कोसी महासेतु पर ट्रेनों के परिचालन की मिली मंजूरी, 22 किमी में सिमट जायेगी 298 किमी की दूरी
सहरसा : कोसी महासेतु पर जल्द ही ट्रेनों के परिचालन की शुरुआत की जा सकेगी. सीसीआरएस की ओर से कोसी महासेतु रेल पुल पर ट्रेनों के परिचालन की मंजूरी मिल गयी है. इसके बाद इस पुल पर 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेन दौड़ सकेगी. वहीं, पुल के बाहर गति सीमा 100 किलोमीटर प्रति घंटे होगी. निर्मली से सरायगढ़ तक का सफर वर्तमान में दरभंगा-समस्तीपुर-खगड़िया-मानसी-सहरसा होते हुए 298 किलोमीटर का है. इस पुल के निर्माण से 298 किलोमीटर की दूरी मात्र 22 किलोमीटर में सिमट जायेगी.
सहरसा : कोसी महासेतु पर जल्द ही ट्रेनों के परिचालन की शुरुआत की जा सकेगी. सीसीआरएस की ओर से कोसी महासेतु रेल पुल पर ट्रेनों के परिचालन की मंजूरी मिल गयी है. इसके बाद इस पुल पर 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेन दौड़ सकेगी. वहीं, पुल के बाहर गति सीमा 100 किलोमीटर प्रति घंटे होगी. निर्मली से सरायगढ़ तक का सफर वर्तमान में दरभंगा-समस्तीपुर-खगड़िया-मानसी-सहरसा होते हुए 298 किलोमीटर का है. इस पुल के निर्माण से 298 किलोमीटर की दूरी मात्र 22 किलोमीटर में सिमट जायेगी.
सीपीआरओ राजेश कुमार ने बताया कि ट्रेनों की आवाजाही के लिए उद्घाटन की तिथि तैयार की जा रही है. सितंबर के पहले सप्ताह में इसकी संभावित तिथि हो सकती है. बताते चलें कि विगत 14 अगस्त को आसनपुर कुपहा-सरायगढ़ के बीच मुख्य सीआरएस शैलेश कुमार पाठक ने निरीक्षण किया था. इस दौरान कोसी महासेतु पर भी ट्रेन का स्पीड ट्रायल लेते हुए पुल का निरीक्षण का कार्य भी किया गया था. इसमें वरीय अधिकारियों की पूरी टीम मौजूद थी.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रखी थी आधारशिला
लगभग 1.9 किलोमीटर लंबे नये कोसी महासेतु सहित 22 किलोमीटर लंबे निर्मली-सरायगढ़ रेलखंड का निर्माण वर्ष 2003-04 में 323.41 करोड़ रुपये की लागत से स्वीकृत किया गया था. इसके बाद 6 जून, 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा शिलान्यास किया गया था. लेकिन, अब परियोजना की अद्यतन अनुमानित लागत 516.02 करोड़ रुपये है. 23 जून 2020 को इस नवनिर्मित रेल पुल पर पहली बार ट्रेन का सफलता पूर्वक परिचालन किया गया.
मालूम हो कि अपने प्रवाह का मार्ग परिवर्तित करने में कोसी का कोई जोड़ नहीं है. बिहार में कोसी नदी की धाराओं का विस्थापन पिछले 100 वर्षों में लगभग 150 किलोमीटर के दायरे में होता रहा है. कोसी नदी के दोनों किनारों को जोड़ने में यह एक बहुत बड़ी रुकावट थी. वर्तमान पुल का निर्माण निर्मली एवं सरायगढ़ के बीच किया गया है.
निर्मली जहां दरभंगा-सकरी-झंझारपुर मीटर गेज लाइन पर अवस्थित एक टर्मिनल स्टेशन था. वहीं, सरायगढ़, सहरसा और फारबिसगंज मीटर गेज रेलखंड पर अवस्थित था. सन 1887 में बंगाल नॉर्थ-वेस्ट रेलवे ने निर्मली और सरायगढ़ (भपटियाही) के बीच एक मीटर गेज रेल लाइन का निर्माण किया था. उससमय कोसी नदी का बहाव इन दोनों स्टेशनों के मध्य नहीं था. उससमय कोसी की एक सहायक नदी तिलयु्गा इन स्टेशनों के मध्य बहती थी. इसके ऊपर लगभग 250 फीट लंबा एक पुल था.
कोसी नदी के पश्चिम दिशा में उत्तरोत्तर विस्थापन के क्रम में सन 1934 में यह पुल ध्वस्त हो गया एवं कोसी नदी निर्मली एवं सरायगढ़ के बीच आ गयी. कोसी की मनमानी धाराओं को नियंत्रित करने का सफल प्रयास पश्चिमी और पूर्वी तटबंध तथा बैराज निर्माण के साथ 1955 में आरंभ हुआ. पूर्वी और पश्चिमी छोर पर 120 किलोमीटर का तटबंध 1959 में पूरा कर लिया गया और 1963 में भीमनगर में बैराज का निर्माण भी पूरा कर लिया गया.
इन तटबंधों तथा बैराज ने कोसी नदी के अनियंत्रित विस्थापन को संयमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. इस कारण इस नदी पर पुल बनाने की परियोजना सकार रूप ले सकी. निर्मली से सरायगढ़ तक का सफर वर्तमान मे दरभंगा-समस्तीपुर-खगड़िया-मानसी-सहरसा होते हुए 298 किलोमीटर का है. इस पुल के निर्माण से यह 298 किलोमीटर की दूरी मात्र 22 किलोमीटर में सिमट जायेगी.