Azadi Ka Amrit Mahotsav: शहीद की बलिवेदी पर चढ़ा दिये गये थे गवई गोदरा
हम आजादी का अमृत उत्सव मना रहे हैं. भारत की आजादी के लिए अपने प्राण और जीवन की आहूति देनेवाले वीर योद्धाओं को याद कर रहे हैं. आजादी के ऐसे भी दीवाने थे, जिन्हें देश-दुनिया बहुत नहीं जानती वह गुमनाम रहे और आजादी के जुनून के लिए सारा जीवन खपा दिया.झारखंड की माटी ऐसे आजादी के सिपाहियों की गवाह रही है.
आजादी का अमृत महोत्सव: सुंदरपहाड़ी की पहाड़ियों के ऊपर घने जंगल के बीच एक गांव है टटकपाड़ा. इस गांव में महान स्वतंत्रता सेनानी गवई गोदरा पहाड़िया की सीमेंट वाली प्रतिमा बनी है. पास ही छोटी-सी झोंपड़ी है, जिसे गोदरा पहाड़िया के धरोहर के रूप में बताया जाता है. आजादी की बलिवेदी पर मिटने वाले गवई गोदरा पहाड़िया के इस गांव में हर वर्ष उनके शहादत को याद कर मेला लगता है. पहाड़िया समुदाय के लोग उनके तलवार की पूजा करने के बाद जमीन में तलवार को गाड़ कर चारों चक्कर लगाते हैं और घूम-घूम कर उनके वीरता की बखान पहाड़िया भाषा पर आधारित गीत गाकर करते हैं. गवई गोदरा पहाड़िया ऐसे वीर सूरमा थे, जिनका नाम संताल परगना गजीटियर में तो है, मगर अब तक उन्हें अन्य आंदोलनकारियों की तरह इतिहास के पन्नों में स्थान नहीं मिल पाया है.
गोड्डा के शहीद स्तंभ परिसर में बने शहीद स्मारक में पत्थरों में गवई गोदरा पहाड़िया का नाम उकेरा गया है. गोदरा पहाड़िया के साथ समकालीन क्रांतिकारियों में चेंगेंय सांवरिया पहाड़िया, सिंहाय देहरी, सूर्य सिंह पहाड़िया, पांचके डोंग, कार्तिक माल पहाड़िया, धरमा कुमार पहाड़िया, डोमनमाल पहाड़िया आदि हुतात्माओं के नाम है. गवई गोदरा अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में एक समूह बनाकर पहाड़िया विद्रोह का बिगुल फूंका था. उस वक्त अंग्रेजों का आतंक चरम पर था. विद्रोह को दबाने के लिए लोगों को लगातार परेशान किया करते थे. इसी बीच गवई गोदरा ने अंग्रेज मजिस्ट्रेट कैप्टन ब्रूक का सर कलम कर दिया.
पाकुड़ के सिंहारसी के लिए निकले थे ब्रूक
मामला वर्ष 1774 के करीब की बतायी जाती है. उस वक्त भागलपुर में रहने वाले इस क्षेत्र के अंग्रेज मजिस्ट्रेट कैप्टन ब्रूक के कार्य क्षेत्र में संथाल परगना का सुंदरपहाड़ी व अन्य क्षेत्र आता था. भागलपुर से सुंदरपहाड़ी गढसिंगला के रास्ते कैप्टन ब्रूक पाकुड़ के सिंहारसी के लिए निकले थे. पहाड़िया समुदाय के जानकारों के अनुसार, रास्ता तय करने के दौरान अंग्रेज कैप्टन अपने घोडे से जा रहे थे. इसी समय अंग्रेज पहाड़िया विद्रोह के क्रांतिकारियों पर लगातार दमन कर रहे थे. गवई गोदरा पहाड़िया इस दमन के खिलाफ़त में थे. इस बात की सूचना मिलने पर कि अंग्रेज अफसर सिंहारसी के लिये निकला है, योजना बनाकर रास्ते में दो दिनों तक अंग्रेज अफसर के लौटने का इंतजार कर रहे थे.
सिंहारसी से वापस लौटने के क्रम में योजना से बेखबर कैप्टन ब्रूक जैसे ही गढसिंगला पहाड़ के टटकपाड़ा गांव के पास पहुंचे, घात लगाये बैठे गवई गोदरा पहाड़िया ने अपनी तलवार से वार कर कैप्टन ब्रूक का सिर धड़ से अलग कर दिया. आक्रोश इतनी तेज थी कि गर्दन काट लेने के बाद गवई गोदरा ने उसके बैज तथा बेल्ट का हुक नोंच कर रख लिया. कैप्टन ब्रूक की लाश पास की पहाड़ी के उपर इमली के पेड़ के नीचे दफन कर बड़े-बड़े पत्थरों से ढंक दिया. बताया जाता है कि अंग्रेज अफसर की हत्या के बाद उसका घोड़ा छोड़ दिया. घोड़ा भागकर वापस भागलपुर पहुंच गया. बगैर कैप्टन घोड़े को देख अंग्रेज पदाधिकारियों को शंका हुई. सिपाहियों के साथ कैप्टन की खोज में निकल पड़े.
इसके बाद चली दमन प्रक्रिया
अंग्रेज अफसर की हत्या की जानकारी के बाद बड़ी संख्या में गोरों की सेना व पदाधिकारी सुंदरपहाड़ी व गढसिंगला के आसपास के क्षेत्र में पहाड़िया लोगों पर जुल्म ढाना आरंभ कर दिया. लगातार गवई गोदरा पहाड़िया की खोज होने लगी. टटकपाड़ा को छोड़कर पहाड़िया समुदाय के लोग पांच किमी पहाड़ के नीचे शरण ले लिया. पहाड़ व जंगलों में छिपे गोदरा पहाड़िया को अंग्रेज सेनिकों ने खोजकर निकाला तथा जमकर यातनाएं दी.
सुसनी के बोकड़ाबांध डाकबंगला में दी गयी फांसी
गवई गोदरा को अंग्रेजो ने फांसी की सजा सुनायी. सुसनी के पास बोकड़ाबांध डाकबंगले के पास गोदरा को फांसी पर लटका दिया गया. गोदरा के बारे में बताते हुए अखिल भारतीय आदिम जनजाति के केंद्रीय उपाध्यक्ष बैजनाथ पहाड़िया कहते हैं कि फांसी के बाद आंदोलन ओर भी विस्तृत रूप ले लिया. हर जगह पहाड़िया समुदाय विद्रोह शुरू कर दिया.