आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती है. आजाद हिंद फौज के नायक नेताजी का झारखंड से गहरा जुड़ाव रहा है. 1928 से लेकर 1941 के बीच नेताजी कई दफा झारखंड आये. 1928 से 1938 तक जमशेदपुर लेबर यूनियन के अध्यक्ष भी रहे. इतिहासकार और अनिर्वाण प्रेरणा पुस्तक के लेखक डॉ राम रंजन सेन बताते हैं : नेताजी 1938 में हजारीबाग पहुंचे. दूसरी बार 11 फरवरी 1940 को आये. साथ में सहजानंद सरस्वती और शीलभद्र याजी भी थे. इसके बाद रांची और रामगढ़ में भी लोगों को आजादी के लिए प्रेरित किया. नेताजी ने कहा था : गुलामी के अलावा हम कुछ भी त्यागने को तैयार नहीं.
आजाद हिंद फौज के चिकित्सक डाॅ वीरेंद्र नाथ राय रांची में रहते थे. 20 मार्च 1940 को रामगढ़ में समझौता विरोधी सम्मेलन की घोषणा हो चुकी थी. इसमें शामिल होने के लिए नेताजी 17 मार्च 1940 को रांची पहुंचे. लालपुर स्थित फणींद्रनाथ आयकत और उनके भाई देवेंद्रनाथ आयकत के घर ठहरे थे. यहां देश को आजाद करने के लिए आह्वान किया. नेताजी को कचहरी रोड स्थित अब्दुलबारी पार्क में नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया था. इसके बाद एचबी रोड स्थित लोहरदगा लॉज में विशिष्ट नेताओं से मिले. तत्कालीन बिहार व रांची में चल रही राजनीतिक गतिविधियों पर चर्चा की. थड़पखना की लीलावती ने नेताजी का स्वागत किया था. आजाद हिंद फाैज की मजबूती के लिए महिलाओं ने अपने जेवर तक दे दिये. जयपाल सिंह मुंडा के नेतृत्व में मोरहाबादी मैदान में जनसभा काे संबोधित किया. जयपाल सिंह ने नेताजी को पराक्रम के प्रतीक के रूप में लाठी भेंट की.
समझौता विरोधी आंदोलन अधिवेशन का जिक्र धर्मेंद्र गौड़ की पुस्तक क्रांति आंदोलन – कुछ अधखुले पन्ने में किया गया है. इसमें उन्होंने लिखा है : सभास्थल खचाखच भरा था. आकाश में गरजते बादल अलग से बरसने के लिए बेताब थे. इसके बावजूद आदमी, औरत, बच्चे एक लाख से कम नहीं थे. आजादी का दीवाना (सुभाष चंद्र) मंच से दहाड़ा : सुनने में आया है कि हमारे देश के कुछ नेता अंग्रेजों से समझौता करने जा रहे हैं. आजादी और गुलामी के बीच समझौता कैसा? यदि हुआ, तो दोनों में कोई अंतर नहीं होगा. गुलामी के अलावा हम कुछ भी त्यागने को तैयार नही हैं. हमें पूर्ण स्वराज चाहिए. इस इरादे से हमें संसार की कोई भी शक्ति डिगा नहीं सकती. आजादी मांगी नहीं, ली जाती है. अब हमें कोई गुलाम बनाकर नहीं रख सकता.
20 मार्च को गांधी जी के निर्देश पर अबुल कलाम आजाद रामगढ़ में 53वां राष्ट्रीय अधिवेशन कर रहे थे. वहीं नेताजी का समानांतर अधिवेशन भी रामगढ़ में तय था. तत्कालीन स्थिति को देखते हुए गांधीजी ने नेताजी से अधिवेशन का समय बदलने का आग्रह किया था. सैद्धांतिक मतभेद के बावजूद नेताजी ने अधिवेशन का समय शाम 05:30 बजे की जगह दो घंटे पहले 03:30 बजे कर दिया.
एनसीसी यूनिट का उद्देश्य है एकता और अनुशासन. नेताजी भी एकता, विश्वास और बलिदान पर विश्वास करते थे. जो सोच नेताजी की थी, उसी से एनसीसी भी प्रेरित है. उन्होंने सैनिकों के बारे में सोचा, जो सभी के लिए प्रेरणादायक है. नेताजी में एक लीडरशिप क्वालिटी थी, जिसे हर युवा को अपनाने की जरूरत है. युवाओं को नेताजी के जीवन से ये बातें सीखने की जरूरत है.
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युवाओं को नेताजी की तरह ही बुद्धि तत्परता के साथ जीवन में आगे बढ़ना होगा. अपने लक्ष्य के प्रति निडरता के साथ आगे बढ़ने का दृढ संकल्प लेना होगा.
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नेताजी हमेशा अपने कार्यों व बातों से लोगों को प्रेरित करते थे. इसलिए युवाओं की सोच भी ऐसी होनी चाहिए ताकि आनेवाली पीढ़ी उनसे प्रेरित हो सके.
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नेताजी की सोच दूरदर्शी थी. हमें भी उनकी तरह सोच रखनी होगी. हमेशा यह सोचकर आगे बढ़ें कि असफलता के बाद सफलता जरूर मिलेगी.
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युवाओं को अपनी सोच में विविधता को समावेश करना होगा, तभी तरक्की की राह मिल सकती है.
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हर युवा को नेताजी की तरह जुनूनी होना होगा, ताकि महान बनने की राह पर चल सकें.
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नेताजी का स्वतंत्र भारत को लेकर लक्ष्य स्पष्ट था. जीवन में लक्ष्य का चुनाव बेहद जरूरी है. लक्ष्य अल्पावधि या दीर्घकालिक हो सकता है.
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यदि आप अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं, तो जीवन में निरंतर समर्पण की जरूरत है.
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नेताजी हर योजना का विकल्प रखते थे. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते समय छात्रों को हमेशा कई विकल्प हाथ में रखना चाहिए.
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नेताजी का जीवन जोखिमों और निर्णय से भरा था. अगर युवा कंफर्ट जोन से बाहर आने को तैयार नहीं हैं, तो जीवन में कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है.
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युवाओं का एक अच्छा मित्र मंडल होना चाहिए. मित्र मंडल प्रेरक और प्रेरित लोगों से भरा होना चाहिए.