अटल बिहारी वाजपेयी भारत के ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनकी दूरदर्शिता और राजनीतिक समझ के कायल विरोधी भी थे. बात चाहे नदियों को जोड़ने की हो या सड़क मार्ग द्वारा देश को जोड़ने की अटल जी की नीति हमेशा देश को जोड़ने वाली ही रही.
अटल जी एक ऐसी शख्सीयत थे, जो आजीवन देश को समर्पित रहा. उनके कई गुणों में एक थी उनकी वाक् शैली. भारतीय राजनीति में उनके जैसा वक्ता विरले ही नजर आता है. आजादी के बाद संसद में दिये गये उनके भाषण को सुनकर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनकी बहुत तारीफ की थी.
अटल जी की भाषण शैली और खासकर उनका रूक-रूक कर बोलना का अंदाज अनूठा था. वे अपने भाषण के दौरान जिस तरह शालीनता से अपने विरोधियों पर तंज कसते थे, उसे सुनकर कोई भी वाह किये बिना नहीं रह सकता था.
1996 में जब अटल की 13 दिन की सरकार बनी थी, उस वक्त जब वे बहुमत नहीं जुटा पाये थे और इस्तीफा देने के लिए राष्ट्रपति भवन गये थे उनके उस भाषण के बारे में यह कहा जाता है कि उनके भाषण ने कांग्रेस पार्टी के नेताओं की बेचैनी बढ़ा दी थी और यह कहा जा रहा था कि वाजपेयी जी अगला चुनाव उस भाषण की बदौलत ही जीत जायेंगे. अपने उस भाषण में अटल ने जी ने कहा था कि लोकतंत्र में संख्या बल का महत्व बहुत ज्यादा है और मेरे पास संख्याबल नहीं है इसलिए हम संख्याबल के आगे मस्तक झुकाते हैं और मैं इस्तीफा देने राष्ट्रपति के पास जा रहा हूं.
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अटल जी मोरारजी देसाई की सरकार में विदेश मंत्री थे और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में पहली बार हिंदी में भाषण दिया था, जो उनके यादगार भाषणों में से एक था. एक ओर वे कवि हृदय थे तो दूसरी ओर वे पोखरण -2 का माद्दा भी रखते थे.
Posted By : Rajneesh Anand