Anant Chaturdashi 2022: अनंत चतुर्दशी आज, यहां जानें इससे जुड़ी कथा, बन रहा है शुभ योग

Anant Chaturdashi 2022: 09 सितंबर 2022 शुक्रवार के दिन अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) का पावन पर्व मनाया जा रहा है. पुराणों के अनुसार, अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है.

By Shaurya Punj | September 9, 2022 6:51 AM

Anant Chaturdashi 2022: भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है. इस दिन अनंत भगवान (भगवान विष्णु) की पूजा के पश्चात बाजू पर अनंत सूत्र बांधा जाता है. ये कपास या रेशम से बने होते हैं और इनमें चौदह गाँठें होती हैं. अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन भी किया जाता है इसलिए इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है. 09 सितंबर 2022 शुक्रवार के दिन अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) का पावन पर्व मनाया जा रहा है. पुराणों के अनुसार, अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है.

बन रहा है शुभ योग

इस साल अनंत चतुर्दशी के दिन रवि योग और सुकर्मा योग बनेंगे. पंचांग के अनुसार इस दिन रवि योग सुबह 06 बजकर 02 मिनट से शुरू होकर सुबह 11 बजकर 34 मिनट तक है. वहीं सुकर्मा योग सुबह से शुरू होकर शाम 06 बजकर 11 मिनट तक है. ज्योतिष में इन योगों का विशेष महत्व है. मान्यता है इन योगों में पूजा में कोई उपाय सिद्ध हो जाता है.

अनंत चतुर्दशी की कथा

महाभारत की कथा के अनुसार कौरवों ने छल से जुए में पांडवों को हरा दिया था. इसके बाद पांडवों को अपना राजपाट त्याग कर वनवास जाना पड़ा. इस दौरान पांडवों ने बहुत कष्ट उठाए. एक दिन भगवान श्री कृष्ण पांडवों से मिलने वन पधारे. भगवान श्री कृष्ण को देखकर युधिष्ठिर ने कहा कि, हे मधुसूदन हमें इस पीड़ा से निकलने का और दोबारा राजपाट प्राप्त करने का उपाय बताएं. युधिष्ठिर की बात सुनकर भगवान ने कहा आप सभी भाई पत्नी समेत भाद्र शुक्ल चतुर्दशी का व्रत रखें और अनंत भगवान की पूजा करें.

इस पर युधिष्ठिर ने पूछा कि, अनंत भगवान कौन हैं? इनके बारे में हमें बताएं. इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा कि यह भगवान विष्णु के ही रूप हैं. चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं. अनंत भगवान ने ही वामन अवतार में दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था. इनके ना तो आदि का पता है न अंत का इसलिए भी यह अनंत कहलाते हैं अत: इनके पूजन से आपके सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे. इसके बाद युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और पुन: उन्हें हस्तिनापुर का राज-पाट मिला.

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