Bakrid 2022: ईद और बकरीद में क्या है फर्क, जानें ईद-उल-जुहा पर क्यों होती है कुर्बानी

Bakrid 2022 : इस्लामी कैलेंडर वर्ष में दो ईद मनाई जाती हैं. इनमें एक ईद-उल- जुहा और दूसरी ईद-उल-फितर. ईद-उल-फितर को मीठी ईद भी कहा जाता है. इसे रमजान खत्म होने के बाद मनाया जाता है.

By Prabhat Khabar News Desk | July 10, 2022 7:18 AM
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Bakrid 2022 : भारत में आज बकरीद मनायी जा रही है. इस्लामी कैलेंडर वर्ष में दो ईद मनाई जाती हैं. इनमें एक ईद-उल- जुहा और दूसरी ईद-उल-फितर. ईद-उल-फितर को मीठी ईद भी कहा जाता है. इसे रमजान खत्म होने के बाद मनाया जाता है. मीठी ईद के करीब दो महीने या 70 दिन बाद बकरा ईद मनाई जाती है. ईद-उल-फितर की तरह मुसलमान ईद-उल-जुहा में भी ईदगाह या मस्जिद में जमा होते हैं. जमात के साथ 02 रकात नमाज अदा करते हैं. यह नमाज सुबह के समय होती है.

ईद और बकरीद में क्या है फर्क

बकरीद जिलहिज्ज के महीने में मनाई जाती है. बकरीद पर मुस्लिम बड़ी संख्या में बकरे, भैंस की कुर्बानी देते हैं. मगर, इनको पहले घर में पालना जरूरी होता है. इनकी सेवा करने के बाद कुर्बानी करने वालों को मुहबब्त हो जाती है. इसके साथ ही अन्य जानवरों की भी कुर्बानी कर सकते हैं. कुर्बानी के बाद उसके गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. शरीयत के अनुसार गोश्त का एक हिस्सा गरीबों में बांटा जाता है. दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों के लिए और तीसरा हिस्सा अपने घर के लिए रखने का हुक्म है. यह त्योहार मुहब्बत (प्रेम), और कुर्बानी (बलिदान) की भावना को व्यक्त करता है. समाज में एकता और भाईचारे के लिए मिलकर काम करने का त्योहार है.

हजरत इब्राहिम अलैहिस्लाम अल्लाह के पैगंबर हैं.हजरत इब्राहिम अलैहिस्लाम ने जिंदगी भर (ताउम्र) दुनिया की भलाई की.उनका जीवन जनसेवा और समाजसेवा में ही बीता था, लेकिन करीब 90 वर्ष की उम्र तक उनके कोई संतान नहीं हुई,तब उन्होंने अल्लाह की इबादत की.इसके बाद चांद से बेटे हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम की पैदाइश (जन्म) हुआ.हजरत इब्राहिम अलैहिस्लाम को सपने में फरमान (आदेश) हुआ कि अल्लाह की राह में कुर्बानी दो.अपने पहले ऊंट की कुर्बानी दी.आपको फिर से सपना आया कि अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान कर दो.

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इस पर हजरत इब्राहिम अलैहिस्लाम ने अपने सभी जानवर कुर्बान कर दिए, लेकिन आपको फिर वही सपना आया. फिर सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने का आदेश हुआ.अपने सभी प्रिय जानवर कुर्बान करने के बाद अल्लाह पर भरोसा रखते हुए हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे हजरत इस्माइल को कुर्बान करने का निर्णय लिया.अपनी पत्नी से बेटे को नहलाकर तैयार करने के लिए कहा.आपकी पत्नी ने ऐसा ही किया और इसके बाद फिर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम अपने बेटे को लेकर कुर्बानी देने के लिए चल दिए.

अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की मुहब्बत (निष्ठा) को देखा, तो उनके बेटे की कुर्बानी को बकरे की कुर्बानी में बदल दिया. दरअसल, जब हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे की कुर्बानी दी, तो आपने अपनी आंखों पर काली पट्टी बांध ली. कुर्बानी देने के बाद जब उन्होंने आंखों से पट्टी खोली तो हजरत इस्माइल को खेलते हुए देखा और इस्माइल की जगह पर एक बकरे की कुर्बानी हो चुकी थी. इस्लामिक इतिहास की इस घटना के बाद से ही कुर्बानी की शुरुआत हुई थी.

रिपोर्ट : मुहम्मद साजिद

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