रहे हैं. रमेश सिप्पी ने प्रस्ताव रखा कि फिल्म का अंत बदला जाए. लोकेशन पर पहुंच कर वे नया अंत शूट कर लेंगे और बाद में फिल्म में जोड़ देंगे। सलीम- जावेद को नया अंत लिखने की जिम्मेदारी दी गई। सलीम-जावेद ने रमेश सिप्पी को सलाह दी कि जल्दबाजी करने के बजाय एक-दो दिन रूकना चाहिए। यदि फिल्म का फिर भी खराब रहता है तो वे नया अंत शूट कर लेंगे. उनकी बात मान ली गई। एक-दो दिन बाद फिल्म का प्रदर्शन बॉक्स ऑफिस पर सुधर गया और फिर बेहतर होता चला गया.
2) फिल्म सीता और गीता (1972) की शानदार सफलता की पार्टी जीपी सिप्पी के घर की छत पर दी गई थी. उसमें पिता जीपी और बेटे रमेश सिप्पी ने तय किया था कि इससे भी चार कदम आगे चलकर एक बड़े बजट की भव्य एक्शन फिल्म बनाई जाए. यहीं से शोले फिल्म की शुरूआत हुई.
3) शोले फिल्म की कहानी मार्च 1973 से लिखना आरंभ हुई थी. रोजाना सुबह दस से ग्यारह बजे के बीच सलीम-जावेद तथा रमेश सिप्पी अपने को सिप्पी फिल्म लेखन कक्ष में बंद कर लेते थे. घंटों चर्चा करते थे.
4) जय के रोल के लिए शत्रुघ्न सिन्हा का नाम फाइनल था। मगर सलीम-जावेद तथा धर्मेन्द्र ने अमिताभ का नाम सुझाया. जबकि अमिताभ की कई फिल्में फ्लॉप हो रही थी, लेकिन सलीम-जावेद को जंजीर फिल्म की पटकथा पर भरोसा था. उनका मानना था कि जंजीर सफल रहेगी और अमिताभ स्टार बन जाएंगे. हुआ भी ऐसा ही. अमिताभ को जंजीर रिलीज होने के पहले ही साइन किया जा चुका था.
5) लोकेशन हंटर येडेकर, रमेश सिप्पी की टीम में कोलम्बस की तरह थे. रमेश नहीं चाहते थे कि इस बार चम्बल की घाटी या राजस्थान जाकर दर्शकों की परिचित डकैत लोकेशन पर शूटिंग की जाए. मंगलौर-बंगलौर और कोचीन में सफर करते आखिर में येडेकर को बंगलौर के पास की जगह जो पहाडि़यों से घिरी थी, पसंद आई. इस लोकेशन पर इंग्लिश फिल्म माया की शूटिंग पहले हुई थी.
6) रमेश सिप्पी को जैसे ही लोकेशन की खबर मिली, वह सिनेमाटोग्राफर द्वारका दिवेचा के साथ हवाई जहाज से आ गए। बड़ी-बड़ी बिल्डिंग साइज की चट्टानें, बीहड़, सूखे पेड़, उबड़-खाबड़ रास्ते और क्या चाहिए था द्वारका दिवेचा को, मनपसंद लोकेशन सामने मौजूद थी, नाम था- रामनगरम्.
7) शोले फिल्म में गब्बर की गुफा और ठाकुर का घर मीलों दूर दिखाया गया है. लेकिन सचमुच में दोनों पास-पास थे. रामनगरम् को फिल्म के सेट के मुताबिक मुंबई के तीस और स्थानीय सत्तर लोगों ने रात-दिन मेहनत कर पूरा गांव बसा दिया.
8) रामनगरम् में रोजाना यूनिट के एक हजार लोगों के खाने के लिए बाकायदा मॉडर्न किचन बनाया गया. राशन-फल-सब्जी के लिए गोडाउन तैयार किया. घोड़ों के लिए तबेले का इंतजाम करना पड़ा. बंगलौर हाई-वे से रामनगरम् तक एक सड़क भी बनाई गई. टेलीफोन लाइन, बिजली के खम्बे खड़े कराए गए.
9) शोले फिल्म ने पांच साल लगातार बम्बई के सिनेमाघर में चल कर एक कीर्त्तिमान कायम किया था. इसके पहले बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘किस्मत’ (1943) कलकत्ता में लगातार साढ़े तीन साल तक चली थी. शोले का रिकॉर्ड दिलवाले दुल्हनियां ने तोड़ा.
10) सन् 2000 में पॉप स्टार बाली ब्रह्मभट्ट ने रि-मिक्स अलबम बनाया था- शोले 2000. उसे शीर्षक दिया था- ‘द हथौड़ा मिक्स’. यह शोले के ठाकुर का संवाद है, जो वीरू तथा जय को कहा गया था- लोहा गरम है, मार दो हथौड़ा.
11) सन् 2000 में पॉप स्टार बाली ब्रह्मभट्ट ने रि-मिक्स अलबम बनाया था- शोले 2000। उसे शीर्षक दिया था- ‘द हथौड़ा मिक्स’। यह शोले के ठाकुर का संवाद है, जो वीरू तथा जय को कहा गया था- लोहा गरम है, मार दो हथौड़ा.