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आजादी का अमृत महोत्सव : इंडिया हाउस को वीरेंद्रनाथ ने बनाया था अपने आजादी आंदोलन का केंद्र

बहुभाषी चट्टोपाध्याय ने भारतीय भाषाओं के अलावा फ्रांसीसी, इतालवी, जर्मन, डच, रूसी और स्कैंडिनेवियाई भाषाओं को भी सीखा उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से मैट्रिक किया और कलकत्ता विश्वविद्यालय से कला में स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी.

आजादी का अमृत महोत्सव : वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय का जन्म 31 अक्तूबर , 1880 को ढाका के एक जाने – माने परिवार में हुआ था. उनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय निजाम कॉलेज , हैदराबाद में प्रोफेसर थे. वे शिक्षा के बड़े प्रेमी थे. उन्होंने अपने बेटे के साथ बेटियों को भी ऊंची शिक्षा दिलायी. वीरेंद्रनाथ ने हैदराबाद से ही बीए की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उनके पिता ने उच्च शिक्षा के लिए उन्हें इंग्लैंड भेज दिया. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में उन्होंने दाखिला ले लिया, लेकिन वे अधिक दिनों तक वहां नहीं रहे.

वीरेंद्रनाथ की राजनीतिक गतिविधियों को देखकर उन्हें लॉ कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया

वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्या आइसीएस अफसर बनना चाहते थे. इसलिए आइसीएस परीक्षा के लिए तैयारी करने लगे, मगर उन्हें सफलता नहीं मिली. इसके बाद उन्होंने बैरिस्टरी की परीक्षा के लिए तैयारी करने लगे. जिन दिनों वीरेंद्रनाथ बैरिस्टरी की परीक्षा की तैयारी में जुटे थे, उन्हीं दिनों वे’ इंडिया हाउस के संचालक श्यामजी कृष्ण वर्मा के संपर्क में आये. इंडिया हाउस में प्रायः क्रांतिकारियों का जमघट लगा रहता था. वे वहां बांग्ला,अंग्रेजी,हिंदी,उर्दू,अरबी और फारसी आदि भाषाओं में स्वतंत्रता संबंधी साहित्य तैयार किया करते थे. इंडिया हाउस में ही उनकी मुलाकात विनायक दामोदर सावरकर से हुई. वीरेंद्रनाथ की राजनीतिक गतिविधियों को देखकर उन्हें लॉ कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया. इसके बाद वे पूरी तरह से भारत को स्वतंत्र कराने के पक्ष में जुट गये

अंग्रेजी शासन से नाराज देशों के नेताओं से की मुलाकात

इसी दौरान चट्टोपाध्याय के मन में ख्याल आया कि जिन देशों में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह हो रहा है, उन देशों के नेताओं से मिलना चाहिए. उन दिनों मिस्र में विद्रोह की आग जल रही थी. वे मिस्र जाना चाहते थे. वर्ष 1906 में मिस्र की क्रांति के नेता कमाल पाशा लंदन आये. चट्टोपाध्याय ने कमाल पाशा से भेंट कर भारत की स्वतंत्रता के बारे में बात की. इसी बीच वर्ष 1907 में जर्मनी में समाजवादी सम्मेलन हुआ. वीरेंद्रनाथ ने उस सम्मेलन में हिस्सा लिया. वहां पर उनकी भेट मैडम भीकाजी कामा और पोलैंड के क्रांतिकारी नेताओं से हुई, वे पोलैंड में क्रांतिकारी नेताओं से मिले वहां से वारसा भी गये.

देश की आजादी के लिए बर्लिन में ‘इंडियन नेशनल पार्टी’ की नींव रखी

वर्ष 1906 में क्रांतिकारी मदनलाल धींगरा ने अंग्रेज अधिकारी कर्जन वायली की हत्या कर दी. इस हत्या के बाद उठे हंगामे के बीच सावरकर और चट्टोपाध्याय दोनों लंदन से पेरिस चले गये. सावरकर कुछ दिन बाद लंदन लौटे तो विक्टोरिया स्टेशन पर बंदी बनाकर भारत भेज दिये गये, जबकि चट्टोपाध्याय पेरिस में ही रह गये. वे पेरिस में रहते हुए इंडिया हाउस के कार्यों की देख – रेख करते रहते थे. कुछ दिनों बाद चट्टोपाध्याय फिर से लंदन में जाकर रहने लगे. वे इंडिया हाउस में रहकर क्रांति के कार्यों का प्रचार करते और भारतीय क्रांतिकारियों के पास हथियार आदि भेजने की भी व्यवस्था करते. चट्टोपाध्याय कोजब इस बात का पता चला कि जर्मनी और फ्रांस में युद्ध होने वाला है और उस युद्ध में अंग्रेज फ्रांस का साथ देंगे, तो वे जर्मनी चले गये. उन्होंने भारत की आजादी के लिए’ इंडियन नेशनल पार्टी की स्थापना की. वहीं वर्ष 1917 में रूस में जनक्रांति हुई. चट्टोपाध्याय उस क्रांति से अधिक प्रभावित हुए. उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए रूसी नेताओं से संपर्क किया. वर्ष 1920 में वे रूस गये. वर्ष 1927 में बीमारी के चलते उनका स्वास्थ्य दिनों दिन खराब होने लगा. आखिरकार 2 सितंबर,1937 को उनका निधन हो गया.

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