Baisakhi 2023: इस दिन मनाया जाएगा बैसाखी का त्योहार, जानें इसका महत्व और इतिहास
Baisakhi 2023: बैसाखी का त्यौहार वैशाख महीने के पहले दिन मनाया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, यह अप्रैल-मई के महीने में आता है. 2023 में बैसाखी पर्व 14 अप्रैल को पड़ रही है.कहते हैं इसी दिन 1699 में सिखों के 10वें गुरु यानी गुरु गोबिंद सिंह ने पवित्र खालसा पंथ की स्थापना की थी.
Baisakhi 2023: बैसाखी का उत्सव सिखों का एक प्रमुख त्योहार है. जो हर साल 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है. इस उत्सव का आयोजन सिख नव वर्ष की शुरुआत के उपलक्ष्य में किया जाता है. यह मुख्य रूप से पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा और भारत के उत्तरी क्षेत्र में मनाया जाता है. इस त्योहार को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस पर्व को वसंत ऋतु का आगमन भी माना जाता है. बैसाखी पर्व, सिख समुदाय में नववर्ष के शुरुआत के रूप में भी मनाया जाता है. कहते हैं इसी दिन 1699 में सिखों के 10वें गुरु यानी गुरु गोबिंद सिंह ने पवित्र खालसा पंथ की स्थापना की थी.
इस साल कब मनाया जाएगा बैसाखी का पर्व
बैसाखी का त्यौहार वैशाख महीने के पहले दिन मनाया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, यह अप्रैल-मई के महीने में आता है. 2023 में बैसाखी पर्व 14 अप्रैल को पड़ रही है.
बैसाखी का महत्व
यह पर्व इसलिए मनाया जाता है क्योंकि सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास ने बैसाखी मनाने के लिए इसी दिन को चुना. इसके अलावा, नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर का 1699 में मुगलों द्वारा सार्वजनिक रूप से सिर कलम कर दिया गया था. 1699 में बैसाखी की पूर्व संध्या पर, नौवें सिख गुरु के पुत्रों ने सिखों को ललकारा और उन्हें अपने शब्दों और कार्यों से प्रेरित किया. उत्सव को गुरु गोबिंद सिंह के राज्याभिषेक और सिख धर्म के खालसा पंथ की नींव के रूप में मनाया जाता है.
ऐसे पड़ा बैसाखी नाम
बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है. विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाख कहते हैं. इस दिन हिंदू संप्रदाय के लोग गंगा स्नान करके देवी गंगा की स्तुति करते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने पर अश्वेध यज्ञ करने के समान फल मिलता है.
बैसाखी का इतिहास
गुरु गोबिंद सिंह ने 1699 में खालसा पंत की स्थापना की थी. इस दिन को लेकर कई सारी किंवदंतियां है, ऐसा माना जाता है कि इस दिन गुरु के उपदेश पर कई लोगों ने खालसा पंथ की रक्षा करने के लिए खुद को उन्हें समर्पित कर दिया था. गुरु के उपदेश के बाद पांच लोगों ने अपने आप को संपूर्ण रूप से समर्पित कर दिया और बाद में यही लोग पंच प्यारे के नाम से जाने जाने लगे. भारत के उत्तर में इस दिन लोग अपनी फसल कटाई करते हैं और अपने गुरुओं की आराधना करते हैं.
इस दिन लोग पारंपरिक पोशाक पहनकर तैयार होते हैं और साथ ही इस दिन को अपने परिवार के साथ बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन श्रद्धालु आटे और घी से बने प्रसाद को ग्रहण करते हैं और वितरित करते हैं. इससे पहले कि हम बैसाखी के बारे में और अधिक जानकारी दें, हम अपने पाठकों को इस सिख त्योहार पर बैसाखी की बहुत-बहुत शुभकामनाएं देते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. prabhatkhabar.com इसकी पुष्टि नहीं करता है)