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Azadi Ka Amrit Mahotsav: तेलंगा ने गांव-गांव घूम कर अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को किया था एकजुट

छोटानागपुर के अनेक वीर महापुरूषों ने अंग्रेजों के शोषण के विरूद्ध भारत वर्ष के स्वतंत्रता के लिए अपने जान की कुर्बानी दी और शहीद हो गए थे. उन वीर महापुरूषों में तेलंगा खड़िया भी एक थे. जिन्होंने अंग्रेजों के शोषण अत्याचार के खिलाफ अपनी जान की कुर्बानी दी.

By Prabhat Khabar News Desk | August 4, 2022 3:00 PM

आजादी का अमृत महोत्सव: देश की आजादी के लिए जान देने वाले कई वीर शहीद गुमनाम रह गये. इन्हीं में गुमला जिले के सिसई प्रखंड स्थित मुरगू गांव के वीर शहीद तेलंगा खड़िया भी एक थे. मुरगू गांव में ठुईयां खड़िया व पेतो खड़िया के घर में जन्मे तेलंगा बचपन से ही साहसी थे. तेलंगा अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ कर अपनी एक अलग पहचान बनायेंगे, ऐसा किसी ने शायद ही सोचा हो. 9 फरवरी, 1806 को जन्मे तेलंगा बचपन से साहसी होने के साथ कुछ भी बोलने से पीछे नहीं रहते थे. वे बचपन से ही अंग्रेजों व जमींदारों के जुल्मों की कहानी अपने माता-पिता से सुन चुके थे, इसलिए अंग्रेजों को वे फूटी आंख भी देखना पसंद नहीं करते.

लोगों को एकजुट करने के लिए घूमे गांव-गांव

अंग्रेजों के शोषण व अत्याचार को देखकर तेलंगा खड़िया सहन नहीं कर सके और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई करने के लिए योजनाएं बनाने लगे. तेलंगा ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की बिगुल फूंक दी. वे गांव-गांव में घूमकर लोगों को एकजुट करने लगे. छोटानागपुर के पूर्वी एवं दक्षिणी इलाके के प्रत्येक गांव में जाकर उन्होंने सभी वर्गों के लोगों के बीच समन्वय स्थापित किया. उस समय अंग्रेजी बंदूकों के सामने इनका मुख्य हथियार तलवार व तीर-धनुष ही था. बावजूद इसके अंग्रेजों के हौसले पस्त करने में इन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ा.

वर्ष 1846 में रतनी खड़िया से हुई शादी

यही वजह थी कि युवा काल से ही तेलंगा खड़िया अंग्रेजों के खिलाफ हो गये थे और लुक छिप कर अंग्रेजों को नुकसान पहुंचाते रहते थे. जब उनकी आयु 40 वर्ष की थी, तब तेलंगा की शादी रतनी खड़िया से हुई. तेलंगा का मुख्य पेशा खेती करना और अपने साथियों को सुबह-शाम गदका, तलवार एवं तीर चलाने की कला सिखाना था. प्रत्येक कला सीखने एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ करने के पहले वे प्रकृति व अपने-अपने पूर्वजों का स्मरण व पूजा करते थे. सिसई के मैदान में उन दिनों गदका, लाठी, तलवार एवं तीर चलाने के लिए चारों ओर से ग्रामीण युवक इस मैदान में इकठ्ठा होते थे.

दो साल तक कलकत्ता के जेल में बंद रहे तेलंगा

अंग्रेज शासकों द्वारा इस क्षेत्र के लोगों से मनमानी लगान वसूल करना अत्याचार का सबसे आम तरीका था. ब्रिटिश हुकूमत के शोषण से इस क्षेत्र की जनता उब चुकी थी, परंतु उन दिनों छोटानागपुर के लोग ही नहीं, बल्कि देशभर के लोगों में फूट थी, ऐसे में एकता नहीं होने का लाभ अंग्रेज उठाते थे. ग्रामीणों को गोलबंद किये जाने की भनक जब अंग्रेजी हुकूमत को लगी, तो तेलंगा को पकड़ने के लिए फरमान जारी कर दिया गया. एक दिन जब तेलंगा बसिया थाना क्षेत्र के कुम्हारी गांव स्थित जुरी पंचायत का गठन कर रहे थे, तब स्थानीय जमींदारों व दलालों ने उनके साथ दगा कर अंग्रेजों का सहयोग किया. यही वजह रही कि अंग्रेजी पुलिस तेलंगा को गिरफ्तार करने में सफल हो गयी. इसके बाद उन्हें कलकत्ता जेल में डाल दिया गया. दो वर्ष तक तेलंगा जेल में रहे. जेल से छूटने के बाद तेलंगा वापस मुरगू गांव लौटे. मुरगू आने के बाद वे फिर से जमींदारी प्रथा के खिलाफ लोगों को एकत्रित करने लगे. इसी दौरान 23 अप्रैल, 1880 को अंग्रेजों के एक मुखबिर ने ही तेलंगा को गोली मार दी, जिससे उनकी मौत हो गयी.

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