आजादी का अमृत महोत्सव: त्रैलोक्यनाथ को 25 साल की उम्र में दे दी गई थी काला पानी की सजा

महान स्वतंत्रता सैनानी त्रैलोक्यनाथ को 25 साल की उम्र में काला पानी की सजा दे दी गई थी. सजा काटने के लिए उन्हें अंडमान निकोबार के सेल्यूलर जेल में भेज दिया गया था. त्रैलोक्य इसे सजा नहीं, तपस्या मानते थे. उन्हें विश्वास था कि उनकी इस तपस्या स्वरूप देश को आजादी जरूर मिलेगी.

By Prabhat Khabar News Desk | August 2, 2022 9:00 PM

आजादी का अमृत महोत्सव: महान स्वतंत्रता सैनानी और राजनीतिज्ञ त्रैलोक्यनाथ का जन्म वर्ष 1889 में बंगाल के मेमनसिंह जिले के कपासतिया गांव में हुआ था. बचपन से ही त्रैलोक्य चक्रवर्ती के परिवार का वातावरण राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत था. पिता दुर्गाचरण और भाई व्यामिनी मोहन का इनके जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ा. पिता दुर्गाचरण स्वेदेशी आंदोलन के कड़े समर्थक थे. जबकि भाई व्यामिनी मोहन का क्रांतिकारियों से संपर्क था. इसका प्रभाव त्रैलोक्य चक्रवर्ती पर भी पड़ा. देश प्रेम की भावना उनके मन में कूट-कूट कर भरी थी. इंटर की परीक्षा देने से पहले ही अंग्रेज सरकार ने उन्हें बंदी बना लिया. जेल से छूटते ही वे क्रांतिकारी संगठन ‘अनुशीलन समिति’ में शामिल हो गए और क्रांतिकारी गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे. वर्ष 1909 में उन्हें ‘ढाका षडयंत्र केस’ का अभियुक्त बनाया गया, लेकिन वे पुलिस के हाथ नहीं आये. वर्ष 1912 में अंग्रेजी पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, लेकिन अदालत में उन पर आरोप सिद्ध नहीं हो सका. इसके बाद भी उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई जारी रखी. इसी बीच वर्ष 1914 में उन्हें ‘बारीसाल षडयंत्र केस’ में काला पानी सजा हुई और सजा काटने के लिए उन्हें अंडमान भेज दिया गया. वे इसे सजा नहीं, तपस्या मानते थे. उन्हें विश्वास था कि उनकी इस तपस्या स्वरूप देश को आजादी जरूर मिलेगी.

सेल्यूलर जेल में वीडी सावरकर के साथ मिलकर किया था हिंदी का प्रचार

जब वे अंडमान निकोबार के सेल्यूलर जेल में पहुंचे, तो वहां वीडी सावरकर और गुरूमुख सिंह जैसे क्रांतिकारी भी उनके साथ बंदी थे. इन लोगों ने वहां संगठन शक्ति के बल पर कई रचनात्मक कार्य किये. जेल में वे महाराज के नाम से प्रसिद्ध थे. वीडी सावरकर के सहयोगी के रूप में उन्होंने जेल में ही हिंदी भाषा पढ़ने और उसके प्रचार का कार्य अपनाया. त्रैलोक्यनाथ बांग्ला भाषी थे और वे हिंदी नहीं जानते थे. सावरकर से हिंदी सीखने वाले वे पहले व्यक्ति थे. गुमला भारत में भी वह स्वतंत्र की बातें सोचा करते थे.

आजादी के बाद भी चार साल तक ढाका की जेल में बंदी रहे

त्रैलोक्यनाथ को विश्वास था कि जब देश स्वतंत्र हो जायेगा, तो इस विशाल देश को एक सूत्र में बांधने के लिए एक भाषा का होना बहुत जरूरी है. यह भाषा हिंदी ही हो सकती है. इसलिए इस भाषा के प्रचार का कार्य उन्होंने सावरकर के साथ वहीं सेल्यूलर जेल में ही शुरू कर दिया था. उनके प्रयास से 200 से भी अधिक कैदियों ने हिंदी सीखी. इसी बीच वर्ष 1934 में वे जेल से फरार हो गये. जब देश आजाद हुआ, तो उनकी जन्म भूमि पूर्वीं पाकिस्तान के क्षेत्र में आयी. वहां दंगे भड़क चुके थे. अल्पसंख्यकों का पलायन हो रहा था. उन्होंने इस कठिन और चुनौतीपूर्ण माहौल में भी सामाजिक सद्भाव के लिए काम किया. जब महात्मा गोधी नोआखाली में गये थे, तो उनके साथ वे भी शामिल थे. पूर्वी पाकिस्तान सरकार ने उन्हें वर्षों तक नजरबंद रखा. वे चार साल तक ठाका जेल में बंद रहे. भारत सरकार के हस्तक्षेप के बाद पाकिस्तान सरकार ने खराब स्वास्थ्य के आधार पर उन्हें बाद में रिहा किया. वर्ष 1970 में बीबीगिरी जब राष्ट्रपति थे, तो उन्होंने उनको इलाज कराने के लिए दिल्ली बुलाया पर त्रैलोक्यनाथ ने यह कहते हुए अनुरोध ठुकरा दिया कि ऐसी आजादी के लिए हमने सपना नहीं देखा था. अंत में काफी आग्रह पर वे भारत आये और 1 अगस्त, 1970 को इनका निधन हो गया.

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