झारखंड : बांस खुखड़ी यहां के लोगों लिए है रोजगार का जरिया, जोखिम के बीच जंगलों से लाती हैं महिलाएं
झारखंड के कुछ जिलों में बरसात के दिनों में आदिवासी परिवार के लिए बांस खुखड़ी रोजगार का जरिया होता है. आर्थिक रूप सें कमजोर आदिवासी परिवार जान जोखिम में डाल जंगलों से बांस खुखड़ी लाती हैं. लोग भी इसे बहुत चाव से खाते हैं. बाजार में बांस खुखड़ी 150 से 200 रुपए किलो तक बिक रहा है.
लातेहार, वसीम अख्तर. लातेहार के अनुमंडल महुआडांड बाजार में बांस खुखड़ी (मशरूम जो बांस पौधे के जड़ में प्रकृतिक रूप से उगते हैं) 200 रुपए किलो बिक रहा है. लोग इसे बड़े चाव से खरीद रहें है, खुखड़ी मुश्किल से सप्ताह भर का रोजगार होता है. वहीं, पिछले साल बांस खुखड़ी 100 से 120 रुपये किलो तक बिका था. खुखड़ी बिक्री करने वाली आदिवासी महिलाएं आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से होती हैं.
इस साल कम बारिश कारण जंगल में खुखड़ी उत्पादन बहुत कम हो रहा है, बरसात में खुखड़ी इनके लिए रोजगार का एक जरिया है. सप्ताह भर में खुखड़ी बेचकर एक महिला तीन से पांच हजार रुपए कमा लेती है, बाजार में बांस खुखड़ी लाकर बारेसांड की महिलाएं बेचती हैं. बांस खुखड़ी बेचकर मिलने वालों रुपयों का इस्तेमाल वो खरीफ सीजन के धान की खेती के लिए करती हैं. खेती के लिए दवा खाद आदि का खर्च वे इन्हीं पैसों से उठाती हैं.
कहां से आता है बांस खुखड़ी
बता दें कि खुखड़ी अनेकों प्रजाति के होते हैं, जो बरसात में प्रकृतिक रूप से उगता है, कुछ खुखड़ी जहरीले भी होते हैं, जिन्हें खाया नहीं जाता और जो खुखड़ी खाये जाते हैं, वह काफी लजीज होते हैं. सबसे अच्छी प्रजाति के खुखड़ी, टेक्नोस खुखड़ी होते हैं. ज्यादातर खुखड़ी तो जमीन पर उगते हैं, लेकिन बांस खुखड़ी, बांस के बखान में पाया जाता है. बारेसांड- गारू अंतर्गत पीटीआर बांस जंगल के लिये ही जाना जाता है. जंगल में जानवरों के खतरे को नजरअंदाज कर आर्थिक रूप से कमजोर लोग बांस खुखड़ी उठाने के लिए अंधेरे में ही जंगल निकल जाते हैं. तमाम खतरों के बीच ग्रामीण जंगल के अंदर 10 किलोमीटर जाकर इस बांस खुखड़ी को उठाते हैं. बांस खुखड़ी उठाने के लिए स्थानीय लोग ही नहीं गुमला जिला के जरागी और छत्तीसगढ़ क्षेत्र से भी ग्रामीण पीटीआर के जंगल में आते हैं.
क्या कहती हैं विक्रेता महिलाएं
बांस खुखड़ी बेच रही, अनोखा कुजूर बारेसांड निवासी कहती हैं, हमलोग सुबह लगभग 4 बजे जब अंधेरा होता है, तब ही घर से निकल जाते हैं, खुखड़ी हर बांस बखान में मिलता है, ढूंढकर उठाना पड़ता है. उन्होंने बताया कि इस बार बारिश बहुत कम हुई, बड़ी मुश्किल से खुखड़ी मिल रही है. जंगल के काफी अंदर तक जाना पड़ रहा है, हम परिवार के पांच सदस्य जाते हैं, तब दिन के 10 से 11 बजे तक मुश्किल से पांच-छह किलो तक खुखड़ी उठा पाते हैं.
कांती देवी, बिबियां देवी कहती हैं कि, अगर शाम तक इसकी बिक्री नहीं हुई तो बांस खुखड़ी गलने लगता है, कीड़े हो जाते हैं. जहां पिछले साल महुआडांड़ बाजार में हम 15 से 20 महिलाएं बांस खुखड़ी बेचने आते थे, इस साल मुश्किल से आधा दर्जन महिलाएं खुखड़ी बेच रही हैं. गांव में रोजगार नहीं होता है, बरसात में मजदूरी भी नहीं मिलती, ऐसे में खुखड़ी बिक्री से प्राप्त पैसा हमारा आर्थिक सहयोग करता है.
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