Astrology: रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन से प्रेरणा लेने की बातें कही हैं. गोस्वामी जी ने ‘ईश्वर अंश जीव अविनाशी, चेतन अमल सहज सुखराशि’ चौपाई के जरिये जो सूत्र दिये हैं, सिर्फ उसे ही अपना लेने से जीवन आह्लादपूर्ण हो जाता है. ईश्वर का अंश होने के कारण बिना आनंद के जीवन बोझिल हो जाता है तथा शारीरिक एवं मानसिक बीमारियों का आक्रमण होने लगता है. धार्मिक विद्वानों का मानना है कि मनुष्य के जीवन में ग्रहों का असर पड़ता है. ग्रहों को अनुकूल करने के लिए अनेक धार्मिक विधान किये गये हैं, लेकिन ऐसा नहीं कि ग्रह मनुष्य के वश में नहीं हो सकते.
मनुष्य के आनंद और आह्लाद के लिए धर्मानुचरण जीवन जीने की सलाह धर्मग्रंथों में दी गयी है. देव-दुर्लभ शरीर पाने वाला ग्रहों को अपने अनुकूल सरलता से जरूर कर सकता है, मगर इसके लिए सिर्फ ‘निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा’ चौपाई को जीवन का महामंत्र बना लिया जाये, तो फिर कुंडली में कोई भी ग्रह कितने भी विपरीत हों, वह खुद ही अनुकूल और सहायक होने लगेंगे. बस आत्मबल सशक्त हो. कुंडली के 12 खानों में कुल नौ ग्रह होते हैं. मेडिकल साइंस की दृष्टि से मनुष्य की तंत्रिका प्रणाली में मस्तिष्क से 12 नसें निकलती हैं. इन बारहों नसों के अनुकूल तथा सुव्यवस्थित रहने पर शरीर के आंतरिक रस-रसायनों का स्राव अनुकूल होता है. इसके लिए सर्वाधिक प्रतापी ग्रह सूर्य है.
ग्रह-मंडल की पूजा जब की जाती है तब इसके रंग को ध्यान में रखकर लाल रंग से पूजा का विधान है. यदि मनुष्य पारदर्शी और श्वेत जीवन-पद्धति अपनाता है तथा झूठ के सहारे जीवन नहीं जीता है, तो उसके व्यक्तित्व की चमक-दमक तथा लालिमा उगते सूर्य की तरह बनी रहती है. झूठ जिह्वा का कूड़ा है. जीभ पर कूड़ा आते मां सरस्वती विदा हो जाती हैं. झूठ के बादल इंसान के आत्मबल के सूर्य को ढक देते हैं. चंद्रमा शीतलता का प्रतीक है. व्यक्ति जब क्रोध करता है तब उसके मस्तिष्क में अंधकार आ जाता है. क्रोध को पिशाच कहा गया है. इससे चंद्र ग्रह प्रतिकूल होते हैं. अब जहां तक सवाल मंगल ग्रह का है, वह अग्नि तत्व का सूचक है. यज्ञ-हवन में ‘आग्नेय नमः’ का मंत्र पढ़ा जाता है. जहां अग्नि तत्व है, वहां मंगल ग्रह मौजूद है. इसलिए समय-समय पर पर्यावरण के संरक्षण के लिए यज्ञ-हवन करना चाहिए तथा वायुमंडल की शुद्धता के लिए दूषित पदार्थों को नहीं जलाना चाहिए.
बुध ग्रह ग्रहों का राजकुमार है. बुध का रंग हरित है. श्रीगणेश बुध के देवता हैं, इसलिए छोटे बच्चों, खासकर 10 वर्ष तक के बच्चों को स्नेह, ज्ञान तथा अपनत्व दिया जाये, तो वह भाव सीधे देवलोक तक जाता है, फिर न पूजा-पाठ, न शिवाला-मंदिर तक जाने की जरूरत होगी. इसी के साथ दूर्वा से प्रसन्न होने वाले गणेश जी की कृपा के लिए प्रकृति-संरक्षण एवं वृक्षारोपण करना चाहिए. हरे पेड़ नहीं काटने चाहिए. माता-पिता, गुरुजन, आसपास के खुद से बड़ी उम्र के लोगों की इज्जत करने से आगे की पीढ़ी यशस्वी होती है.
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शुक्र वैभव का ग्रह हैं. अपने सामर्थ्यपूर्ण जीवन के कुछ भाग उन लोगों को बांटें, जो वैभव के क्षेत्र में पिछड़ गये हैं. अशक्त लोगों के प्रति सम्मान व उनका हौसला बढ़ाना भी वैभव दान है. वहीं ग्रहों के न्यायाधीश शनि को अनुकूल बनाना हो, तो किसी की संपत्ति हड़पना, धोखा देना, नारी सम्मान न करना और उन पर कुदृष्टि डालने आदि कर्मों से विरत रहने मात्र से शनि ग्रह अनुकूल हो जाता है. सभी ग्रहों को एक साथ अनुकूल बनाने के लिए पूजा-पाठ में सर्वप्रथम माता-पिता, बहन, भांजे, विद्वानों, पितरों, सच्चे साधु-संतों के प्रति मंगल कामना की प्रार्थना करें एवं सामाजिक कार्यों में सामर्थ्यनुसार योगदान दें.