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Azadi Ka Amrit Mahotsav: अंग्रेजों की खायी गोली, पर छेदी मंडल ने लहराया तिरंगा

हम आजादी का अमृत उत्सव मना रहे हैं. भारत की आजादी के लिए अपने प्राण और जीवन की आहूति देनेवाले वीर योद्धाओं को याद कर रहे हैं. आजादी के ऐसे भी दीवाने थे,जिन्हें देश-दुनिया बहुत नहीं जानती वह गुमनाम रहे और आजादी के जुनून के लिए सारा जीवन खपा दिया झारखंड की माटी ऐसे आजादी के सिपाहियों की गवाह रही है

Azadi Ka Amrit Mahotsav: साहिबगंज के छेदीराम मंडल उर्फ छेदी वालंटियर आजादी के इतने दीवाने थे कि बिना किसी की परवाह किये हर सुबह अपने तिरंगा को लेकर निकल पड़ते थे. छेदी राम मंडल का जन्म सन 1906 ई में तत्कालीन बिहार के भागलपुर जिला के पीरपैंती प्रखंड के बाबूपुर गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम बुलाय मंडल था. छेदी राम ने देश की आजादी का जो सपना देखा था, उसको उसने अपने साथ जीया.

सुभाषचंद्र बोस से हुए थे प्रभावित

सुभाष चंद्र बोस के आंदोलन व तुम मुझे खून दो… से इतने प्रभावित हुए कि सुभाषचंद्र बोस को ही अपना गुरु मान लिये. छेदीराम का आंदोलन का क्षेत्र राजमहल की पहाड़ी, तेलियागढ़ी गंगा घाटी का क्षेत्र था. रेलगाड़ी का खजाना लूट कर क्रांतिकारी साथियों को मदद करने लगे. सन् 1942 में साहिबगंज के अनुमंडल कार्यालय में यूनियन जैक को उतारकर पहली बार तिरंगा को साहिबगंज में फहराया था. अंग्रेजों के सिपाही चप्पे-चप्पे पर तैनात घेराबन्दी में छेदीराम ने ललकारा जिसमें अंग्रेजों ने छेदीराम पर बंदूक तान दी और बोलते ही बोलते गोली चला दी.

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