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Azadi Ka Amrit Mahotsav: 109 साल के रमणी मोहन विमल जेल गये, यातनाएं सही, फिर देखी आजादी

हम आजादी का अमृत उत्सव मना रहे हैं. देश की आजादी के लिए अपने प्राण और जीवन की आहूति देनेवाले वीर योद्धाओं को याद कर रहे हैं. आजादी के ऐसे भी दीवाने थे, जिन्हें देश-दुनिया बहुत नहीं जानती़ वह गुमनाम रहे. झारखंड की माटी ऐसे आजादी के सिपाहियों की गवाह रही है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 12, 2022 1:41 PM
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Azadi Ka Amrit Mahotsav: आजादी के दीवाने 109 वर्षीय रमणी मोहन झा ‘विमल’ गोड्डा के रौतारा में रहते हैं. श्री विमल ने भारत को आजाद दिलाने में जेल गये, यातनाएं सहे, अंग्रेजों के कोड़े खाए, अपना घर-परिवार तक तबाह होते अपनी आंखों से देखा, बावजूद आज आजादी के जश्न को याद कर खिल उठते हैं.

गांधी जी के आह्वान पर अंग्रेजों से खिलाफत करने कूदे

सैदापुर गांव में 30 सितंबर, 1912 में जन्मे रमणी मोहन झा की प्रारंभिक शिक्षा नाना के घर सहरसा के महिषी में हुई. वहीं से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद क्रांतिकारियों की राह पर चल पड़े. गांधी जी के आह्वान पर श्री विमल अंग्रेजों से खिलाफत करने कूद पड़े. गोड्डा के कलाली मुहल्ले में जाकर शराब की भट्ठी को नष्ट किया. 1942 में गोड्डा कोर्ट परिसर में आंदोलन करने पहुंचे विमल को तत्कालीन एसडीओ डेविड के निर्देश पर अंग्रेज सिपाही ने श्री झा को चारों ओर से घेर लिया. इनका नारा था अंग्रेज सिपाही को उतारो. इतने में इनपर लाठी की बौछार होने लगी. इनके सहयोगियों में शामिल मनोहर झा व कमलाकांत झा ने हाथ पकड़ कर डंडे की मार से बचाने के लिए पीछे की ओर खींच लिया.

अंग्रेजों के खिलाफ की जासूसी

छिपते- छिपाते श्री झा नौगछिया पहुंच गये. इस बीच अंग्रेजों ने दबाव बनाते हुए श्री झा के सैदापुर मकान को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया. कुर्क करने के दौरान किवाड़ तथा दरवाजे को उखाड़ फेंका. घर के लोगों को दर-बदर की ठोकरें खाने को विवश कर दिया. इसके बावजूद श्री झा क्रांतिकारी कार्यों में डटे रहे. सहरसा, मधेपुरा आदि क्षेत्र में अपनी शक्ल को बदलकर दाढ़ी-बाल बढ़ाकर अंग्रेजों के खिलाफ जासूसी कर गुप्त सूचनाओं को इकट्ठा करने का काम किया. कर्पूरी ठाकुर, मधेपुरा के भूपेंद्र नारायण मंडल के साथ आंदोलन को सख्त बनाते रहे. भूपेंद्र मंडल की पान की बाड़ी में करीब सात दिनों तक अन्य साथियों के साथ अंग्रेजों से बचने के लिए छिपे रहे. उस वक्त इनके सहयोगीयों में सहरसा के जटाशंकर चौधरी, बलभद्र खां, रमेश झा, कर्पूरी ठाकुर, रामफल पासवान आदि थे.

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1944 में आंदोलन के दौरान लाठी खाकर गये भागलपुर सेंट्रल जेल

श्री झा का आंदोलन और भी तेज हो गया. अंग्रेजों ने डंडे बरसाकर इनके शरीर को पूरी तरह से तोड़ दिया था. 1944 में सेंट्रल जेल में छह माह के लिए डाल दिये गये. वहीं से नौ माह के लिए कैंप जेल भागलपुर में रखे गये. जेल में इन्हें कैदियों वाला ड्रेस दिये जाने पर भड़क उठे तथा उसे पहनने से इनकार कर दिया. बगैर कपड़े के नंग-धड़ंग रहकर कई दिनों तक यातनाएं सही. श्री झा बताते हैं कि बाद में सिपाहियों ने खादी की धोती व गमछा दिया, जिसे पहनकर अपने हठ को तोड़ा.

109 वर्षीय रमणी मोहन विमल आज भी बिना चश्मे के पढ़ते हैं किताब और अखबार

श्री झा उस वक्त से आज तक उसी लिवास में रहते हैं. 109 वर्ष की उम्र में भी वे बगैर चश्मा के ही किताब और अखबार पढ़ पा रहा हैं. श्री झा की एक कान देवघर में आंदोलन के दौरान थप्पड़ खाने की वजह से खराब हो गयी थी. इस वजह से सुनने में परेशानी होती है. स्वतंत्रता के बाद 31 अक्तूबर, 1958 में हंसडीहा में सर्वोदय आंदोलन को लेकर बड़ा आयोजन था. उस वक्त जयप्रकाश नारायण के साथ प्रभावती देवी, काका कालेकर, धर्माधिकारी आदि नेता पहुंचे थे. इस क्रम में श्री झा के घर सैदापुर भी आये थे. स्वतंत्रता सैनानी श्री झा के पुत्र जगधात्री झा जो कांग्रेस के जिला पदाधिकारी हैं, बताते हैं कि उनके पिता ने उस वक्त सैदापुर गांव को दान दे दिया था. सैदापुर में जेपी द्वारा मिडिल स्कूल की आधारशिला रखी गयी थी. श्री झा के तीन पुत्र जगधात्री झा, देवता झा व दाता झा ने भी अपना जीवन सामाजिक कार्यों में लगा दिया. 1962 में भूदान आंदोलन के दौरान बिनोबाभावे श्री झा के बुलावे पर गोड्डा आये थे.


रिपोर्ट : निरभ किशोर, गोड्डा.

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