Azadi Ka Amrit Mahotsav: जगदीश मंडल पहाड़ों में छिपकर स्वतंत्रता आंदोलन को दे रहे थे अंजाम

हम आजादी का अमृत उत्सव मना रहे हैं. भारत की आजादी के लिए अपने प्राण और जीवन की आहूति देनेवाले वीर योद्धाओं को याद कर रहे हैं. आजादी के ऐसे भी दीवाने थे, जिन्हें देश-दुनिया बहुत नहीं जानती वह गुमनाम रहे और आजादी के जुनून के लिए सारा जीवन खपा दिया. झारखंड की माटी ऐसे आजादी के सिपाहियों की गवाह रही है.

By Prabhat Khabar News Desk | August 10, 2022 3:00 PM

Azadi Ka Amrit Mahotsav: मातृभूमि को आजाद कराने में क्रांतिकारियों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था. ऐसे ही थे क्रांतिकारी जगदीश नारायण मंडल. स्वतंत्रता संग्राम के सबल सिपाही के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन किया था. 16 वर्ष की उम्र में ही महात्मा गांधी के आह्वान पर देश सेवा में लग गये. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भागलपुर में शराब की दुकान के आगे धरना देने के दौरान गिरफ्तार कर लिये गये. उन्हें छह माह की कठोर सजा मिली थी. जेल से छूटने के बाद जगदीश बाबू संताल परगना कांगेस कमेटी के निर्देश पर अपने कुछ क्रांतिकारी साथियों के साथ कर्माटांड़ में कांग्रेस कार्यालय की स्थापना करने के बाद विदेशी सामानों का बहिष्कार करने, ग्रामोद्योग एवं हरिजन संगठन को मजबूत करने में लग गये. इस दौरान कर्माटांड़ में हैजा फैलने पर जगदीश बाबू ने अपनी जान की परवाह किये बगैर सेवा में लगे रहे.

छह माह के लिए जेल गए थे जगदीश मंडल

जगदीश बाबू का जन्म गोड्डा जिला के पोड़ैयाहाट प्रखंड के बक्सरा गांव में 14 दिसंबर 1917 को हुआ था. बक्सरा में उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई थी. इनका निधन 84 वर्ष की उम्र में 10 फरवरी 2002 को निधन हुआ. जगदीश नारायण मंडल 1931 में गोड्डा कोर्ट में झंडा फहराने के कारण छह माह के लिए जेल भेज दिये गये. इतना ही नहीं उन्हें उस वक्त 75 रुपये का जुर्माना भी भरना पड़ा था. अंग्रेज पुलिस अधिकारियों ने इनके समस्त परिवार को घर से बाहर निकाल दिये. इस कारण परिवार के सदस्यों को परेशानी का सामना करना पड़ा था. जेल से छूटने के बाद नथमल सिंह नयाजी के निर्देश पर देवघर में हरिजन सेवक संघ के तत्वावधान में हरिजन उद्वार कार्यक्रम की सफलता में लग गये.

भूकंप पीड़ितों की सेवा में जगदीश नारायण

1934 में मुंगेर में आये भयंकर भूकंप के दौरान भूकंप पीड़ितों की सेवा में जगदीश नारायण मंडल को भेजा गया. दौरान गांधीजी ने इन्हें अपने अंगरक्षकों में स्थान दिया. हरिजन आंदोलन के समय गांधीजी देवघर आये थे. इस दौरान जसीडीह रेलवे स्टेशन पर विरोध-प्रदर्शन के बाद गांधी जी को बचाने में जगदीश बाबू को चोट लगी थी. 1936 से 1946 तक गोड्डा सब डिवीजनल कांग्रेस कमेटी के मंत्री रहे. 1938 में जिला बोर्ड के अध्यक्ष चुने गये. 1939 में सत्याग्रह पर उतरे जगदीश बाबू को छह माह की सजा के साथ साथ 250 रुपये का जुर्माना लगाया गया. गांधी जी के निर्देश पर 1945 में गोड्डा कोर्ट में जगदीश नारायण मंडल ने आत्मसर्मपण कर दिया. इन्हें एक साल की सजा मिली. 1946 में जिला कांग्रेस के कमेटी के पद पर बने रहे. दो वर्ष बाद जिला कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये व लगातार 10 वर्ष तक इस पद पर बने रहे.

देश के प्रति समर्पण के साथ कांग्रेस की सेवा में लगे

कांग्रेस के वरिष्ठ कार्यकर्ता सच्चिदानंद साह बताते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में देश के प्रति समर्पण के साथ कांग्रेस की सेवा में लगे रहे. 1952 के आम चुनाव में बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गये . 1971 से 1977 तक कांग्रेस के सांसद भी रहे. सांसद , विधायक के साथ-साथ पंचायत के मुखिया व कई अन्य पदों पर लगातार अपनी सेवा देने वाले जगदीश बाबू अपने टूटे घर तक को ठीक नहीं करा पाये थे. उनके त्याग व तपस्या को आज भी लोग याद करते हैं.

अंग्रेजों ने की थी पकड़ने पर 10 हजार रुपये इनाम की घोषणा

जगदीश बाबू का क्रांतिकारी कदम रुका नहीं, उन्होंने 1942 के जनआंदोलन के समय अंग्रेजों के खिलाफ संताल पहाड़िया के बीच बगावत की भावना फैलाने का काम किया. तीन वर्षों तक जंगल व पहाड़ों के कंदराओं में रहकर फरार की जिंदगी जगदीश बाबू जीते रहे. अंग्रेजों ने इन्हें पकड़वाने के लिए दस हजार रुपये के इनाम की घोषणा की थी. इस बार भी उनके परिवारवालों पर अत्याचार किया. पुलिस वालों ने इनके घर से सारा सामान निकाल फेंका था. पूरे घर को कुर्क कर लिया गया था. पूरा परिवार दाने-दाने को मोहताज थे. बावजूद इन्होंने इंकलाब का नारा बुलंद किया.

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