शशि उबन त्रिपाठी (कनाडा में भारत की पूर्व उच्चायुक्त): भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ‘सहयोगी’ देशों से खालिस्तान समर्थकों को स्थान नहीं देने की अपील की है. ऊपरी तौर पर, उनका इस तरह से अपील करना असामान्य लग सकता है. सामान्य परिस्थितियों में, द्विपक्षीय मुद्दों पर कूटनीतिक माध्यम से चर्चा होती है और उन्हें सार्वजनिक नहीं किया जाता. इस मामले में भी, भारत ने कनाडा के राजदूत को तलब किया था, जहां उनसे कनाडा से संचालित उन आतंकवादी गतिविधियों पर गंभीर चिंता जतायी गयी होगी जिनका निशाना भारत की संप्रभुता और अखंडता है. इस कूटनीतिक विरोध के साथ-साथ विदेश मंत्री ने भी कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया से अपील की है. यह स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है.
लोकतांत्रिक समाजों में, अपनी शिकायतों और विरोध को व्यक्त करने की अनुमति होती है और इसे प्रोत्साहित किया जाता है. इन्हें एक सेफ्टी वॉल्व की भांति समझा जाता है, जिनसे नागरिक किसी ऐसे मुद्दे पर अपने आक्रोश को प्रकट कर सकते हैं, जो उन्हें प्रभावित या व्यथित कर रहे हों. लेकिन जब ऐसे प्रदर्शन हिंसक होने लगते हैं तो समस्या शुरू हो जाती है. जैसा कि अमेरिका की उस घटना में हुआ, जहां खालिस्तान समर्थक तोड़-फोड़ और आगजनी पर उतर आये और सैन फ्रांसिस्को में भारतीय कॉन्सुलेट जनरल या वाणिज्य दूतावास में आग लगा डाली. वहीं कनाडा में, खालिस्तानियों ने वरिष्ठ राजनयिकों की तस्वीरों वाले पोस्टर लगा दिये हैं, जिन्हें वे मारना चाहते हैं. इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ. विदेशों में भारतीय दूतावासों या अन्य केंद्रों के लिए ऐसे प्रदर्शन नये नहीं हैं. लेकिन, जब प्रदर्शन हिंसक हो जाए और वह आतंकवादी कृत्यों में बदलने लगें, तब एक अलग तरह की प्रतिक्रिया जरूरी हो जाती है.
अमेरिका सरकार ने सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास में तोड़-फोड़ और आगजनी की कड़े शब्दों में निंदा की है. भारत और अमेरिका के संबंध अभी काफी प्रगाढ़ हैं और प्रधानमंत्री मोदी की हाल की अमेरिका यात्रा से इसे और बल मिला है. ऐसे में, यह उम्मीद की जानी चाहिए कि अमेरिकी एजेंसियां सैन फ्रांसिस्को की आपराधिक घटना में लिप्त लोगों से प्रभावी ढंग से निबटेंगी. अमेरिका की तुलना में, कनाडा की विदेश मंत्री के बयान की भाषा नर्म है. उन्होंने कहा है कि उनका देश वियना कन्वेंशन के तहत अपने दायित्यों को समझता है, और भारतीय राजनयिकों और दूतावास से जुड़े लोगों को पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध करायी जायेगी. भारत कनाडा से यह अपेक्षा रखता है कि वह अपने यहां के सिख वोट बैंक का तुष्टिकरण बंद करेगा और टोरंटो में आठ जुलाई को प्रस्तावित खालिस्तान मार्च की अनुमति नहीं देगा.
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि रह-रह कर खालिस्तान का मुद्दा भारत और कनाडा के आपसी रिश्तों पर ग्रहण लगाने लगता है. पिछली सदी में 1980 के पूरे दशक और 1990 के दशक के ज्यादातर हिस्से में, खालिस्तान के मुद्दे की वजह से कनाडा के साथ भारत के संबंध खराब हुए थे. उन वर्षों में, इस बढ़ती समस्या को लेकर कनाडा सकार ने ना तो कोई गंभीरता दिखाई, और ना ही भारत की चेतावनियों पर ध्यान दिया. इस वजह से, वहां खालिस्तानी गतिविधियां जारी रहीं, जिसे भारत के दुश्मनों से समर्थन और धन मिलता रहा. इन गतिविधियों की चरम परिणति 1985 के 23 जून में सामने आयी जब टोरंटो से नयी दिल्ली जा रहे एयर इंडिया के कनिष्क विमान में दुखद बम धमाका हुआ. अटलांटिक महासागर में आयरलैंड के तट के पास हुए इस धमाके में विमान पर सवार चालक दल समेत कुल 328 यात्री मारे गये. इनमें ज्यादातर भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक थे, जो छुट्टियों में अपने परिवार से मिलने भारत जा रहे थे. इस हमले के बाद भी कनाडा सरकार की प्रतिक्रिया सुस्त रही और पुलिस को हमले के एक जिम्मेदार को न्याय के कटघरे में खड़ा करने में 14 वर्ष लग गये.
कनाडा में बाद में आयी सरकारों ने सख्त रवैया अपनाया, जिससे पिछली सदी के समाप्त होते-होते यह समस्या लगभग समाप्त हो गयी थी. वैसे भी, कनाडा में बसे भारतीय लोगों या पंजाब के लोगों की बहुसंख्यक आबादी कभी भी खालिस्तानियों के साथ नहीं थी. वर्ष 2002-03 के आसपास, कनाडा की रॉयल कनेडियन माउंटेन पुलिस ने कनिष्क बम हमले के बाद से भारत के वरिष्ठ राजनयिकों और राजनयिक मिशनों को दी जाती रही सुरक्षा वापस ले ली. मगर, खालिस्तानियों ने एक बार फिर सिर उठाया है. कनाडा सरकार उनसे निपटने में यदि सख्ती नहीं बरतती है और निर्णायक कदम नहीं उठाती है, तो इससे भारत और कनाडा के रिश्तों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना तय है. दोनों ही देशों में बहुत समानता है.
दोनों कॉमनवेल्थ राष्ट्र तथा जी-20 के सदस्य हैं. इनके अतिरिक्त, वहां भारतीय मूल के लोगों की अच्छी-खासी संख्या है जो कनाडा की कुल आबादी का तीन प्रतिशत है. जो उस देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं. कनाडा भारत को परमाणु ईंधन की सप्लाई करने वाला एक बड़ा देश है. कनाडा के लिए भी, भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था में निवेश के अच्छे अवसर हैं. कनाडा को बिना देरी किये खालिस्तानी समूहों की आतंकवादी गतिविधियों पर रोक लगानी चाहिए.
(ये लेखिका के निजी विचार हैं)