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Astrology: कुंडली में इन ग्रहों के प्रभाव से होती है ये समस्याएं, जानें सातवें भाव में स्थित ग्रहों का फल

ज्‍योतिष के अनुसार किसी भी जातक के जीवनसाथी के बारे में जानकारी मिल सकती है. ऐसा नहीं है कि केवल पुरुष जातक की कुण्‍डली देखकर ही उसकी पत्‍नी के बारे में सब कुछ बताया जा सकता हो या स्‍त्री की कुण्‍डली देखकर उसके पति के बारे में. आइए जानते है...

Astrology: ज्‍योतिष के अनुसार कुंडली के सप्‍तम भाव को देखा जाता है. सप्तम भाव ही बताता है कि पत्‍नी का स्‍वभाव कैसा होगा और जातक का उसके जीवनसाथी के साथ जीवन में संबंधन कैसा रहेगा. पत्‍नी के साथ जातक का स्‍वभाव कैसा होगा? शारीरिक विशेषताएं और चारित्रिक गुणों के बारे में भी कुछ उथली जानकारी मिल सकती है. ज्योतिष के अनुसार विवाह के लिए अधिकतर नक्षत्र के आधार पर गुण मिलान और मंगल दोष ही प्रमुखता से देखा जाता है, लेकिन अगर सातवें भाव का विशेष ख्‍याल रखा जाए तो सर्वश्रेष्‍ठ चुनाव किया जा सकता है.

तिरस्‍कार कराता है सूर्य

जन्म लग्न से सप्तम में सूर्य स्थित हो तो पुरुष को स्त्रियों का तिरस्कार प्राप्त होता है. हालांकि सूत्र के अनुसार केवल पुरुष जातक के लिए ही कहा गया है, लेकिन देखने में ऐसा आता है कि अगर स्‍त्री जातक की कुण्‍डली में भी सप्‍तम का सूर्य हो तो स्‍त्री को अपने पति का तिरस्‍कार झेलना पड़ता है. ऐसे जातकों के जीवनसाथी कई बार भरी सभा में या बाजार में भी जातकों को अपमानित कर देते हैं. ऐसा नहीं है कि उनका अपमान करने का इरादा होता है, लेकिन अधिकांशत: ऐसी स्थितियां बन जाती हैं कि तिरस्‍कार अथवा अपमान हो जाता है.

कठोर जीवनसाथी देते हैं मंगल

सप्तम भाव मे चन्द्रमा हो तो मनुष्य नम्र विनय से वश में आने वाला सुखी, सुन्दर और कामुक होता है. अगर यही चन्द्रमा बलहीन हो तो मनुष्य दीन और रोगी होता है.

सप्तम मंगल की स्थिति के बारे में ज्योतिषाचार्यों ने बताया सप्तम भाव में मंगल होने से पत्नी की मृत्यु हो सकती है. नीच स्त्रियों से कामानल शांत करता है. स्त्री के स्तन उन्नत और कठिन होते हैं. जातक शारीरिक दृष्टि से प्रायः क्षीण, रुग्ण, शत्रुओं से आक्रांत तथा चिंताओं में लीन रहता है.

सप्तम भाव में बुध का प्रभाव

जिस मनुष्य के जन्म समय मे बुध सप्तम भाव में हो वह अत्यन्त सुन्दर और मृगनयनी स्त्री का स्वामी होता है. यदि बुध अकेला हो तो मन को मोहित करने वाली सुवर्ण के समान देदीप्यमान कान्ति होती है. वह सम्भोग में अवश्य शिथिल होता है. उसका वीर्य निर्बल होता है.

विदूषी अर्धांगिनी देते हैं बृहस्‍पति

जिस जातक के जन्म समय में गुरु सप्तम भाव में स्थित हो वह स्वभाव से नम्र होता है. अत्यन्त लोकप्रिय और चुम्बकीय व्यक्ति का स्वामी होता है, उसकी भार्या सत्य अर्थों में अर्धांगिनी सिद्ध होती है तथा विदुषी होती है, इसे स्त्री और धन का सुख मिलता है. यह अच्छा सलाहकार और काव्य रचना कुशल होता है.

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पर‍स्‍त्री में आसक्‍त करते हैं शुक्र

जिस जातक के जन्म समय में शुक्र सप्तम भाव हो उसकी स्त्री गोरे रंग की श्रेष्ठ होती है, जातक को स्त्री सुख मिलता है गान विद्या में निपुण होता है, वाहनों से युक्त कामुक एवं परस्त्रियों में आसक्त होता है. विवाह का कारक ग्रह शुक्र है. सिद्धांत के तहत कारक ग्रह कारक भाव के अंतर्गत हो तो स्थिति को सामान्य नहीं रहने देता है, इसलिए सप्तम भाव में शुक्र दाम्पत्य जीवन में कुछ अनियमितता उत्पन्न करता है. ऐसे जातक का विवाह प्रायः चर्चा का विषय बनता है.

दुखी करते हैं शनि

सप्तम भाव में शनि का निवास किसी प्रकार से शुभ या सुखद नहीं कहा जा सकता है. सप्तम भाव में शनि होने से जातक का शरीर दोष युक्त (रोग) रहता है. उसकी पत्नी कृश होती है जातक वेश्यागामी एवं दुखी होता है. यदि शनि उच्च ग्रही या स्वग्रही हो तो जातक अनेक स्त्री का उपभोग करता है. यदि शनि मंगल से युक्त हो तो स्त्री अत्यन्त कामुक होती है, उसका विवाह अधिक उम्र वाली स्त्री के साथ होता है.

दो विवाह की आशंका बनाता है राहु

जिस जातक के जन्म समय में राहु सप्तम भावगत हो तो उसके दो विवाह होते हैं. पहली स्त्री की मृत्यु या तलाक होता है दूसरी स्त्री को प्रदर रोग इत्यादि होते हैं. जातक क्रोधी, दूसरों का नुकसान करने वाला, व्यभिचारी स्त्री से सम्बन्ध रखने वाला गर्वीला और असंतुष्ट होता है.

जातक का अपमान कराते है केतु

यदि सप्तम भाव में केतु हो तो जातक का अपमान होता है. स्त्री सुख नहीं मिलता स्त्री पुत्र आदि का क्लेश होता है. खर्च की वृद्धि होती है राजा की अकृपा शत्रुओं का डर एवं जल भय बना रहता है. वह जातक व्यभिचारी स्त्रियों में रति करता हैं.

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