Azadi Ka Amrit Mahotsav: संयुक्त बिहार की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं सरस्वती देवी
हम आजादी का अमृत उत्सव मना रहे हैं. भारत की आजादी के लिए अपने प्राण और जीवन की आहूति देनेवाले वीर योद्धाओं को याद कर रहे हैं. आजादी के ऐसे भी दीवाने थे, जिन्हें देश-दुनिया बहुत नहीं जानती वह गुमनाम रहे और आजादी के जुनून के लिए सारा जीवन खपा दिया झारखंड की माटी ऐसे आजादी के सिपाहियों की गवाह रही.
Azadi Ka Amrit Mahotsav: सरस्वती देवी हजारीबाग की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी हैं. स्वतंत्रता संग्राम में हजारीबाग से गिरफ्तार होनेवाली पहली महिला होने का गौरव भी प्राप्त है. उनका जन्म पांच फरवरी 1901 में हजारीबाग के बाडम बाजार में हुआ था. उनके पिता राय विष्ष्णुदयाल लाल सिन्हा थे. माता का निधन बाल्य काल में ही होने पर उनका लालन-पालन उनकी मामी ने किया. 1911 में मामी के गुजर जाने के बाद वह चाची के संरक्षण में रहने लगीं. इस बीच उन्हें लोकप्रिय पुस्तक सुख सागर का अच्छी तरह अध्ययन करने का मौका मिला. उनका विवाह 1913 में हजारीबाग निवासी भैया बैजनाथ सहाय के पुत्र भैया केदारनाथ सहाय के साथ हुआ.
पर्दा प्रथा का किया था सबसे पहले विरोध
सरस्वती देवी ने पर्दा प्रथा का विरोध किया था. विरोध के कारण उनके साथ धक्का-मुक्की भी की गयी. इसके बाद भागलपुर और बिहार के कई जिलों में भी इसका विरोध होने लगा. अंत में उन्होंने इस आंदोलन से 1921 में नाता तोड़ दिया. फिर सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश किया. उन्होंने पर्दा प्रथा का विरोध करने के बाद नारी उत्पीड़न के विरुद्ध अभियान चलाया. उन्होंने हजारीबाग के सतघरवा स्थित कुम्हारटोली में आश्रम का निर्माण करा कर पीड़ित परिवारों के रहने की व्यवस्था भी की थी. सरस्वती देवी हरिजन आंदोलन में भाग लेनेवाली पहली महिला थीं.
असहयोग आंदोलन के दौरान लाठी चार्ज में हुईंं घायल
गांधी जी के आह्वान पर 1921 में असहयोग आंदोलन के क्रम में सरस्वती देवी ने हजारीबाग के मटवारी मैदान में जोशीला भाषण देकर लोगों को उत्साहित किया. इसी क्रम में ब्रिटिश प्रशासन द्वारा लाठी चार्ज किया गया, जिसमें उनके माथे पर गंभीर चोट लगी थीं. इसके बाद भी उन्होंने हजारीबाग और भागलपुर में आंदोलन को जोरों से आगे बढ़ाया. 1923 में उन्होंने बैजनाथ धाम में धरना दिया. यद्यपि धरना देने का लक्ष्य भक्ति ही थी कि 23 दिन के बाद 1924 में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. जिनका नाम भैया राम शरण सहाय है. महात्मा गांधी 1925 में हजारीबाग आये थे, जिसमें सरस्वती देवी की भूमिका अहम थी.
1930 में पहली बार हुईंं गिरफ्तार
सरस्वती देवी 1930 में नमक कानून के विरुद्ध अपने सहयोगी कृष्ण बल्लभ सहाय, बाबू राम नारायण सिंह, बजरंग सहाय तथा स्थानीय लोगों के साथ कुम्हारटोली स्थित नदी किनारे डांडी मार्च करते हुए पहुंचीं.