असम को बरसों पीछे पहुंचा देती है सालाना बाढ़

ब्रह्मपुत्र का प्रवाह क्षेत्र ऊंची पहाड़ियों वाला है, जहां कभी घने जंगल हुआ करते थे. उस क्षेत्र में बारिश भी जम कर होती है. बारिश की मोटी-मोटी बूंदें पहले पेड़ों पर गिर कर जमीन से मिलती थीं, लेकिन जब पेड़ कम हुए, तो ये सीधी ही जमीन से टकराने लगीं.

By पंकज चतुर्वेदी | June 28, 2023 8:03 AM
an image

इस बार जल-प्लावन कुछ पहले आ गया. चैत्र का महीना खत्म हुआ नहीं, और पूरा असम जलमग्न हो गया. इस समय राज्य के 20 जिलों के 2,246 गांव बुरी तरह बाढ़ की चपेट में हैं, पांच लाख से अधिक लोग प्रभावित हैं. यह तो शुरुआत है, अगस्त तक राज्य में यहां-वहां पानी ऐसे ही विकास के नाम पर रची गयी संरचनाओं को उजाड़ता रहेगा. हर वर्ष राज्य के विकास में जो धन व्यय होता है, उससे ज्यादा नुकसान दो महीने में ब्रह्मपुत्र का कोप कर जाता है. असम पूरी तरह से नदी घाटी पर बसा हुआ है. इसके कुल क्षेत्रफल 78 हजार, 438 वर्ग किमी में से 56 हजार, 194 वर्ग किमी ब्रह्मपुत्र नदी घाटी में है. बाकी का 22 हजार, 244 वर्ग किमी हिस्सा बराक नदी घाटी में है. राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के मुताबिक, असम का 40 प्रतिशत भाग बाढ़ प्रभावित है. अनुमान है कि इसमें सालाना कोई 200 करोड़ का नुकसान होता है.

राज्य में इतनी मूलभूत सुविधाएं खड़ी करने में दस वर्ष लगते हैं, जबकि हर वर्ष औसतन इतना नुकसान हो ही जाता है. इस तरह असम हर वर्ष विकास की राह पर 19 वर्ष पिछड़ता जाता है. प्राकृतिक संसाधन, मानव संसाधन और बेहतरीन भौगोलिक परिस्थितियां होने के बावजूद, यहां का समुचित विकास नहीं होने का कारण, हर वर्ष पांच महीने ब्रह्मपुत्र का रौद्र रूप है, जो पलक झपकते ही सरकार व समाज की वर्षभर की मेहनत को चाट जाता है. वैसे तो यह नदी सदियों से बह रही है और इसके आस-पास बसे लोगों का सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक जीवन इसी नदी के चहुंओर थिरकता है, सो तबाही को भी वे प्रकृति की देन ही समझते रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों से जिस तरह बह्मपुत्र व उसकी सहायक नदियों में बाढ़ आ रही है, वह हिमालय के ग्लेशियर क्षेत्र में मानवजन्य छेड़छाड़ का ही परिणाम लगते हैं.

पिछले कुछ सालों से ब्रह्मपुत्र के प्रवाह के रौद्र होने का मुख्य कारण इसके पहाड़ी मार्ग पर अंधाधुंध जंगल कटाई को माना जा रहा है. ब्रह्मपुत्र का प्रवाह क्षेत्र ऊंची पहाड़ियों वाला है, जहां कभी घने जंगल हुआ करते थे. उस क्षेत्र में बारिश भी जम कर होती है. बारिश की मोटी-मोटी बूंदें पहले पेड़ों पर गिर कर जमीन से मिलती थीं, लेकिन जब पेड़ कम हुए, तो ये सीधी ही जमीन से टकराने लगीं. इससे जमीन की मिट्टी की ऊपरी परत उधड़ कर पानी के साथ बह रही है. फलस्वरूप, नदी के बहाव में अधिक मिट्टी जा रही है. इससे नदी उथली हो गयी है और थोड़ा पानी आने पर ही इसकी जलधारा बिखर कर बस्तियों की राह पकड़ लेती है. असम में हर वर्ष तबाही मचाने वाली ब्रह्मपुत्र व बराक नदी तथा इनकी 48 सहायक नदियां और उनसे जुड़ी असंख्य सरिताओं पर सिंचाई व बिजली उत्पादन परियोजनाओं के अलावा, इनके जल प्रवाह को आबादी में घुसने से रोकने की योजनाएं बनाने की मांग लंबे समय से उठती रही है.

ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह का अनुमान लगाना भी बेहद कठिन है. इसकी धारा कहीं भी, कभी भी बदल जाती है. परिणामस्वरूप, जमीनों का कटाव व उपजाऊ जमीन का नुकसान भी होता रहता है. इस क्षेत्र की मुख्य फसलें धान, जूट, सरसो, दालें व गन्ना हैं. धान व जूट की खेती का समय ठीक बाढ़ के दिनों का ही होता है. यहां धान की खेती का 92 प्रतिशत आहू, साली बाओ और बोडो किस्म की धान का है और इनका बड़ा हिस्सा हर साल बाढ़ में धुल जाता है. राज्य में नदी पर बनाये गये अधिकांश तटबंध व बांध 60 के दशक में बनाये गये थे. अब वे बढ़ते पानी को रोक पाने में असमर्थ हैं. फिर उनमें गाद भी जम गयी है, जिसकी नियमित सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है. पिछले वर्ष पहली बारिश के दबाव में 50 से अधिक स्थानों पर ये बांध टूट गये थे. इस वर्ष पहले ही महीने में 27 जगहों पर मेड़ टूटने से जलनिधि के गांव में फैलने की खबर है.

बराक नदी, गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना नदी प्रणाली की दूसरी सबसे बड़ी नदी है. इसमें पूर्वोत्तर भारत के कई सौ पहाड़ी नाले आकर मिलते हैं जो इसमें पानी की मात्रा व उसका वेग बढ़ा देते हैं. वैसे इस नदी के मार्ग पर बाढ़ से बचने के लिए कई तटबंध, बांध आदि बनाये गये और ये तरीके कम बाढ़ में कारगर भी रहे हैं. ब्रह्मपुत्र घाटी में तट-कटाव और बाढ़ प्रबंध के उपायों की योजना बनाने और उसे लागू करने के लिए दिसंबर 1981 में ब्रह्मपुत्र बोर्ड की स्थापना की गयी थी. बोर्ड ने ब्रह्मपुत्र व बराक की सहायक नदियों से संबंधित योजना कई वर्ष पहले तैयार भी कर ली थी . केंद्र सरकार के अधीन, एक बाढ़ नियंत्रण महकमा कई वर्षों से काम कर रहा है और उसके रिकॉर्ड में ब्रह्मपुत्र घाटी देश के सर्वाधिक बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में से एक है. इस महकमे ने इस दिशा में अभी तक क्या कुछ किया, उससे कागज व आंकड़ों को जरूर संतुष्टि हो सकती है, लेकिन असम के आम लोगों को राहत अभी तक नहीं मिल सकी है. असम को सालाना बाढ़ के प्रकोप से बचाने के लिए ब्रह्मपुत्र व उसकी सहायक नदियों की गाद सफाई, पुराने बांध व तटबंधों की सफाई, नये बांधों का निर्माण जरूरी है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

Exit mobile version