सुबह के आठ बज रहे हैं और 90 मिनट के सत्र के बाद एक-एक कर के सभी पहलवान ट्रेनिंग हॉल से बाहर निकल रहे हैं लेकिन बजरंग पूनिया अभी और पसीना बहाने की तैयारी कर रहे हैं. पसीने से तर-बतर बजरंग शरीर में लचीलापन और मांसपेशियों को मजबूत बनाने के लिए अगले 45 मिनट तक ‘प्लियोमेट्रिक’ कसरत का सहारा लेंगे. इस तरह की कसरत से एथलीट अपने शरीर की ताकत बढ़ाने के साथ लचीलापन लाने की कोशिश करता है.
उनकी नयी ऊर्जा और उत्साह का कारण पिछले दिनों हुई कुछ जांच के उत्साहजनक परिणाम हैं. ‘टेक्नोबॉडी असेसमेंट’, ‘फंक्शनल मूवमेंट स्क्रीनिंग बॉडी कंपोजिशन एनालिसिस’ और ‘वीओ2एमएएक्स’ जैसी जांच के परिणामों ने उन्हें अपनी ‘मानसिकता’ को मजबूत करने में मदद की है. तोक्यो ओलंपिक से पहले घुटने की चोट के कारण बजरंग ने अपने खेल में रक्षात्मक रवैया अपना लिया था. इस चोट के कारण उनकी मानसिकता प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी पर आक्रमण करने की जगह खुद का बचाव करने की हो गयी थी.
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राष्ट्रमंडल खेलों के ट्रायल में भी ऐसा ही देखने को मिला जहां वह अपने प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ियों को कड़े मुकाबले के बाद हरा सके. इसके कुछ दिनों के बाद अल्माटी में बोलत तुर्लिखानोव कप में उन्हें उज्बेकिस्तान के अब्बोस राखमोनोव के खिलाफ बेहतर स्थिति में होने के बाद भी मुकाबला गंवाना पड़ा. यह सब उनकी रक्षात्मक रणनीति के कारण था. ऐसा लगने लगा था कि बजरंग ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर लिया है. खुद बजरंग को भी अपनी काबिलियत पर शक होने लगा था.
बजरंग ने पीटीआई-भाषा को दिये साक्षात्कार में कहा कि मैंने अपने कोच से कहा कि मैं पुराने अंदाज में खेलूंगा और आक्रामक रवैया अपनाउंगा लेकिन अल्माटी में मेरे शरीर ने साथ नहीं दिया. मेरे प्रयास में कोई कमी थी, बल्कि मैं अधिक कोशिश कर रहा था लेकिन प्रदर्शन और नतीजे मेरे हक में नहीं आ रहे थे. उन्होंने कहा कि मुझे कई बार तो ऐसा लगा कि मैं अपने अतीत के शानदार प्रदर्शन को कभी नहीं दोहरा पाउंगा. मुझे लगा कि मेरे शरीर की क्षमता कम हो गयी है. ऐसा लग रहा था कि मेरे शरीर में कुछ कमी है और यह बात मुझे मानसिक रूप से लगातार परेशान कर रही थी.
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उन्होंने कहा कि अब मुझे लग रहा है कि मेरा सर्वश्रेष्ठ खेल आना बाकी है और आप इसे देखेंगे. कजाखस्तान से वापस आने के बाद मैंने फिजियो आनंद दुबे की सलाह पर ताकत, गति, शारीरिक संतुलन, सहनशक्ति और लचीलेपन के आकलन के लिए कुछ चिकित्सा जांच कराई और इसके नतीजे ‘शानदार’ रहे. बजरंग ने कहा कि जांच के नतीजे अच्छे रहने के बाद मैं अभ्यास में बेहतर कर पा रहा था. एक मानसिक रुकावट सी थी जो अब नहीं है.
इस 28 साल के पहलवान ने पिछले पांच साल में हर साल किसी न किसी प्रतियोगिता में पोडियम (शीर्ष तीन) स्थान हासिल किया लेकिन उनके लिए यह मायने नहीं रखता है. उन्होंने कहा कि मैं परेशान था, मुझे पता है कि मीडिया भी मुझे (रूस में) लेकर चिंतित था, लेकिन मुझे उस समय मीडिया की नहीं बल्कि रिहैबिलिटेशन की जरूरत थी. दाहिने घुटने में चोट के कारण बाएं घुटने पर अधिक भार पड़ रहा था. उस समय मेरे पास कोई फिजियो नहीं था और ओलंपिक के बाद अपने दम पर रिहैबिलिटेशन कर रहा था. मैंने 8-10 दिनों के लिए प्रशिक्षण लिया और मेरे दाहिने घुटने में फिर से चोट लग गयी. मेरे दिमाग में फिर से चोटिल होने की बात का बुरा असर पड़ा.
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