अजय राणा, कतरास : रोजी-रोटी के लिए चित्रकारी करने वालों की भीड़ में बाघमारा प्रखंड के कपुरिया गांव निवासी महावीर महतो उर्फ महावीर शामी इसलिए अलग नहीं हैं कि उनके पास विश्वविद्यालय की बड़ी-बड़ी उपाधियां हैं. दरअसल महावीर ने रोजी-रोटी के लिए नहीं, बल्कि झारखंड की विरासत को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वाल पेंटिंग को जरिया बनाया है. पारिवारिक जरूरतों के लिए उन्हें भी आय के निश्चित स्रोत की जरूरत थी, लेकिन मिशन और धुन के पक्के महावीर ने ठीक-ठाक नौकरी को छोड़ कर फकीराना अंदाज में अभियान की राह चुनी और खुद को झोंक दिया.
झारखंडी संस्कृति के दीवाने महावीर शामी ने झारखंड की संस्कृति और यहां की खूबियों को वाल पेंटिंग में उकेरने के लिए खुद को पूर्णतः समर्पित कर दिया है. पिछले एक साल में इन्होंने झारखंड के छह जिलों के करीब 35 गांवों में अपनी वाल पेंटिंग के जरिये झारखंडी संस्कृति उकेरी और उसकी खुशबू बिखेरी है. महावीर का लक्ष्य झारखंड के 32 हजार गांवों में अपनी कला के जरिये झारखंडी कला-संस्कृति को उकेरना है. इसके लिए इन्हें तीन-तीन, चार-चार सप्ताह तक अपने घर-परिवार से दूर रहना पड़ता है. धर्माबांध पंचायत के नीचे देवघरा में रात 10 बजे तक दीवारों में चित्रकारी करते नजर आते हैं. कपुरिया गांव के निवासी महावीर भाई-बहन में सबसे छोटे हैं. इनके पिता बाबूलाल महतो बीसीसीएल में थे. महज नौ दिनों के थे, तभी इनके सिर से पिता का साया उठ गया. मां रुद महताइन को बच्चों की परवरिश लिए भीख तक मांगनी पड़ी. तीन साल बाद उन्हें अनुकंपा पर आकाशकिनारी कोलियरी कतरास में नौकरी मिली.
महावीर स्वामी में कला के प्रति रुचि बचपन से रही है. इनकी मां बताती हैं कि वह जब घर में गोवर निपाई करती थी, तब महावीर रात भर जागकर पेंसिल चौक से घर पर चित्र बनाता था. इस सफर में सिंगड़ा महुदा निवासी वरिष्ठ चित्रकार व कला केंद्र के शुकर महतो इनके मार्गदर्शक बने. 2008 में बीएचयू में रैंक आठ था. वहां से बीएफए कर विजुअल आर्ट्स की पढ़ाई वहीं से पूरी की. 2013-2015 में मास्टर ऑफ फाइन आर्ट्स इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ (राजनांदगांव, छत्तीसगढ़) में अंतरराष्ट्रीय चित्रकार वी नागदास के सान्निध्य में रहकर पूरा किया. इसके बाद इन्होंने बीएड कॉलेज, धनबाद में कला व्याख्याता के रूप में नौकरी शुरू की. करीब तीन वर्ष के बाद गुजरात के एक सीबीएसइ स्कूल में नौकरी करने का अवसर मिला.
गुजरात में नौकरी के दो वर्ष ही बीते थे कि झारखंड में भोजपुरी, मगही समेत कतिपय अन्य भाषाओं को सरकारी नियुक्तियों में मान्यता देने को लेकर शुरू हुए आंदोलन ने इनका ध्यान खींचा तो लौटकर इसका हिस्सा बन गये. आंदोलन में जान फूंकने और आंदोलनकारियों में उत्साह भरने के लिए नौकरी छोड़ दी. बैंक अकाउंट पूरी तरह से खाली हो चुका है.
छोटानागपुर लोककला संस्कृति संस्थान के संस्थापक : महावीर बताते हैं कि मां और पत्नी के सहयोग के बिना उनका यह मिशन संभव नहीं है. पहले मां ने कला की डिग्री दिलवायी. अब पत्नी का सहयोग मिल रहा है. महावीर कहते हैं कि इस अभियान में अब वह पीछे नहीं हटेंगे. अलग राज्य तो अवश्य बना, पर झारखंड की मूल संस्कृति छिन्न-भिन्न हो गयी है. लोग भाषा-संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं. इसी बात ने उन्हें विचलित किया है और झारखंड को झारखंडी संस्कृति से रंगने और माटी का कर्ज उतारने निकल पड़े हैं. वर्तमान में महावीर शामी महतो छोटानागपुर लोककला संस्कृति संस्थान के संस्थापक भी हैं.
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