एनिमल फिल्म के गीत ‘पहले भी मैं… और पापा मेरी जान’ राज शेखर बोले- छोटे शहर के लोगों को होती है संघर्ष की आदत
राज शेखर इन दिनों फिल्म ‘एनिमल’ के गीत ‘पहले भी मैं... और पापा मेरी जान’ को लेकर सुर्खियों में हैं. उन्होंने कहा, मैं बिहार से हूं. हमारे यहां क्या होता है कि हमें पता होता है कि हम अपनी मां के जितना ही अपने पिता से भी प्यार करते हैं. वो भी बहुत प्यार करते हैं, पर न उनकी तरफ से जाहिर होता है.
फिल्म ‘तनु वेड्स मनु’, ‘वीरे दी वेडिंग’, ‘हिचकी’, ‘उरी’ सहित कई फिल्मों के गीतकार राज शेखर इन दिनों फिल्म ‘एनिमल’ के गीत ‘पहले भी मैं… और पापा मेरी जान’ को लेकर सुर्खियों में हैं. उनके गीत लोगों की जुबान पर अब तक छाये हुए हैं. राज शेखर इंडस्ट्री के उन चुनिंदा गीतकारों में से एक हैं, जो फिल्मी गीतों में पोएट्री को जिंदा रखने में योगदान दे रहे हैं. अपने गानों को मिल रहे प्यार को लेकर राज कहते हैं कि सफलता को मैं लोगों के प्यार से नापता हूं. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश…
फिल्म ‘एनिमल’ किस तरह से आप तक पहुंची थी?
‘एनिमल’ के निर्देशक विशाल मिश्रा हैं. उन्होंने निर्देशक संदीप बांगा रेड्डी की फिल्म ‘कबीर सिंह’ में भी उनके साथ काम किया था. मैं हमेशा से रणबीर कपूर की किसी फिल्म के लिए गाना करना चाहता था और यह बात विशाल को पता थी. चूंकि, संदीप सर ने विशाल के साथ पहले भी काम किया था, तो उन्होंने विशाल को एप्रोच किया और विशाल ने मुझे संदीप सर से मिलवाया. हमारी बातचीत बहुत जमी. पहले गाने के लिए उन्होंने मुझे ब्रीफ किया और पांच-छह दिन बाद मैंने उन्हें लिखकर सुनाया. उन्होंने दो शुरुआती लाइन सुनने के बाद ही कहा कि मुझे अच्छा लग रहा है. पहले इस गाने के लिए एक ही अंतरा था, पर मैंने फ्लो में आकर दो अंतरा लिख दिया. संदीप सर को दोनों ही अंतरा पसंद आया. दो महीने बाद मुझे उनका कॉल आया. उन्होंने कहा कि एडिट पर मिलते हैं. फिल्म से जुड़ी कुछ-कुछ चीजें उन्होंने मुझे और सुनायी और अगले गीत के लिए धुन सीटी की तरह मिली. उन्होंने कहा कि इस पर आप कुछ कीजिए. हमें एक बाप-बेटे का गाना चाहिए. इसके बाद मैंने ‘पापा मेरी जान…’लिखा.
दोनों गीतों में किस गीत ने आपके सामने चुनौती रखी?
‘पापा मेरी जान… बाप-बेटे के रिश्ते की जटिल कहानी कह रहा है. मेरी कोशिश थी कि उसे सरल तरीके से कहूं, ताकि वह लोगों तक चला जाये. 13 छंद मैंने लिखे थे. फिल्म में चार-पांच छंद का ही इस्तेमाल हुआ. मैंने फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं पढ़ी थी, इसलिए लिखते हुए लग रहा था कि कोई पहलू छूट न जाये. मैं बताना चाहूंगा कि फिल्म शुरू होने के बाद मैं इससे जुड़ा. ‘पापा मेरी जान… लिखने में मुझे एक महीने का वक्त लगा.
पापा मेरी जान… लिखते हुए क्या आपने अपने पिता के साथ रिश्ते को भी शब्दों में जिया है? पिता संग आपके रिश्ते कैसे रहे?
निश्चित तौर पर कुछ न कुछ आपका जाता ही है. जहां तक सवाल पिता के साथ मेरे रिश्ते का है, मैं बिहार से हूं. हमारे यहां क्या होता है कि हमें पता होता है कि हम अपनी मां के जितना ही अपने पिता से भी प्यार करते हैं. वो भी बहुत प्यार करते हैं, पर न उनकी तरफ से जाहिर होता है और न हमारी ओर से. वैसे मैं बताना चाहूंगा कि फिल्म ‘तुंबाड’ के लिए भी मैंने एक पिता-पुत्र पर गीत लिखा था, लेकिन वो गीत एडिटिंग में कट गया था. मुझे बहुत दुख हुआ था. ऐसे में पिता-पुत्र पर कुछ लिखने का मुझ पर उधार था. मैं अपनी बात करूं, तो जब मैं गीतकार बना था, तो मुझे वेलिडेशन अपने परिवार से चाहिए था कि मैंने कुछ किया है. मैं एक किसान परिवार से आता हूं. मुझे शुरुआत में लगा था कि अगर मैं बोलूंगा कि मैं मुंबई जाकर फिल्मों में कुछ करना चाहता हूं, तो उसे बगावत की तरह लिया जायेगा, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. मेरे पिता और बड़े भाई मेरे साथ पहले दिन से ही एक पिलर की तरह खड़े हैं. मैं उन्हें अभी भी कोई गाना भेजता हूं, तो वह एक क्रिटिक की तरह बताते हैं कि ये अच्छा है, इसमें और सुधार हो सकता है. ये सारी चीजें वे आज भी मुझे बताते हैं.
गीतकार के तौर आप हमेशा उन फिल्मों को प्राथमिकता देते हैं, जिनमें गीतों को लिखने की पूरी जिम्मेदारी आप पर हो. इस फिल्म में सिर्फ दो गाने के लिए कैसे राजी हुए?
कोशिश रहती है सोलो फिल्म करने की, लेकिन यहां रणबीर कपूर वजह थे. मुझे वो शुरुआती दिनों से बहुत पसंद थे. मेरे गाने इनके चेहरे पर कैसे लगेंगे, मेरी ये ख्वाहिश थी. हमारी ज्यादा बातचीत नहीं हुई है. म्यूजिक लांच पर मुख्तसर-सी बात हुई थी, जिसमें उन्होंने मुझे कहा कि आपका काम पसंद है. मुझे शाहरुख खान भी बहुत पसंद हैं. देखिए कब उनके लिए गीत लिखने की ख्वाहिश पूरी होती है.
‘एनिमल’ को खूब प्यार मिल रहा है, लेकिन कुछ लोगों को फिल्म की अल्फा मेल सोच से दिक्कत है ?
मैं इतना ही कहूंगा कि हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि फिल्में समाज का आईना होती हैं. आईना को तोड़ने से क्या समाज में बदलाव आयेगा. फिल्म तो वो दिखा रही है, जो हो रहा है. वैसे मैं इन सब पर ध्यान नहीं दे रहा हूं. गानों को जो प्यार मिल रहा है, मैं उसमें सरोबार हूं.
पीछे मुड़कर देखते हैं, तो अपने संघर्ष को किस तरह से याद करते हैं?
संघर्ष कभी संघर्ष जैसा लगा ही नहीं. मुझे लगता है कि छोटे शहर के लोगों को संघर्ष करने की आदत होती है. जब आप ख्वाब देखकर आये हैं कि हमको महल में रहना है, तब आपको स्टेशन पर सोना पड़े या वन रूम किचन को छह लड़कों के साथ शेयर करना पड़े, तो आपको दुख होगा. दिल्ली यूनिवर्सिटी में जब छुट्टियां होती थीं, तो घर जाने के लिए हम कभी जनरल में, तो कभी स्लीपर में अखबार बिछाकर जाते थे. मैं तो कहूंगा कि पहली फिल्म ‘तनु वेड्स मनु’ भी मुझे आसानी से मिल गयी थी. मैं फिल्म में असिस्टेंट डायरेक्टर था. आनंद जी ने कहा कि हमें डमी गीतकार की जरूरत है. लिखने में तुम्हारी रुचि है, तो लिखो. संयोग से मेरा लिखा गाना फिल्म में लग गया. गाना सुपरहिट हुआ, पर तीन साढ़े तीन साल तक कोई काम नहीं मिला, तो भी मैं उदास नहीं हुआ. लगा रहा और बात बनती गयी.
बिहार से कितना जुड़ाव हैं?
हम साल में दो से तीन बार जरूर चले जाते हैं. मुंबई में मेरे दोस्तों के बीच ये जोक मशहूर है कि राज शेखर फोन नहीं उठा रहा है मतलब गांव में है. गांव जाता हूं, तो फोन से दूर हो जाता हूं. मधेपुरा के भेलवा गांव में मेरा परिवार रहता है. किसान परिवार से हूं, तो खेत जाना व हाथ बंटाना अच्छा लगता है. चूल्हे पर खाना बनाना भी पसंद है.
नये साल में आपके पास कौन-से प्रोजेक्ट्स हैं ?
दो-तीन चीजें हैं. नये साल की बड़ी फिल्मों में मेरा नाम भी है, लेकिन फिलहाल उन पर बात नहीं कर पाऊंगा. आधिकारिक तौर पर नेटफ्लिक्स के ‘मिस्मैच’ का तीसरा सीजन और ‘फिर आयी हसीन दिलरुबा’ का नाम ही ले सकता हूं.
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