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महाप्रभु जगन्नाथ की बाहुड़ा यात्रा संपन्न, श्रीमंदिर पहुंचने पर लगा छप्पन भोग, श्रद्धालुओं ने किए दर्शन

महाप्रभु जगन्नाथ की बाहुड़ा यात्रा हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ. गुंड़िचा मंदिर से महाप्रभु के निकले यात्रा के दौरान चतुर्था मूर्ति को छप्पन भोग लगाया गया. इस दौरान महाप्रभु के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी.

Jharkhand News: सरायकेला-खरसावां जिला अंतर्गत खरसावां के हरिभंजा स्थित प्रभु जगन्नाथ के प्रसिद्ध मंदिर में शनिवार को प्रभु जगन्नाथ की बाहुड़ा यात्रा श्रद्धा के साथ संपन्न हो गयी. शनिवार को देर शाम गुंड़िचा मंदिर से प्रभु जगन्नाथ की बाहुड़ा यात्रा निकाली गयी. इस दौरान प्रभु जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा एवं सुदर्शन को विशेष व्यंजन बना कर भोग लगाया गया. इसके बाद सेवायत एवं श्रद्धालुओं ने चतुर्था मूर्ति को रथ में बैठाकर गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर तक पहुंचाए. इस दौरान काफी संख्या में लोगों ने महाप्रभु के दर्शन किए.

महाप्रभु को लगाया गया छप्पन भोग

श्रीमंदिर पहुंचने पर चतुर्था मूर्ति को रत्न सिंहासन में बैठाकर पूजा अर्चना की गयी. श्री मंदिर के मुख्य द्वार में पहुंचने पर पूजा अर्चना कर आरती उतारी गयी. इस दौरान छप्पन भोग एवं अधरपोणा नीति को निभाया गया. छप्पन भोग में छप्पन तरह के मिष्टान्न व्यंजन का भोग लगाया गया. इसके बाद अधरपोणा का भी भोग लगाया गया. इसके बाद श्रद्धालुओं में भोग का भी वितरण किया गया.

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प्रभु जगन्नाथ ने मां लक्ष्मी को उपहार में दिये सरगुल्ले

बाहुड़ा यात्रा के दौरान हरिभंजा के मंदिर में प्रभु जगन्नाथ ने मां लक्ष्मी को उपहार में रसगुल्ले भेंट किये. मान्यता है कि आठ दिनों तक भाई-बहन के साथ गुंडिचा मंदिर में प्रभु जगन्नाथ के रहने के कारण मां लक्ष्मी प्रभु जगन्नाथ से नाराज हो जाती है. जब प्रभु जगन्नाथ नौवें दिन गुंडिचा मंदिर पहुंचते हैं, तो मां लक्ष्मी अंदर से दरवाजा बंद कर देती है. इसमें भी भक्तों की दो टोली रहती है. एक प्रभु जगन्नाथ के साथ, तो दूसरा मां लक्ष्मी के साथ. इस दौरान पांच मिनट तक दोनों में नोकझोंक होती है. काफी मान-मनौबल के बाद मां लक्ष्मी दरवाजा खोलती है. तब प्रभु जगन्नाथ मां लक्ष्मी को उपहार स्वरूप रसगुल्ले भेंट करते हैं. इस रश्म को भी मंदिर में निभाया गया. उपहार में मिले रसगुल्ले को भक्तों में प्रसाद स्वरूप बांट दिया जाता है.

रिपोर्ट : शचिंद्र कुमार दाश, सरायकेला-खरसावां.

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