Apara Ekadashi 2022: हिन्दू धर्म में एकादशी का व्रत काफी महतवपूर्ण है वैसे तो प्रत्येक वर्ष में चौबीस एकादसी होते है. लेकिन ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है ,श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया है कि आपरा एकादशी का व्रत तथा पूजन करने से पाप करने वाले तथा परनिंदक ,ब्रह्म हत्या के दोष, गर्भस्थ शिशु को मारने वाला पापमुक्त होकर विष्णु लोक को चले जाते है. आपरा एकादशी के पूजन से बाला जी की पूजन तथा दर्शन का फल मिलते है.
26 मई 2022 दिन गुरुवार, आपरा एकादशी मनाया जाएगा.
27 मई 2022 दिन शुक्रवार समय सुबह 4 :59 मिनट से लेकर 7 :42 मिनट तक पारण का समय है.
(1 )एकादसी के एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करे .
(2 )प्रातःकाल स्नान करने के बाद पिला वस्त्र धारण करे तथा भगवान विष्णु का पूजन करे .
(3 ) भगवान विष्णु की प्रतिमा छोटी चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर रखे उसके बाद भगवान विष्णु की पूजन करे.
(4 )भगवान विष्णु को ऋतुफल ,सुपारी, पान के पता ,लौंग चढ़ाये ,
(5 )भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने देशी घी का दीपक जलाये ,तथा भोग लगाये .
भगवान कृष्ण से युधिष्ठिर पूछे हे भगवान ज्येष्ठ मास की कृष्ण एकादसी का नाम क्या है. तथा उनका व्रत का क्या महात्म है,कृपा आप बताये . भगवान कृष्ण बोले हे राजन ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादसी को अपरा या अचला एकादसी के नाम से जाना जाता है. यह व्रत करने से आपार धन की प्राप्ति होती है ,जो मनुष्य यह व्रत करता है. वह संसार में विख्यात हो जाता है .इस व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या परनिंदा ,परस्त्रीगामी ,झूठ बोलना, तथा सभी पापो को नाश करता है. कार्तिक पूर्णिमा में जो स्नान करने तथा पितरो का पिंडदान करने से जो पुण्य प्राप्त करता है ,गोमती नदी में स्नान करने से जो फल मिलता है वह आपरा एकादसी व्रत करने से मिलता है इस व्रत की महिमा अपरंपार है.
महीध्वज नामक धर्मात्मा राजा थे उनके छोटे भाई का नाम व्रज्ध्वज था छोटे भाई बड़े भाई से जो राजा थे उनसे द्वेष रखता था .एक दिन अवसर पाकर अपने बड़े भाई माहीध्वज की हत्या कर दी और जंगल में पीपल के पेड़ के निचे गाड़ दिया ,
आकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बन गया. वहीं पीपल के पेड़ के पास रहने लगे. उस मार्ग से गुजरने वाले लोगो को परेशान करने लगे.एक दिन एक ऋषि इसी रस्ते से गुजर रहे थे .उन्होंने प्रेत को देखा और अपने तप के बल से उनके प्रेत बनने का कारण पूछा. ऋषि ने उस आत्मा को पीपल के पेड़ से निचे उतरने को कहा और उस आत्मा को ऋषि ने परलोक विद्या का उपदेस दिया. उसी समय राजा को प्रेत योनी से मुक्त करने के लिए ऋषि ने स्वयं आपरा एकादसी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य ,उस प्रेत आत्मा को दे दिया. एकादशी व्रत के पुण्य प्रताप से राजा प्रेत योनी से मुक्त हो गए .और स्वर्ग लोक चले गए .
संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
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