Annapurna Mahavrat 2021: 17 दिवसीय माता अन्नपूर्णा का महाव्रत शुरू, पहले दिन पवित्र धागे को पाने उमड़ी भीड़

व्रत के प्रारंभ के साथ अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकर पुरी ने 17 गांठों वाले धागे का पूजन करके भक्तों में वितरण किया. इस पवित्र धागे को प्राप्त करने के लिए बुधवार की सुबह से भक्तों की लंबी कतार लगी रही.

By Prabhat Khabar News Desk | November 24, 2021 7:32 PM

Annapurna Mahavrat 2021: मां अन्नपूर्णा माता का 17 दिवसीय महाव्रत बुधवार से शुरू हो गया. इस व्रत को करने और माता की परिक्रमा से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस महाव्रत का समापन 9 दिसंबर को होगा. व्रत के प्रारंभ के साथ अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकर पुरी ने 17 गांठों वाले धागे का पूजन करके भक्तों में वितरण किया. इस पवित्र धागे को प्राप्त करने के लिए बुधवार की सुबह से भक्तों की लंबी कतार लगी रही. दूरदराज से आए भक्तों ने कतारबद्ध होकर पवित्र धागे को लिया.

10 दिसंबर को प्रसाद का वितरण

महाव्रत के पूर्ण होने पर व्रती माता के दरबार में मन्नतों के अनुसार कोई 51 तो कोई 501 फेरी लगाता है. इस दिन धान की बालियों से मां अन्नपूर्णा के गर्भगृह समेत मंदिर परिसर को सजाया जाएगा. धान की बाली का प्रसाद 10 दिसंबर को भक्तों में वितरण किया जाएगा. पूर्वांचल के किसान फसल की पहली धान की बाली मां को अर्पित करते हैं. उसी बाली को प्रसाद के रूप में दूसरी धान की फसल में मिलाते हैं. वो मानते हैं इससे फसल में बढ़ोत्तरी होती है. महंत शंकर पुरी की मानें तो मां अन्नपूर्णा का व्रत-पूजन दैविक-भौतिक सुख प्रदान करता है और अन्न-धन, ऐश्वर्य की कमी नहीं होती है.

पंचमी तिथि से माता अन्नपूर्णा का व्रत शुरू होता है. इस 17 दिन के व्रत में कोई किसी प्रकार की मनोकामना रखता है तो वो निश्चित रूप से पूर्ण होती है. व्रत रखकर मंदिर परिक्रमा करने का विधान है. इससे कल्याण होता है और बाधा दूर होती है.

महंत शंकर पुरी

मां अन्नपूर्णा के महाव्रत की कहानी 

हिमालय में एक पक्षी रहता था. वो एक दिन ब्रह्मांड में घूमते हुए काशी पहुंचा. यहां पर अन्नपूर्णा मंदिर में चावल का भंडार देख उसकी परिक्रमा करने लगा. इससे उसका उद्धार हो गया. उस समय से वो काशी में रहने लगा. उसकी बुद्धि और विवेक में परिवर्तन हुआ. वो शाकाहारी हो गया और मृत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्त करके स्वर्ग में गया. उसने स्वर्ग में दो योनि बिताई. उसके बाद उसका जन्म पृथ्वी पर देवदास के रूप में हुआ. वो राजा बना और सभी को मां अन्नपूर्णा के व्रत और परिक्रमा का महत्व बताने लगा. समय गुजरता गया और धीरे-धीरे लोगों के बीच मां के महाव्रत का प्रचलन बढ़ने लगा.

(रिपोर्ट:- विपिन सिंह, वाराणसी)

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