Amrit Mahotsav: क्रांतिकारी प्रशिक्षण के लिए पुलिन बिहारी ने खोला नेशनल स्कूल
पुलिन बिहारी दास महान स्वतंत्रता प्रेमी व क्रांतिकारी थे. उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए 'ढाका अनुशीलन समिति' नामक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की व अनेक क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिये थे. आज कलकत्ता विश्वविद्यालय उनके सम्मान में विशेष पदक देता है, जिसका नाम ‘पुलिन बिहारी दास स्मृति पदक’ है.
आजादी का अमृत महोत्सव: महान क्रांतिकारी पुलिन बिहारी दास का जन्म 24 जनवरी, 1877 को बंगाल के फरीदपुर जिले में लोनसिंह गांव में एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था. उनके पिता नबा कुमार दास मदारीपुर के सब-डिविजनल कोर्ट में वकील थे. उनके एक चाचा डिप्टी मजिस्ट्रेट और दूसरे मुंसिफ मजिस्ट्रेट थे. उन्होंने फरीदपुर जिला स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की. इसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए ढाका चले गये, जहां उन्होंने ढाका कॉलेज में दाखिला लिया. कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही वह लैब असिस्टेंट बन गये. उन्हें बचपन से ही कसरत करने का बहुत शौक था. कलकत्ता में सरला देवी के अखाड़े की सफलता से प्रेरित होकर उन्होंने भी तिकतुली में अपना अखाड़ा खोला.
सितंबर,1906 में बिपिन चंद्र पाल और प्रमथ नाथ मित्र बंग-भंग के बाद बने नये प्रांत पूर्वी बंगाल और असम का दौरा करने गये. वहां प्रमथ नाथ ने जब अपने भाषण में जनता से आह्वान किया कि ‘जो लोग देश के लिए अपना जीवन देने को तैयार हैं, वे आगे आएं,’ तो पुलिन तुरंत आगे आ गये. बाद में उन्हें अनुशीलन समिति की ढाका इकाई का संगठन करने का दायित्व भी सौंपा गया. अक्टूबर में उन्होंने 80 युवाओं के साथ ‘ढाका अनुशीलन समिति’ की स्थापना की.
सनसनीखेज ‘बारा डकैती कांड’ को दिया अंजाम
इसी बीच पुलिन बिहारी दास ने ढाका के पूर्व जिला मजिस्ट्रेट बासिल कोप्लेस्टन एलन की हत्या की योजना बनायी. 23 दिसंबर, 1907 को जब एलन वापस इंग्लैंड जा रहा था, तभी गोलान्दो रेलवे स्टेशन पर उसे गोली मार दी, लेकिन दुर्भाग्य से वह बच गया. वर्ष 1908 की शुरुआत में पुलिन ने सनसनीखेज ‘बारा डकैती कांड’ को अंजाम दिया. इससे प्राप्त धन से क्रांतिकारियों ने हथियार खरीदे, लेकिन उसी वर्ष पुलिस ने पुलिन को भूपेश चंद्र नाग, श्याम सुंदर चक्रवर्ती, कृष्ण कुमार मित्र, सुबोध मालिक और अश्विनी कुमार दत्त के साथ गिरफ्तार कर लिया और मोंटगोमरी जेल में कैद कर दिया.
ढाका षड्यंत्र केस में आजीवन कारावास की सजा
वर्ष 1910 में जेल से रिहा होने के बाद वह दोबारा क्रांतिकारी गतिविधियों को तेज करने में लग गये. इस समय तक प्रमथ नाथ मित्र की मृत्यु के बाद ढाका समूह कलकत्ता समूह से अलग हो चुका था, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने ‘ढाका षड्यंत्र केस’ में पुलिन बिहारी दास और उनके 46 साथियों को उसी साल दोबारा गिरफ्तार कर लिया. बाद में उनके 44 अन्य साथियों को भी पकड़ लिया गया. इस केस में पुलिन को काला पानी (आजीवन कारावास) की सजा हुई, जिसे हाइकोर्ट ने घटा कर सात वर्ष कर दिया. इसके बाद उन्हें अंडमान निकोबार के सेल्यूलर जेल में भेज दिया गया. वर्ष 1918 में उन्हें रिहा कर दिया गया, लेकिन फिर भी उन्हें एक वर्ष तक गृहबंदी के तौर पर रखा गया. 1919 में पूरी तरह रिहा होते ही उन्होंने एक बार फिर समिति की गतिविधियों को पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू कर दिया, लेकिन सरकार द्वारा समिति को गैरकानूनी घोषित करने और उसके सदस्यों के बिखर जाने से उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिल सकी. बाद में उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों को संचालित करने के लिए वर्ष 1920 में ‘भारत सेवक संघ’ की स्थापना की. इसके बाद अपने विचारों के प्रचार के लिए उन्होंने ‘स्वराज्य और शंख’ नाम के पत्र निकाले.
पुलिन बिहारी अपने समय के प्रसिद्ध व्यक्तियों जगदीश चंद्र बोस, प्रफुल्ल चंद राय, रवींद्रनाथ टैगोर आदि के निकट संपर्क में रहते थे. समाज सेवा के कार्यों में उनकी बड़ी रुचि थी. 17 अगस्त, 1949 को कोलकाता में उनका निधन हो गया. आज कलकत्ता विश्वविद्यालय उनके सम्मान में विशेष पदक देता है, जिसका नाम ‘पुलिन बिहारी दास स्मृति पदक’ है.